पुरुआ में सिहरे बदनियाँ

पुरुआ में सिहरे बदनियाँ

पुरुआ में सिहरे बदनियाँ

 

पुरुआ में सिहरे बदनियाँ,
कुलेल करे देखा चँदनियाँ। (2)

झुरुर- झुरूर बहे पवन पुरवाई,
होतैं जो सइयाँ ओढ़उतैं रजाई।
काबू में नाहीं जवनियाँ,
कुलेल करे देखा चँदनियाँ।
पुरुआ में सिहरे बदनियाँ,
कुलेल करे देखा चँदनियाँ।

उड़ि -उड़ि अँचरा बुलावे सजनवाँ,
होई कब उनसे मधुर ऊ मिलनवाँ।
रोज-रोज लड़े लै नथुनियाँ,
कुलेल करे देखा चँदनियाँ।
पुरुआ में सिहरे बदनियाँ,
कुलेल करे देखा चँदनियाँ।

रातभर लेईला सुना करवटिया,
टूट गइल रतिया में खटिया कै पटिया।
चाही न सोना हमके चँनियाँ,
कुलेल करे देखा चँदनियाँ।
पुरुआ में सिहरे बदनियाँ,
कुलेल करे देखा चँदनियाँ।

चढ़ली जवनी में बहरे का गइला ?
अब तक तौ नाहीं खड़ा कुछ कइला।
ठनकले में ना पड़ी बेहनियाँ,
कुलेल करे देखा चँदनियाँ।
पुरुआ में सिहरे बदनियाँ,
कुलेल करे देखा चँदनियाँ।

पल -पल काट खालै हम्में ई रतिया,
तोहरे वियोग में दहकै लै छतिया।
माना तू सइयाँ बचनियाँ,
कुलेल करे देखा चँदनियाँ।
पुरुआ में सिहरे बदनियाँ,
कुलेल करे देखा चँदनियाँ।

आवत कै लिहले तू अईहा हरदिया,
पोर-पोर उठेलै रातभर दरदिया।
अइबा तौ छुअब चरनियाँ,
कुलेल करे देखा चँदनियाँ।
पुरुआ में सिहरे बदनियाँ,
कुलेल करे देखा चँदनियाँ।

Ramakesh

रामकेश एम यादव (कवि, साहित्यकार)
( मुंबई )

 

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