चुहिया की शादी
चुहिया की शादी ( पंचतंत्र की कहानी )
गंगा के तट पर तपस्वियों का एक समूह रहता था। जहां पर बहुत सारे सन्यासी/तपस्वी गंगा के तट पर तप किया करते थे। उनमें से एक सन्यासी थे – याज्ञवलक्य।
एक बार महाऋषि गंगा नदी में खड़े होकर प्रार्थना कर रहे थे, तो अचानक से एक बाज के पंजों से छूट कर एक चुहिया उनके हाथ में आ गिरी।
जब उन्होंने आंख खोल कर देखी तो एक छोटी सी चुहिया उनकी अंजुरी मे थी। तब उन्होंने पास के पेड़ से एक पत्ता तोड़कर चुहिया को उस पर रख दिया और अपने तपोबल से उस चुहिया को लड़की बना दिया।
उसे अपनी बेटी बनाकर अपने आश्रम में लेकर आते हैं और अपनी पत्नी से कहते हैं कि आज से यह हमारी बेटी है। कुछ साल तक सब कुछ सामान्य चलता रहता है। धीरे धीरे चुहिया से लड़की बनी उनकी बेटी बड़ी होने लगती है।
तब एक दिन उनकी पत्नी कहती हैं “हमारी बेटी आप विवाह योग्य हो गई है, हमें इसके लिए अच्छा सा वर देखकर इसकी शादी कर देनी चाहिए” तब महाऋषि कहते हैं ठीक है अगर कन्या मान जाती है तब मै सूर्य देवता का आवाहन करके उन्हें ही अपनी बेटी सौंप दूंगा।
फिर एक दिन गंगा के तट पर वह अपने तपोबल से भगवान सूर्य देव का आवाहन करके उन्हें बुलाते हैं, तब भगवान सूर्य प्रकट हो जाते है और कहते हैं “बताइए ऋषि मुनि क्या बात है?”
तब याज्ञवल्क्य कहते हैं – “सूर्य देव यह मेरी बेटी है, यदि यह आप से विवाह करने के लिए तैयार हो जाती है तब कृपया इसे स्वीकार कर लीजिए”
। फिर महाऋषिां अपनी पुत्री से पूछते हैं “पुत्री क्या तुम्हें सूर्य देव अपने होने वाले पति के रूप में स्वीकार होंगे इनमें बहुत ताप है, इनके ताप से ही पूरी दुनिया रोशन है”।
तब चुहिया से लड़की बनी उनकी बेटी कहती है “पिताजी इनमें बहुत ताप है, कृपया इनसे अच्छा कोई वर ढूंढिए”।
तब ऋषि मुनि सूर्य देव से कहते हैं “भगवान, अब आप ही बताइए क्या आप से भी अच्छा कोई वर है?” तब सूर्य देव कहते हैं “जी हां, मेघदेव मुझसे भी श्रेष्ठ है, जो वो मुझे ढक लेते हैं तब मै कुछ भी नही कर पाता हूं”।
तब ऋषि मुनि ने मेघदेव का आवाहन करके उन्हें बुलाया और जब मेघदेव प्रकट हुए तब उनसे पूछा “हे मेघदेव यदि मेरी बेटी आप से विवाह करने के लिए तैयार होती है, तब आप इसे स्वीकार कीजिए”।
फिर वह अपनी बेटी से पूछते हैं “पुत्री क्या मेघदेव तुम्हे अपने पति के रूप में स्वीकार है” तब उनकी बेटी जवाब देती है “पिताजी, यह तो बहुत ज्यादा काले और बेहद ठंडे है, मुझे यह नही पसंद है, कृपया आप कोई इनसे भी अच्छा वर देखिए”।
तुम ऋषि मुनि मेघदेव से कहते हैं “हे देव, क्या आप से भी कोई श्रेष्ठ है?” तब मेघा देव कहते हैं “हां, पवन देव मुझसे भी श्रेष्ठ है, वह बहुत ताकतवर है और जब चाहे मुझे अपने बल से उड़ाकर कही भी लेकर जा सकते है।
तब महाऋषि अपने तपोबल से पवन देव को बुलाते हैं और कहते हैं ” हे पवन देव, अगर मेरी पुत्री को आप वर के रूप में स्वीकार हो, तो कृपया उसे स्वीकर करे” और अपनी बेटी से कहते हैं “पुत्री क्या तुम्हें पवन देव अपने पति के रूप में स्वीकार हैं” ।
तब उनकी पुत्री कहती है “पिताजी, यह तो बेहद परिवर्तनशील है, मै इनसे विवाह कैसे कर सकती हूं, कृपया इनसे कोई बेहतर चुनिए!”
तब ऋषि मुनि पवन देव से कहते हैं “हे पवन देव क्या कोई आप से भी श्रेष्ठ है?” तब पवन देव कहते हैं “हां, मुझे भी श्रेष्ठ पर्वतराज हैं, जो मेरे गति को कुंठित कर सकते हैं और मै उन्हें कुछ भी हानि नही पहुंचा पाता हूं”।
तब महाऋषि अपने तपोबल से पर्वतराज का आवाहन करते हैं और फिर अपनी बेटी से पूछते हैं “पुत्री अब तुम्हारा क्या विचार है?”
उनकी बेटी कहती है “पिता जी, यह तो बेहद कठोर और स्थिर है, मै इन से विवाह नही कर सकती, कृपया इनसे भी बेहतर हुआ चुनिए”।
अब महाऋषि बहुत परेशान होने लगे हैं और दुखी होकर पर्वतराज से कहते हैं “हे पर्वतराज, अब आप ही बताइए आप से सर्वश्रेष्ठ कौन है?”
तब पर्वतराज कहते हैं “महाऋषि, मुझसे भी ताकतवर तो वह चूहा है जो मेरे शरीर के अंदर छेद कर देता है”
तब महाऋषि अपने तपोबल से चूहों के राजा का आवाहन करते हैं, फिर अपनी पुत्री से कहते हैं “प्रिय पुत्री क्या तुम्हें अपने पति के रूप में यह चूहे के राजा पसंद है?”
तब चूहे को देखा तो चुहिया से लड़की बनी महाऋषि की बेटी के पूरे शरीर में एक अलग तरह की ऊर्जा आ जाती है और महाऋषि खुश होकर कहती है “हां पिताजी, यह तो मुझे सबमें सबसे श्रेष्ठ है।
कृपया मुझे इन से विवाह करने की अनुमति दीजिए, कृपया मुझे फिर से चुहिया बना दीजिए, जिससे मै अपने विवाह के बाद अपने घर गृहस्ती की सारी जिम्मेदारी खुद उठा सकूं और खुशहाल जीवन जी सकूं”
तब महाऋषि अपने तपोबल से उसे फिर से उसे दुबारा चुहिया बना देते हैं।
इस कहानी से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि परिवार से अलग रहकर, उसकी पसंद परिवर्तित नही होता है, उसका सजातीय प्रेम कभी बदलता नही है। सजातीय प्रेम हमेशा बना रहता है।
लेखिका : अर्चना
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