book review padam agni

पदम- अग्नि | आलेख

।। पदम- अग्नि ।।

आलेख

 

पुस्तक के शीर्षक से ही समझ सकते है, कि सुकोमल मुलायम सी पंखुड़ियों याने पदम और उसका शब्द अग्नि याने पवित्रता अग्नि को सनातन संस्कृति में सबसे पवित्र माना गया है ।

रानी पद्मावती के जीवन पर प्रकाश डालती हुई रचना में उसके अतुल्य सौंदर्य और उसके साथ उनकी पवित्रता का उल्लेख किया गया है ।

जैसा की विदित है कि मुगलों ने इस आर्यावर्त में अपने शासन काल में किस प्रकार हमारी विरासत को नेस्तनाबूत करने का षड्यंत्र रचा था।

कुछ हद तक वे कामयाब हुए किन्तु उसकी अस्मिता को कभी समाप्त नहीं कर सके। और जितनी भी क्षति हुई है, वो उनके पराक्रम की वजह से नहीं जितनी हमारे अपनों की आस्तीनो के सांपो के कारण हुई है।

ऐसा ही कुछ सिंहल द्वीप के शासक महाराजा गंधर्वसेन के शासन में भी हुआ। ये उस समय से अभी तक अनवरत जारी है।

अस्तु लेखिका के रानी पद्मावती के सुंदरता के साथ साथ उस समय की सभी मान्यताओं और समजिक परंपराओं के संयोजन के साथ भारतीय सभ्यता का उन्नत होने का वर्णन किया है।

उन्होंने रानी पद्मावती के सौंदर्य का जिन शब्दों में वर्णन किया वो उनकी सुंदरता को दर्शाता है। बहुत ही लावण्य रूपसी जैसे कमल पुष्प होता है।और उनके नाम में भी पदम जुड़ा हुआ है ।

उनकी सुंदरता ही उनके पिता की चिंता का कारण थी। उन्होंने उनके के लिए अलग महल से लेकर उनकी सभी सुख सुविधाओं से सुसज्जित वातावरण बना दिया था ।

ताकि कोई उन्हें तकलीफ ना और ना किसी प्रकार की कमी महसूस हो। परन्तु जहां सुंदरता है वहां प्रेम ना ऐसा भला भी कहीं हो सकता है,जैसे सुकोमल कन्या उपवर होते आती हैं उसके मन में कई प्रकार के भाव उत्पन्न होने लगते हैं ।

ऐसा ही कुछ जैसा की राजाओं में आखेट करने परम्परा हो या अपनी शूरता को प्रदर्शित करने मीमांसा होती है। उसी तरह रानी पद्मावती के मन में भी पिता के साथ जंगल में आखेट करने का विचार आया और उनके पिता ने हां ना करते हुए उनको अपने साथ चलने की आज्ञा दी।

परन्तु पिता उन्हें आखेट कैसे होता है, दिखाने ले गए थे । हुआ ठीक उसके विपरीत रानी पद्मावती ने आदम खोर शेर का शिकार कर सबको आश्चर्य में डाल दिया।

यही उनके अंदर की अग्नि को प्रदर्शित करने के काफ़ी था । जितनी वे सुकोमल काया की थी, उतनी ही वीरता भी उनके सुंदरता को दर्शाती है।एक दूसरा पहलू भी उनकी सुंदरता के साथ जुड़ा हुआ है जिसे हम प्रेम कहते है ।

हीरामन नामक वेदपाठी तोते के साथ जुड़ा हुआ है ।जिससे वे अपने मन की सारी बातें किया करती थीं। परन्तु उनके पिता को यह पसंद नहीं आया तो उन्होंने उस शुक् को देश निकाला दे दिया।

उसी शुक् ने चित्तौड़ के शासक महाराजा रतन सिंह को रानी पद्मावती की सुंदरता का बखान कर बता दिया।जिससे प्रभावित होकर राजा उनके राज्य के शिव मंदिर में एक तपस्वी के रूप में आकर उनसे मिलने की प्रतीक्षा करने लगे।

पुनः उसी शुक् ने आकर रानी पद्मावती को बताया। तो रानी के मन में उनके प्रति प्रेम भाव बढ़ने लगा । जब उनसे मिलने गई तो राजा रतन सिंह उनकी सुंदरता देखकर मूर्छित होकर गिर पड़े।

फिर कुछ समय पश्चात पिता की आज्ञा से दोनों का विवाह संपन्न हुआ। राजा ने उनके लिए अलग महल बनाकर उनकी सुख सुविधा का सामान वहां पर रखा ।

जैसा राजसी वैभव में होता रहा है।कुछ समय बाद राजा रतन सिंह अपने देश वापस रानी पद्मावती के साथ लौट आए। रानी नागमति ने पद्मावती का स्वागत किया।

चित्तौडगढ़ के किले को बंदनवार फूलों से सजाया गया था। हीरे मोती की आभा से रोशन हो रहा था। वैसे राजसी ठाठ बाट की बात ही निराली होती हैं ।

वहीं पर एक विडंबना भी देखिए, नागमति सौत के साथ तो थी पर मन से नहीं है। जो एक स्त्री का स्वाभाविक गुण हैं,अपने प्रेम को बटने नहीं देना चाहती है।

शैने शैने वो ईर्ष्या में बदलने लगती है। खैर जीवन में जो होना है उसमे नियति का बड़ा महत्व है ,धीरे रानी पद्मावती भी राज काज में अपनी रुचि रखने लगी थी।

प्रजा के साथ खुद को जोड़ना चाहती थी ,उनके रहन सहन के साथ साथ सुख – दुख बाटने के लिए प्रयास करने लगी। उन्होंने बेटियों को बचाने के लिए भरपूर प्रयास किए।

ताकि उनके जन्म को शोक के रूप में ना लेकर उन्हें भी अपना जीवन जीने का अधिकार मिले। पुरुष प्रधान समाज में स्त्री के प्रति धारणा गलत बन गई थी।

उसका भी विरोध करने में संकोच नहीं किया। राज – काज के साथ अपने पारिवारिक जीवन पर भी उतना ही ध्यान रखा।

राजपरिवारों में आखेट का शौक होता है,उसके लिए भी राजा के साथ वन में जाकर अपना हुनर दिखाया।जब राजा ने शिकार करने के उन्हें तीर चलाने के बोला साथ ही कहा कि तुम्हारे नैनो के तीर तो देख ही चुके अब यहां पर भी हाथ आजमा कर देखें।

रानी ने हामी भरते हुए उसे भी स्वीकार किया। परन्तु सरोवर में हिरनों के झुंड में छोटे हिरनों के ऊपर तीर नहीं चलाए।तब राजा ने पूछा क्यों रानी हाथ कांप रहे है।परन्तु तब उनमें बिना कारण हिरनों का शिकार करने में संकोच हुआ क्योंकि उसमें छोटे – छोटे हिरण अपनी मां के साथ पानी पीने आये थे।

और तभी रानी ने राजा की ओर निशाना साधते हुए एक चीते का शिकार किया जो राजा के ऊपर हमला करने के लिए तैयार था।राजा तो एक समय के चौक गए पर रानी ने उनके रक्षणार्थ निशाना उनकी ओर साधा था।

ये उनकी मजबूत मानसिकता को प्रदर्शित करता था।निर्बल पर वार नहीं और दुश्मन की खैर नहीं। उसी खुशी में राजा ने रानी को पुरस्कार की पेशकश की पर रानी ने उचित समय पर मांगने पर मना करना यह कहकर उसे स्वीकार किया।

इसके पश्चात ही रानी के जीवन ने करवट बदली और राघव चेतन के आगमन के साथ – साथ महल में उथल – पुथल शुरू हुई। गोरा चौहान सामंत थे, उन्होंने राघव चेतन से बचने की सलाह दी पर राजा ने एक ना सुनी और अपने समीप उसका स्थान बना दिया जो भविष्य में पूरे चितौड़ के लिए अभिशाप बन गया।

और गोरा चौहान ने भी महल छोड़कर बाहर निकल आये। परन्तु कुछ समय बाद राजा का विश्वास राघव चेतन के लिए कम होता चला गया और उसे देश से बाहर का रास्ता दिखा दिया। वह इस अपमान का बदला लेने के लिए दिल्ली में अलाउद्दीन खिलजी के दरबार में पहुंच गया।

उसने रानी पद्मावती की सुंदरता का बखान करते हुए उसे अपनी रानी बनाने के लिए उकसाता रहा ।एक दिन खिलजी ने राजा रतन सिंह के पास दूत भेजकर अपनी मंशा जाहिर की रानी पद्मावती को उसके हरम में रहने दिया जाये,नहीं तो अपने साम्राज्य से हाथ धोना पड़ेगा।

परन्तु राजपूत राजा कहीं उस बात को मानने वाला था ।उसने प्रस्ताव को ठुकरा दिया। इसी कश्मकश में तुर्की सेना आस पास के जंगल में डेरा जमा कर बैठ गई।और हमले के लिए अपने साजो सामान लाव लश्कर लेकर मौके की तलाश में जुटी रही।

कई हमले किए उसमे भी नाकाम रहे,कई प्रकार के प्रलोभन देकर भी अपनी बात ना मनवा पाया। तुर्की राजा फिर संधि प्रस्ताव लेकर दोस्ती का हाथ बढ़ाने के लिए राजा का आग्रह किया।कुछ असमंजस के बीच राजा रतन सिंह ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।

परन्तु धोके से राजा को बन्दी बनाकर अपने पास ही रखकर रानी पद्मावती पर तरह – तरह से कई पड़ोसी राज्यों के राजाओं से बात मनवाने के भेजा। पर रानी ने सभी को नकार दिया।

तभी उन्हें गोरा चौहान और उनके भतीजे बादल से मिलने की इच्छा जताई और उनसे मिलकर राजा रतन सिंह को आजाद कराने के लिए उनके साथ एक रणनीति तैयार की, उसके मुताबिक उन्होंने
राजा रतन सिंह से मुलाकात की पेशकश की रानी पद्मावती स्वयं मिलने आना चाहती है।

अलाउद्दीन खिलजी को लगा उसका काम बन गया,परन्तु रानी पद्मावती ने एक कुशल राजनीतिज्ञ के भांति स्वयं ना जाकर गोरा चौहान को सोलह सौ पालखी के साथ रवाना किया।

और जब राजा गुस्से से तिलमिलाकर उनसे मिलने पालखी के समीप पहुंचे तो उन्होंने कहा जल्दी हार स्वीकार कर ली ,और दुश्मन के सामने हार स्वीकार कर ली।

राजा वास्तविकता से अनभिज्ञ थे, इसलिए उन्हें भला बुरा कह रहे थे,पर जब गोरा चौहान ने बताया कि मै हूं रानी पद्मावती नहीं है आप इन पालखी के अंदर ही अंदर अपने महल में दाखिल हो जाओगे।

इस तरह रानी पद्मावती ने अपनी सूझबूझ से राजा को उस क्रूर शासक से राजा को उसके बंधन से आजाद कराया।

परन्तु रोज की लड़ाई में अपने सैनिकों की शहादत को देखकर उनका मन विचलित होता था ।और अपने राज्य में संकट की स्थिति को देखते हुए दुखी होती थी।राजदरबार में भी कई मंत्रणा की गई परन्तु सब कुछ समय के अपूर्ण साबित होती रही।

फिर राजा ने नागमती को बुलाकर कहा कि शाका ही अंतिम विकल्प बचा है,चूंकि रानी पद्मावती इस सब से अनभिज्ञ थी, खड़ी रहकर सुन रही थी, परन्तु नागमती के चेहरे के भाव में मायूसी छाई हुई थी। आखिर ये शाका है क्या ॽ

तब रानी नागमती ने पूछा इसका अर्थ जानती हो,रानी पद्मावती ने नहीं कहा, तब नागमती हंसते – हंसते हुए अश्रु बहाने लगी और उसका अर्थ समझाने लगी,जब राजपूत के मन में शत्रु को पराजित करने की इच्छा अदम्य हो जाती है और विजय की कोई राह नहीं दिखती, उस समय राजपूत केसरिया पगड़ी पहन युद्ध में खेत होने के लिए जाता है और कभी वापस नहीं आता।

वही अंतिम विजय प्रयाण ॓शाका॔ कहलाता है। रानी पद्मावती एकटक देखती रही ।पर समझ नहीं पा रही थी कि वह क्या कहना चाह रही हैं। नागमती ने कहा तुम हो ही इतनी खूबसूरत और तुम्हारी आंखें।जादू भरी है इनमें कोई भी पुरुष देख लेे,ताउम्र नहीं भूल सकता ।

तुर्क की क्या बिसात ॽ बहुत ही जल्दी वो तुमको जब अपने आलिंगन में पाएगा,उस पल क्या सोच रहा होगा। दीदी बस कीजिए रानी पद्मावती चीख पड़ी।

यह युद्ध राजपूतों के अंतिम पुरुष तक लड़ा जाएगा उसमे बालक क्या वृद्ध आदमी बीमार भी लड़ने जाएंगे और अंतिम समय तक लड़ेंगे । क्या तुम्हारी सुंदरता इतनी कीमती है कि पूरा कुल तबाह हो जाएॽ अब तुम ही बचा सकती हो इस राजपुताने को ।

एक बार मैंने डोला उतारा है,फिर डोली डोली में बिठाने के लिए तैयार हूं। बचा लो तुम ही इसे बचा सकती हो,मै हाथ जोड़कर कहती हूं। ऐसा मत कहो दीदी,कृपया चुप हो जाइए । तभी नगमती बोली तुम अब भी अपने रूप का गुमान करती हो या रूप को बचाने की चाह ॽ

रानी पद्मावती बोली मै चाहती हूं कि राजपुताने में यह बात पीढ़ी- दर – पीढ़ी पहुंचे की पद्मावती अद्वितीय सुंदरी थी और उसका सौंदर्य शाश्वत हो गया।

तभी नागमती कुपित हो उठी और बेशर्म तक कह दिया। परन्तु रानी पद्मावती के मन में और कुछ ही चल रहा था,उन्होंने सामंतों को चंदन की लकड़ी का प्रबन्ध करने को कहा।

सभी हुकुम का पालन करने में लग गए।यह खबर महलों से निकल कर राज्य के कोने – कोने में फैल गई । रानी पद्मावती के साथ चितौड़ के लोगों के साथ ऐसे संबंध बन गए थे सभी महलों की भागे चले अा रहे थे ।

रूपवती राजसी महिला का अग्नि स्नान ऐसा कभी पूर्व में हुआ नहीं था जो आज राजपुताने की लाज बचाने के लिए हो रहा था । राजा भी भाव विहल हो उठे चूंकि रानी को आखेट के समय वचन मांगने के लिए कहा था उसमे उन्होंने जौहर की मांग की। नागमती जो उसके रूप को दोषी मानती थी वो भी शोकाकुल थी ।
सार्वकालिक, सार्वभेाैमिक नारी॥
हाथ जोड़कर अग्नि में प्रवेश कर रही थी।
साथ में सोलह हजार नारियों में फैल चुकी थी।
चलते – चलते
प्रेम यदि सौंदर्य का प्रतीक बन सकता है तो
त्याग उस प्रेम की पूजा करना सिखाता है।
आलेख
शशांक पारसे
छिंदवाड़ा म.प्र.
9424666123.

 

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