महिला सशक्तिकरण (Women Empowerment) पर निबंध

महिला सशक्तिकरण पर निबंध

( Essay in Hindi on women empowerment ) 

 

भूमिका (Introduction) :

सशक्तिकरण से तात्पर्य व्यक्ति की क्षमता से होता है। एक ऐसी क्षमता जिसमें वह अपने जीवन से जुड़े फैसले ले सके। बात जब महिला सशक्तिकरण की की जाती है तब महिला सशक्तिकरण से तात्पर्य सामाजिक और पारिवारिक बंधनों से मुक्त होकर अपने खुद के फैसले लेने से होता है।

महिला सशक्तिकरण के लिए दुनिया भर में कई तरह की मुहिम चलाई जा रही है, जिससे महिलाएं स्वतंत्र रूप से अपने फैसले ले सकें और सामाजिक और पारिवारिक बंधनों से आगे बढ़कर अपने जीवन से जुड़े फैसले खुद ले सके और जीवन में आगे बढ़ सके।

महिला सशक्तिकरण  (Women Empowerment in Hindi ) :-

महिला सशक्तिकरण से तात्पर्य महिलाओं को शक्तिशाली बनना है। जिससे वो अपने सारे फैसले खुद ले सके। सही अर्थों में महिलाओं को वास्तविक अधिकार दिलाने में उन्हें सक्षम बनाना ही महिला सशक्तिकरण कहलाता है।

 महिला सशक्तिकरण का उद्देश्य  ( Objective Of Women Empowerment in Hindi ) :-

महिला सशक्तिकरण का उद्देश्य महिलाओं को अधिकार और शक्ति प्रदान करना, जिससे वे पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर गर्व से चल सके।

संक्षेप में कहे तो महिला सशक्तिकरण का प्रमुख लक्षण महिलाओं को उनके अधिकारों को दिलाना है। महिला सशक्तिकरण समाज की एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें महिला सर्वसंपन्न तथा विकसित होकर जी सके।

उसके लिए संभावनाओं के द्वार खुले और नए विकल्प हो। भोजन, पानी, घर, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा, शिशुपाल, प्राकृतिक संसाधन, बैंकिंग सुविधा, कानूनी हक और खुद के विकास हेतु उन्हें पर्याप्त रचनात्मक अवसर मिल सके।

महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता (  Need of women empowerment in Hindi ) :-

हमारा देश पुरुष सत्तात्मक देश रहा है। यहां पर महिलाओं से जुड़े फैसले भी पुरुष ही लेते रहे हैं। महिलाओं को हमेशा निम्न समझा गया है। उन्हें बहुत सारे काम को पुरुषों की तरह करने की आजादी नहीं है।

उन्हें घर के अंदर रहने और घर की देखभाल करने तक ही सीमित रखा जाता है। ऐसे में भारतीय महिलाएं सालों से घर की पारिवारिक जिम्मेदारियां को कई सारे बंधनो के बीच रह कर निभाती रही हैं।

हालांकि अब काफी बदलाव आ गया है। लेकिन आज भी बहुत सारी महिलाओं को कई तरह के सामाजिक बंधनों में रहना पड़ रहा है। भविष्य में देश का विकास बिना आधी आबादी के विकास के संभव नहीं है।

ऐसे में यह जरूरत है कि सरकार और पुरुष के अलावा स्वयं महिलाएं भी महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा दें। हमारे देश में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता है।

प्राचीन काल में से ही भारत में लैंगिक असमानता रही है और हमारा समाज पुरुष प्रधान समाज रहा है। महिलाओं पर समाज और परिवार द्वारा दबाव बनाया जाता है और उनके साथ हिंसा की जाती हैं और भेदभाव किया जाता है।

इस तरह की स्थिति भारत ही नहीं बल्कि दूसरे देश में भी है। प्राचीन काल से महिलाओं के साथ गलत रीति-रिवाजों और परंपराओं की ढाल में कई तरह के अत्याचार होते आ रहे हैं।

एक तरफ भारतीय समाज में जहां महिलाओं के सम्मान में मां, बहन, पत्नी, पुत्री के रूप में देवियों को पूजने की परंपरा है, वही महिलाओं के साथ अत्याचार भी होता है। आज महिलाओं का सशक्तिकरण वक्त की जरूरत बन गई है।

प्राचीन काल में ही भारतीय समाज में कई तरह के भेदभाव जैसे सती प्रथा, नगरवधू व्यवस्था, दहेज प्रथा, यौन हिंसा, घरेलू हिंसा, गर्भ में पल रही कन्या की हत्या, पर्दा प्रथा, कार्यस्थल पर महिलाओं का शोषण, बाल विवाह, देवदासी प्रथा जैसी कई परंपराएं रही है।

बहुत सारे परिवारों में सामाजिक, राजनीतिक अधिकारों को प्रतिबंधित किया गया है। लेकिन वक्त के साथ स्थितियों में बदलाव हुआ। भारत के महान लोगों द्वारा महिलाओं के विरुद्ध भेदभावपूर्ण कार्यो के खिलाफ आवाज उठाई जाने लगी।

अंग्रेजों के शासन के समय में सती प्रथा को खत्म करने के लिए राजा राममोहन राय ने प्रयास किया और लोगों की सोच में बदलाव हुआ। कई भारतीय समाज सुधारकों ने महिला उत्थान के लिए काम किया और काफी संघर्ष किया।

विधवाओं की स्थिति सुधारने के लिए ईश्वर चंद्र विद्यासागर में काफी संघर्ष किया। नतीजा यह रहा कि 1956 में पुनर्विवाह अधिनियम पारित हुआ। कुछ सालों से लैंगिक असमानता और कन्या भ्रूण हत्या को हटाने के लिए सरकार द्वारा संवैधानिक और कानूनी अधिकार बनाए गए हैं।

महिला सशक्तिकरण से जुड़े कानून ( Laws related to women empowerment in Hindi ) : –

कानूनी अधिकार के साथ-साथ भारत में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए संसद द्वारा कई अधिनियम पारित किए गए। जिसमें बराबर पारिश्रमिक एक्ट 1976, दहेज रोकथाम अधिनियम 1961, बाल विवाह रोकथाम अधिनियम 2006, अनैतिक व्यापार रोकथाम अधिनियम 1956, लिंग परीक्षण तकनीकी 1994, कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन शोषण एक्ट 2013 जैसे अधिनियम लाए गए।

बीसवीं शताब्दी में महिला सशक्तिकरण आंदोलन प्रारंभ हुआ। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में कई सारे महत्वपूर्ण राजनीतिक और सामाजिक बदलाव हुए।

राष्ट्र निर्माण एक जटिल प्रक्रिया होती है। राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में जनता की खुशहाली, जीवन की गुणवत्ता में सुधार, मानव का विकास मूल लक्ष्य होता है।

भारत में महिला सशक्तिकरण ( Women empowerment in India in Hindi ) :-

भारत में महिला कल्याण से संबंधित कई गतिविधियों को संरचनात्मक ढांचा के अंतर्गत लाकर संवैधानिक सुरक्षा उपलब्ध कराई गई।

स्वतंत्रता के बाद से ही भारत में महिलाओं के विकास के लिए कई योजनाएं बनाई गई। अगर पिछले 20 साल पर नजर डालें तो इस स्थिति में काफी बदलाव आया है।

1990 के दशक के बाद से महिला सशक्तिकरण पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा है। नीति निर्माण में उनकी सहभागिता को बढ़ावा दिया जा रहा है।

भारत में महिला सशक्तिकरण के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा महिलाओं को राजनैतिक, आर्थिक एवं सामाजिक विकास में बराबर आवश्यक प्राप्त करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय महिला उत्थान नीत 2001 की घोषणा हुई थी।

महिलाओं के शिक्षक स्तर को बढ़ाने के लिए अनुकूल शिक्षा प्रणाली के निर्माण पर विशेष ध्यान दिया गया। महिला स्वास्थ्य पोषाहार, बालिका विवाह एवं विवाह के पंजीकरण को अनिवार्य कर दिया गया है। साथ ही माता पिता की संपत्ति में पुरुषों के बराबर महिलाओं को भी बराबर का हिस्सेदार बनाने संबंधी कानून को पारित कर दिया गया है।

उपसंहार  (Conclusion) :-

भारत में महिला सशक्तिकरण के लिए महिलाओं के विरुद्ध चलने वाली तमाम परंपराओं और कुप्रथा को हटाने के लिए समाज के प्रति सत्तात्मक और सिर्फ पुरुष व्यवस्था को हटाना जरूरी है।

महिलाओं के विरुद्ध पुरानी सोच में बदलाव लाने के लिए संवैधानिक और कानूनी प्रावधान में बदलाव करने और उन्हें लागू करने की जरूरत है।

लेखिका : अर्चना  यादव

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