दलितों के भगवान थे: डॉ भीमराव अम्बेडकर
आधुनिक समय में जहां लोग कुत्ते का जूठा पानी तो पी सकते थे लेकिन एक मनुष्य के छूने से लोगों का धर्म भ्रष्ट हो जाता था। उन्हें गांव से दूर जंगलों बस्तियों में रहने को मजबूर होना पड़ता था। उनकी जिंदगी जानवरों से भी बदतर थी।
ऐसी परिस्थिति में एक ऐसे दिव्य महामानव का जन्म होता है जिसने दलित, पिछड़े , आदिवासी समाज को मनुष्य के नाते उन्हें प्रेम किया उन्हें जीने का अधिकार दिया। यही कारण है कि देश का दलित समाज राम, कृष्ण आदि भगवानों की अपेक्षा अंबेडकर को अपना भगवान समझ कर पूजता है।
सच है कि दलितों को जीने का अधिकार जिस एक व्यक्ति ने दिया वह अंबेडकर ही थे। स्वयं दलित महार समाज से होने के कारण छुआछूत का दंश उन्हें बचपन से ही भोगना पड़ा था। छुआछूत का दंश क्या होता है यह भुक्तभोगी ही समझ सकता है। हजारों वर्षों के गुलामी की तह में जाए तो यही दिखाई पड़ेगा की गुलामी का मूल कारण छुआछूत एवं जाति व्यवस्था थी।
वर्ण व्यवस्था के कारण हजारों वर्षों तक स्त्रियों शूद्रों आदि को शिक्षा से वंचित रखा गया।
डॉ भीमराव अंबेडकर प्रश्न करते हुए कहते हैं कि एक वर्ग और अकेला एक ही वर्ग शिक्षा और ज्ञान के लिए हकदार हो। एक वर्ग और अकेला एक ही वर्ग शास्त्रों का हकदार हो । एक वर्ग और अकेला एक ही वर्ग व्यापार करें, एक वर्ग और अकेला एक ही वर्ग गुलामी करें। ( अंबेडकर सम्पूर्ण वांग्मय खंड १ पृष्ठ २१९) एक अन्य जगह कहते हैं कि चतुर्वर्ण का एक साधारण नियम यह था कि शूद्र कभी भी ब्राह्मण नहीं हो सकता था। शूद्र जन्मजात शूद्र होता था । ब्राह्मण नहीं बनाया जा सकता था।( वहीं पृष्ठ २८५ खंड ७) ।
इस प्रकार से हम देखते हैं कि शिक्षा का संपूर्ण अधिकार केवल ब्राह्मणों के पास था जिसे वे अपना एकाधिकार मानते थे। आज भी भारत के अधिकांश उच्च शिक्षण संस्थानों में उन्हीं का दबदबा है। भारत के विश्वविद्यालय के प्रोफेसर कुलपति जज संपूर्ण न्याय तंत्र का बहुत बड़ा हिस्सा ब्राह्मण वर्ग के पास है।
समाज में थोड़ा बहुत जो परिवर्तन दिख रहा है उसके पीछे किसी एक व्यक्ति का बहुत बड़ा हाथ है तो वह डॉक्टर भीमराव अंबेडकर थे। आज जो दलित पिछड़ा समाज थोड़ी बहुत शिक्षा प्राप्त कर उच्च शिक्षण संस्थानों में पहुंच रहा है चाहे वह आरक्षण के बल पर ही क्यों ना हो यह सब डॉक्टर साहब की दूरदर्शी सोच का परिणाम है।
भारत में ऐसे धार्मिक साहित्य की रचना की गई जिसमें शूद्रों को समस्त अधिकारों से वंचित कर दिया गया। शूद्रों को सम्मान पाने का अधिकार नहीं है। उन्हें शिक्षा की जरूरत नहीं है। उनको शिक्षा देना पाप है और अपराध है । शूद्रों के पास संपत्ति नहीं होनी चाहिए यदि वह संपत्ति हासिल करने में सक्षम हो तो भी उसे संपत्ति हासिल करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
यदि कोई शूद्र सम्पत्ति हासिल कर लेता है तो उसका मालिक इसे जप्त कर सकता है। संपत्ति रखने का अधिकार उन्हीं वर्णों को है जो मालिक बन सकते हो। शूद्र को राज दरबार में कोई नौकरी नहीं करनी चाहिए। उसे उच्च वर्णों की सेवा करनी चाहिए। और उनसे जीविका प्राप्त करनी चाहिए । मालिक जो जी भरकर खा ले उसके बाद उसे जूठन से संतोष करना होगा ।
कोई ब्राह्मण किसी शूद्र को अपनी सेवा करने के लिए मजबूर कर सकता है चाहे उसे ब्राह्मण ने खरीदा हो या नहीं क्योंकि ब्राह्मण की सेवा करके शूद्र को परलोक में पुण्य प्राप्त होता है । शूद्रों को अपने मालिक को कभी नहीं छोड़ना चाहिए शूद्र जन्म से ही दास होता है । शूद्रों को हमेशा नौकर बने रहना पड़ेगा। उच्च वर्णों के दो जन्म होते हैं । वह जन्म दो बार लेते हैं। उनका दूसरा जन्म तब होता है जब वह जनेऊ पहनना शुरू कर देते हैं । शूद्रों का केवल एक जन्म होता है क्योंकि उसके लिए जनेऊ वर्जित है।
इसी प्रकार से उच्च वर्णों के व्यक्तियों के नाम उनकी श्रेष्ठता के अनुरूप रखा जाना चाहिए और शूद्रों के नाम से उनकी छोटी हैसियत प्रकट होनी चाहिए। क्योंकि शूद्र एक अपवित्र प्राणी होता है। इसलिए किसी को शूद्र की उपस्थिति में वेद पाठ या धार्मिक क्रियाकलाप नहीं करना चाहिए। अगर कोई शूद्र वेद पाठ सुनता पाया जाए तो उसके कान में खौलता हुआ तेल अथवा पिघला सीसा या लाख डाल देना चाहिए ।
अगर कोई शूद्र वेद पाठ करता है या धर्म शास्त्रों का उपदेश देता है तो उसकी जीभ काट दी जानी चाहिए। यदि कोई शूद्र किसी उच्च वर्ण के व्यक्ति पर हमला कर दे तो उसके उस अंग को काट देना चाहिए जिससे उसने अपराध किया है। शूद्रों की जिंदगी की कोई अहमियत नहीं है ।
उच्च वर्ण का कोई भी व्यक्ति शूद्र की जान ले सकता है। उसे मुआवजा नहीं देना पड़ेगा। बहुत हुआ तो उसे थोड़ा बहुत मुआवजा देना पड़ सकता है। लेकिन यही वारदात अगर कोई शूद्र किसी ब्राह्मण के साथ कर दे तो उसकी तुलना में उसे भारी भरकम मुआवजा देना पड़ेगा। शूद्रों के बारे में धार्मिक ग्रंथो का यही कहना है कि ब्रह्मा ने उन्हें दासता के लिए बनाया है।( जाति प्रश्न के समाधान के लिए रंगनायकम्मा पृष्ठ 48) ।
इस प्रकार से हम देखते हैं कि शुद्र समाज को हमारे धर्म ग्रन्थों , शास्त्रों जिसकी दुहाई दिया करते हैं समस्त प्रकार के अधिकारों से वंचित कर दिया गया। इस प्रकार से देखा जाए तो शास्त्रों की रचना शूद्रों को अशिक्षित एवं समस्त प्रकार के अधिकारों से वंचित करने के लिए की गई थी।
यह शास्त्र हमारे धर्म गुरुओं की घटिया मानसिकता दर्शाती है। कहां जाता है कि शारीरिक गुलामी से ज्यादा घातक मानसिक गुलामी होती है। शास्त्रों के माध्यम से शूद्रों को हजारों वर्षों से मानसिक गुलाम बनाने का प्रयास किया गया। इस मानसिक गुलामी का असर है कि आज भी शूद्र समाज गर्दन उठाकर नहीं जी पा रहा है अभी भी इसका असर दिखलाई पड़ता है। भारत में अभी इस मानसिक गुलामी से मुक्ति प्राप्त करने के लिए हजारों वर्षों तक इंतजार करना पड़ेगा।
यही कारण है कि शूद्र दलित समाज डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को अपना भगवान मानता है। शूद्रों दलित पिछड़े आदिवासी समाज को डॉक्टर अंबेडकर को भगवान मानना ही चाहिए। समाज में राम राज्य नहीं बल्कि भीम राज्य की आवश्यकता है। डॉ भीमराव अंबेडकर जैसे महामानव के ही कारण कांशीराम, मायावती, द्रौपदी मुर्मू जैसे लोग उच्च पदों पर पहुंचे हैं।
नहीं तो हमारे शास्त्रों ने तो इन्हें जानवरों से भी गया गुजरा माना था। लेकिन विडंबना यही है कि शुद्र समाज डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की मूर्तियां पूजने एवं जुलूस निकालने में ज्यादा अटक गया है।
जिस प्रकार से उच्च वर्ग के लोग रामचरितमानस गीता आदि की पूजा एवं अध्ययन करते हैं उसी प्रकार से शूद्र , दलित , पिछड़ा समाज डॉक्टर अंबेडकर द्वारा लिखित साहित्य एवं संविधान का अध्ययन करने लगे तो इस समाज में एक नई क्रांति का संचार होगा। अंबेडकर को पूजने एवं मूर्तियां बनाने की नहीं बल्कि उनके विचारों का अध्ययन कर उस पर चलने की आवश्यकता है।

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )