Essay on real education in Hindi
Essay on real education in Hindi

निबंध : वास्तविक शिक्षा क्या है ?

(  Essay in Hindi : What is real education? )

 

जब बात शिक्षा की की जाती है तो सहज ही मन में यह सवाल उठता है कि शिक्षा क्या है? वर्तमान संदर्भ में शिक्षा को मात्रा रोजी कमाने का जरिया मान लिया गया है।

प्रायः इसका प्रयोग इन्ही अर्थों में इसी रूप में अभी भी किया जाता है। लेकिन क्या यह वास्तविक शिक्षा है? यह वास्तविक शिक्षा नहीं है। वास्तव में शिक्षा का स्वरूप बहुत ही विस्तृत है।

यह सिर्फ रोजी रोटी कमाने का जरिया नहीं है। शिक्षा जीवन को सफल बनाती है और हमारा आत्मिक विकास करती है, व्यक्तित्व निखार कर हमें आत्मनिर्भर बनाती हैं। सही अर्थों में शिक्षा जीवन के लिए होती है न की जीविका के लिए।

आज मानव जाति प्राणी जगत में सर्वोच्च शिखर पर इसीलिए है क्योंकि उसमें अनुवांशिकता के बंधन को तोड़ कर सफलता पाई है। मानव ने तरह-तरह के बहुत से उपकरण विकसित किए हैं।

मनुष्य प्रकृति जैसे है उसमें हस्तक्षेप करके उसे अपने अनुकूल बना लेता है। मनुष्य बुद्धि और हाथों से ऐसे काम करने में कामयाब हो रहा है जिन्हें पहले कभी नहीं किया गया था।

इसके लिए थोड़े से प्रशिक्षण की जरूरत होती है बस। किसी काम को कई बार करने से व्यक्ति में दक्षता आ जाती है। मनुष्य के कौशल क्षमता और समझने की क्षमता अनंत होती है। मनुष्य में मौलिकता की क्षमता है।

शिक्षा इसी प्रक्रिया को बढ़ाती है। इसलिए मनुष्य ही शिक्षा लेता है और देता है। विभिन्न भाषाओं में शिक्षा का महत्व मानव के पोषण और विकास के लिए, ज्ञान और समाज को बढ़ाने की प्रक्रिया के रूप में समझा जाता है।

ग्रीक भाषा में एजुकेशन का मतलब है मानव के अंदर से निकलना यानी एजुकेशन का अर्थ हुआ मनुष्य की संभावनाओं को उजागर करना, उन्हें समझना और उनके लिए उपयुक्त वातावरण बनाना, जरूरी उपकरण विकसित करना, समर्थ, शिक्षा होना और पूरी प्रक्रिया को संगठित करना।

इसमें एकमात्र जीवंत घटक शिक्षक होता है जो शिक्षार्थी से संवाद करता है और उस के माध्यम से संप्रेषण की प्रक्रिया होती है।

वास्तविक शिक्षा विद्यार्थी के अंदर ही घटित होती है। जैसे खेती में घूप, पानी, खाद, बीज आदि बाहरी चीजें होती है, असल चीज तो जमीन है।

अगर वहाँ खेती ही नही हो सकती तो बीज कुछ नहीं कर सकता। इसलिए शिक्षा के लिए सबसे जरूरी है एक शिक्षार्थी और उसकी ग्रहण शीलता की।

इस तरह से हम कह सकते हैं कि शिक्षा प्रमुख रूप से एक ग्रहण करने, सीखने वाली चीज है। आज विनम्र मानव सभ्यता के हजारों सालों के इतिहास में धीरे-धीरे शिक्षा देने पर जोर दे कर बढ़ता चला गया है।

अब तो नए नए तरीके नए-नए संस्थान, नए नए व्यवसाय खोले जाते हैं और अंत में शिक्षा व्यवसाय के लिए तैयार करने का एक माध्यम बन गई है और अपनी मूल लक्ष्य से भटक गई है।

शिक्षा का मूल उद्देश्य मनुष्य को स्वस्थ और समस्त के रूप में निरंतर बेहतर बनाना है। एक ऐसे समाज की रचना करना है जिससे मनुष्य और समाज दोनों लगातार पहले से अधिक रचनात्मक लाभ विकासशील बन सके अर्थात शिक्षा स्वयं जीवन के उत्तर धरातल पर लेते जाने की प्रक्रिया है।

आज समाज में प्रमुख रूप से शिक्षा औपचारिक व संगठित है जिसके अलग-अलग प्रकार देखने को मिलते हैं, प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च, इसमें भी अलग-अलग प्रकार हैं, तकनीकी, पेशेवर, कॉमर्स आदि। इनके अलग-अलग विषय गणित, भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, अर्थशास्त्र, समेत विज्ञान, साहित्य, कला आदि आज ज्ञान का विशेषज्ञता के नाम पर विखंडन होता जा रहा है। इतिहास को भी प्राचीन, मध्यकालीन, आधुनिक इतिहास में बांट दिया गया है।

शिक्षा के लिए कहा जाता है कि one should know something about everything and everything about something. इस तरह से नीचे से ऊपर तक शिक्षा एक पिरामिड जैसी संरचना बन जाती है।

आज के औपचारिक शिक्षा का मानक के श्रेणियों में विभाजित है। आज से पहले जब शिक्षा की पद्धति नही थी तब भी लोग स्वाध्याय के जरिए शिक्षित होते थे।

आधुनिक काल में भी प्रभावशाली लोगों ने शिक्षा के द्वारा ही ऐतिहासिक योगदान दिया है, जिसमें लियोनार्डो द विंची, अब्राहम लिंकन, चार्ल्स डार्विन जैसे लोग हैं।

हमारे देश में भी रामानुज, राहुल सत्कृतयान जैसे प्रखंड विद्वान रहे हैं। इसलिए कहा जाता है कि शिक्षा की सबसे बड़ी और सामाजिक पुस्तक जीवन और जगत ही है।

निष्कर्ष  शिक्षा के तीन स्पष्ट भाग हो सकते हैं सूचना, ज्ञान और विवेक। आज सूचना की क्रांति हो जाने के बाद हम कह सकते हैं कि शिक्षा को स्थापित किया जा रहा है। शिक्षा को व्यवसाय बना दिया जा रहा है।

परंतु वास्तव में सूचना जब तक ज्ञान और ज्ञान जब तक विवेक में रूपांतरित न हो जाए तब तक शिक्षा का कोई मतलब ही नहीं होता है।

आज भी समाज में देखा जाता है कि अशिक्षित व्यक्त विवेकशील होते हैं। उन्हें सही गलत का अंतर पता होता है। और बहुत सारी शिक्षित व्यक्ति भी निर्विवेक होते हैं।

इसलिए शिक्षा को व्यवसाय तक सीमित करके शिक्षा की अवमानना और मानव जीवन का अपमान करना है।

क्योंकि मनुष्य ने शिक्षा का आविष्कार जीवन को उच्चतर और सुंदर बनाने के लिए किया है, न कि जीवन को व्यवसाय परक बनाने के लिए किया। जीवन को उच्चतर और सुंदर बनाने वाली शिक्षा की वास्तविक शिक्षा होती है।

लेखिका : अर्चना  यादव

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