ह़ाजत तुम्हारी

ह़ाजत तुम्हारी | Ghazal Hajat Tumhari

ह़ाजत तुम्हारी

( Hajat Tumhari )

मयस्सर हो गर हमको उल्फ़त तुम्हारी।
करेंं हर घड़ी दिल से मिदह़त तुम्हारी।

न छूटेगी अब हमसे संगत तुम्हारी।
हमें हर क़दम पर है ह़ाजत तुम्हारी।

हमारी शिकस्ता सी इस अन्जुमन में।
मसर्रत की बाइ़स है शिरकत तुम्हारी।

जहां भर की दौलत का हम क्या करें,जब।
ख़ुशी दिल को देती है क़ुर्बत तुम्हारी।

ख़ुदा के लिए आ के दिल से लगा लो।
हमें मार डालेगी फ़ुर्क़त तुम्हारी।

लुभाती है पल-पल ये ज़ह्न-ओ-जिगर को।
गुलों से भी अफ़ज़ल है नकहत तुम्हारी।

फ़राज़ आज थोड़ी सी फ़ुर्सत है उनको।
सुनें आज शायद वो दिक़्क़त तुम्हारी।

सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़

पीपलसानवी

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