Essay on caste reservation in Hindi
Essay on caste reservation in Hindi

निबंध : जातिगत आरक्षण भारतीय समाज के विकास के लिए वरदान या अभिशाप

( Caste reservation is a boon or a curse for the development of Indian society : Essay in Hindi )

 

प्रस्तावना

भारत में सरकारी सेवाओं तथा संस्थानों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं रखने वाले पिछड़े समुदाय तथा अनुसूचित जातियों और जनजातियों को सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए सरकार ने कानून बनाए हैं।

इस कानून के जरिए सरकारी तथा सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों और धार्मिक/ भाषाई अल्पसंख्यक, शैक्षिक संस्थान को छोड़कर सभी सार्वजनिक तथा निजी संस्थानों में पद तथा सीटों के प्रतिशत को आरक्षण के लिए कोटा प्रणाली प्रदान की गई है।

भारत की स्वतंत्रता से पहले आरक्षण :-

सरकारी नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था स्वतंत्रता के पहले भी मौजूद थी। 1919 के भारत सरकार अधिनियम लागू होने के बाद मुसलमानों को सरकारी नौकरियों में अल्पसंख्यक के लिए आरक्षण की मांग की गई थी।

इस मांग के कारण ब्रिटिश सरकार ने सरकारी नौकरियों में 33.5% स्थान अल्पसंख्यक समुदाय के लिए आरक्षित कर दिया था। इस व्यवस्था को 4 जुलाई 1935 को एक प्रस्ताव द्वारा निश्चित आकार भी प्रदान किया गया।

इस कोटे के तहत 25% आरक्षण मुस्लिमों के लिए तथा एंग्लो इंडियन समुदाय के लिए 8% आरक्षण की व्यवस्था की गई थी। इसके अतिरिक्त अन्य दूसरे अल्पसंख्यक समुदायों के लिए भी 6% स्थानों को आरक्षित किया गया था।

स्वतंत्रता के पश्चात आरक्षण :-

भारत की स्वतंत्रता के बाद सरकारी नौकरियों में मुस्लिमों के आरक्षण को समाप्त कर दिया गया। लेकिन एंग्लो इंडियन समुदाय के लिए आरक्षण की व्यवस्था को अगले 10 साल के लिए जारी रखा गया।

संविधान निर्माताओं ने सामाजिक तथा शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था प्रस्तुत की। इसमें सामाजिक तथा शैक्षिक पिछड़े वर्गों में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, पिछड़ी जातियों को शामिल किया गया।

भारत के राष्ट्रपति द्वारा 1950 में एक संवैधानिक आदेश जारी किया गया। जिसमें राज्य तथा संघ क्षेत्र में रहने वाले इस प्रकार की जातियों के लिए एक अनुसूची जारी की गई।

जिसके अनुसार अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों को प्रारंभ में सरकारी नौकरी तथा लोकसभा तथा राज्यसभा में प्रारंभिक रूप से 10 वर्ष के लिए आरक्षण प्रदान किया गया ।

इसे निरंतर रूप से आठवीं, 23वीं,  45वें, 60वें तथा 79 वें संविधान संशोधन द्वारा अगले 10 – 10 वर्षों के लिए बढ़ाया जाता रहा। फिर 2020 तक के लिए आरक्षण व्यवस्था को बढ़ा दिया गया। लोक सभा द्वारा यह विधेयक पहले ही पारित हो चुका है।

भारतीय संविधान का 104 वां संशोधन इसके लिए किया गया। इस विधेयक के तहत भारतीय संविधान के अनुच्छेद 334 में संशोधन किया गया।

इस विधेयक के अनुसार लोकसभा और विधानसभा में अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों को अगले 10 वर्ष के लिए आरक्षण की व्यवस्था को बढ़ाया गया।

अब लोकसभा तथा राज्य विधानसभा में 25 जनवरी 2030 तक के लिए सीटों में आरक्षण का प्रावधान है। इसके पहले यह सीमा 25 जनवरी 2020 तक थी।

भारत में आरक्षण के लिए संवैधानिक प्रावधान :-

भारत में संविधान में समानता के मौलिक अधिकार के अंतर्गत लोक नियोजन में व्यक्तियों को अवसर की समानता प्रदान की गई है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16 में राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से संबंधित विषयों में सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के अवसर की समानता प्रदान की गई है।

लेकिन राज्यों को यह अधिकार दिया गया है कि वह पिछड़े वर्गों के पक्ष तथा उनके प्रतिनिधित्व के लिए आरक्षण की व्यवस्था कर सकता है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 में धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेद का निषेध किया गया है।

लेकिन अनुच्छेद 15 (4) में राज्यों को सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े हुए नागरिकों के किन्ही वर्गों की उन्नति और अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए विशेष उपबंध करने का प्रावधान भेज दिया गया है।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 341 तथा 342 देश के राष्ट्रपति को यह अधिकार देता है कि वह संबंधित राज्य और संघ राज्य क्षेत्र में राज्यपाल तथा उपराज्यपाल या प्रशासक से परामर्श लेकर इस आरक्षण को विनिर्दिष्ट कर सकता है।

अनुच्छेद 335 में संघ तथा राज्य की गतिविधियों से संबंधित किसी पद या सेवा में नियुक्ति के लिए प्रशासनिक कार्य कुशलता बनाए रखने के साथ अनुसूचित जातियों जनजातियों के सदस्यों के दावों का लगातार ध्यान रखने की व्यवस्था की गई है।

किस वर्ग को आरक्षण प्रदान करने की जरूरत है :-

  • वह वर्ग जो सामाजिक एवं शैक्षिक दृष्टि से पिछड़ा हो
  • उस वर्ग को जो राज्य के आधीन पदों पर पर्याप्त प्रतिनिधित्व न प्राप्त हो कोई जाति स्वर्ग में आ सकती है।
  • यदि उसे जाति के 90% लोग सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े हों।

अखिल भारतीय स्तर पर आरक्षण की व्यवस्था :-

अखिल भारतीय स्तर पर प्रतियोगिता परीक्षा द्वारा सीधी भर्ती से भरे जाने वाले पदों में अनुसूचित जातियों के लिए 15%, अनुसूचित जनजातियों के लिए 7.5%, पिछड़े वर्गों के लिए 27% आरक्षण की व्यवस्था है।

आरक्षण नीति पर पुनर्विचार की आवश्यकता

भारत में आरक्षण देने के पीछे मूल भावना का दुरुपयोग राजनीतिक दलों द्वारा राजनीतिक लाभ के लिए किया जाता रहा है। अब इस विषय पर गंभीर चिंतन एवं मनन करने की जरूरत है।

सामाजिक न्याय करते-करते अन्य वर्गों के साथ अन्याय न हो इस बात का भी ध्यान रखना आवश्यक है।

केवल आरक्षण ही सामाजिक न्याय दिला सकता है यह सोचना भी काफी हद तक गलत है। अतः आरक्षण के अतिरिक्त अन्य दूसरे विकल्प को भी खोजना चाहिए। जिससे समाज के सभी वर्गों की उन्नत हो सके और उन्हें न्याय प्रदान किया जा सके।

निष्कर्ष

आरक्षण की व्यवस्था सामाजिक आवश्यकता थी और एक सीमा तक अब भी है। लेकिन इस बात को भी ध्यान रखना चाहिए कि आरक्षण एक बैसाखी की तरह है जिसके पांव नहीं है।

यदि अपंगता स्थाई न हो तो बैसाखी का उपयोग करना बंद कर देना चाहिए। इस स्वाभाविक और नैसर्गिक सच्चाई को न मंडल आयोग की सिफारिश लागू करने वाले समझ रहे हैं न ही संविधान के 104 में संशोधन के अनुसार काम करने का दावा करने वाले हम वर्तमान लोग समझना चाह रहे हैं।

पिछड़ी जातियों का हमदर्द होना उचित है। लेकिन सामाजिक संबंध समरसता भी एक चुनौती है। सभी राजनैतिक दल आज पिछड़ी जातियों को यह समझाने में लगे हुए हैं कि केवल उनको ही उनके विकास की चिंता है।

लेकिन वास्तव में यह राजनीतिक दल सिर्फ अपना विकास करना चाहते हैं। वे किसी जातियों का विकास नहीं चाहते बस उनका समर्थन जुटाने की कोशिश करते हैं।

लेखिका : अर्चना  यादव

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