Shikshak Mahaan

हमारे हाईस्कूल के शिक्षक | Hamare High school ke Shikshak

मैंने हाईस्कूल सीताराम सिंह इंटर कॉलेज बाबूगंज बाजार से किया। सीताराम सिंह जी आटा गांव के ठाकुर परिवार के थे। पहले विद्यालय का नाम महाराणा प्रताप इंटर कॉलेज था जो कि उनकी मृत्यु के पश्चात बदलकर उनके नाम पर कर दिया गया ।

वे आजीवन प्रधानाचार्य रहे । लेकिन जब मैं पढ़ रहा था तो श्री वंश बहादुर सिंह प्रधानाचार्य थे। ठाकुर परिवार के होने के कारण किसी से डरते नहीं थे । विद्यालय में बहुत सख्त पहरा था।

किसी की गलती होने पर फट्टो से पिटाई करते थे । कभी कभी तो घंटों मुर्गा बना कर धूप में खड़ा करवा देते और उस पर ईंट रखवा देते थे। कोई ज्यादा इधर-उधर करता तो पीठ पर फट्टो से सोटे लगाते थे। मैं उनसे बहुत डरता था । उनसे बात करते हुए थर-थर कांपने लगता था।

परंतु अनुशासन को डंडे के बल पर नहीं सिखाया जा सकता। भयभीत बालक और गलतियां करता है । मार खा खा कर कुछ दोस्त पक्के हो गए थे । जिन्हें कितना भी मारा जाए कुछ असर ही नहीं होता था।

किसी लड़के को यदि लड़की से बातचीत करते देख ले तो पूछो ही मत। लड़कियां तो बच जाती थी । लेकिन लड़कों की तो जान आफत में पड़ जाती थीं । उसको मार- मार कर हड्डी पसली एक कर देते थे।

हाई स्कूल की कक्षा में आते-आते लड़के लड़कियों में किशोरावस्था आ जाती है। विपरीत लिंग के प्रति सहज में आकर्षण बढ़ने लगता है । लड़कों और लड़कियां में सहज में आकर्षण बढ़ने लगता है। लड़के तो अपनी इच्छाएं व्यक्त कर देते थे लेकिन लज्जाशील स्वभाव के कारण लड़कियां व्यक्त नहीं कर पाती थी।

बाबूगंज बाजार का एकमात्र इंटर कॉलेज था इसलिए छात्राएं भी बड़ी मात्रा में पढ़ने आती थी । लड़के तो और भी जगह पढ़ने चले जाया करते थे । सह शिक्षा के अपने लाभ भी हैं हानियां भी हैं। मेरी समझ से प्रेम पर इतना प्रबंध न लगाया जाता तो समाज में इतनी दुश्चरित्रता न फैलती।

कहते हैं जिसका विरोध किया जाता है । प्रतिबंध जिस पर लगाया जाता है वह और बढ़ता है। प्रेम पर प्रतिबंध लगाने का ही परिणाम है कि दुनिया में जो भी फिल्में प्रेम पर बनती हैं उनमें भारत सबसे आगे है।

भारत में तो बिना प्रेम के कोई फिल्म भी हो सकती है इसकी कल्पना ही नहीं की जा सकती हैं।मनोविज्ञान के जन्मदाता फ्रायड के जीवन की एक घटना है। जो इस प्रकार है —

एक बार उनका लड़का खो गया। बहुत खोजबीन के पश्चात भी नहीं मिला तो उनकी पत्नी ने उनसे कहा कि-” कितने निर्दयी बाप हो, बच्चा कब से ग़ायब है तुम खोज नहीं सकते।”

तब फ्रायड ने पूछा कि -“बताओ क्या तुमने उसे कहीं जाने के लिए रोका तो नहीं था “। उनकी पत्नी ने कहा-” रोका तो था। पीछे फाल के पास जाने के लिए।”
फ्रायड ने कहा -“फिर जाकर देखो बच्चा वही होगा।”
अंत में जब उनकी पत्नी खोजने गई तो बच्चा उनको वही मिला।

फिर पत्नी ने पूछा कि-” आखिर तुम्हें कैसे मालूम हुआ कि बच्चा वही होगा , जबकि तुम यहां काम में व्यस्त थे।”
फ्रायड ने कहा कि -” मैं जान लिया कि तुमने बच्चों को जहां मना किया है वहीं गया होगा। क्योंकि बच्चों का यह स्वभाव है कि उन्हें जिस काम के लिए रोका जाता है उसी को और करते हैं।”

मेरी क्लास में एक मोटा ताजा लड़का आता था। उनकी बाजार में परचून की दुकान थी ।वह सबसे पहले आकर सबसे आगे सीट पर बैठता था लेकिन वह पढ़ने लिखने में बहुत कमजोर था। जिसके कारण खूब मार खाता था।
मेरी कक्षा में तेज तर्राक लड़कों में हिंदी वाले गुरुजी मुन्नी लाल यादव का लड़का अजय था। उसकी राइटिंग गजब की थी।

पूरी क्लास में फर्स्ट अधिकांशत वही आता था। बाद में वह अमेरिका में साइंटिस्ट भी हुआ। लेकिन कुछ वर्षों पूर्व किसी हादसे में उसकी मृत्यु हो गई। कहते हैं परमात्मा जिन्हें ज्ञान देता है उनकी उम्र भी कम कर देता है। अजय यदि आज होता तो भारत के महान वैज्ञानिकों में उसका भी नाम होता।

अन्य दोस्तों में जो पढ़ने में तेज थे वह थे धर्मेंद्र ,आनंद, सतीश, सच्चिदानंद आदि। कमजोर छात्रों में एक रामपाल था ।जिसकी बचपन में ही हाई स्कूल में शादी हो गई थी । वह बहुत मजाकिया भी था । बहुत से दोस्तों का नाम याद नहीं आ रहा है ।कमलेश कुमार भारतीय जो हमारे अच्छे दोस्त तो में रहे जिनके साथ आज भी खूब अच्छी दोस्ती है।

लड़कियों में किसी का नाम याद नहीं आ रहा। चेहरे तो यादों के झरोखे में कुछ-कुछ झलक रहे हैं । मेरी पता नहीं क्या बचपन से ही आदत रही की लड़कियों से ज्यादा बात नहीं करता था। मैं झेंपू टाइप का था। मैं इतना पढ़ने में तेज तर्राक भी नहीं था की लड़कियां मेरे पीछे पड़ती । एक तरह से प्रेम के मामले में मैं फिसड्डी सिद्ध होता था।

यदि किसी से किया भी होगा तो एकांगी प्रेम करना रहा। उनके मन में क्या है कभी सोचा नहीं। यही कारण है कि हमारे जीवन में प्रेम कभी परवान नहीं चढ़ सका। इसका एक कारण मुझे यह भी लगता है कि मेरे परिवार की अति मर्यादा। मेरी मां अक्सर हिदायत देती रहती कि किसी के द्वार पर मत बैठा करो।

जिनके घरों में हम उम्र लड़कियां होती थी तो उनसे बात करने पर डाटा करती थी। आज भी मैं प्रेम के मामले में असफल हूं । कभी ज्यादा बातचीत नहीं करता । किसी से कोई कभी बोल दिया तो ठीक नहीं तो चुप बैठा रहता हूं । कुछ लिखता पढ़ता रहता हूं।

कहते हैं संसार में जितनी श्रेष्ठ रचनाएं हैं वह सब प्रेम में असफल प्रेमियों ने की है। प्रेम ऊर्जा है, शक्ति है, प्रेम की ऊर्जा जहां भी होती है वही अपना सौंदर्य बिखेरती है । हिटलर जैसा तानाशाह शासक को कहा जाता है कि यदि उसे उसकी प्रेमिका का सानिध्य मिल गया होता तो इतना क्रुर नहीं होता।

ऊर्जा नष्ट नहीं होती बल्कि केवल उसके रूप में परिवर्तन किया जा सकता है ।‌प्रेम रूपी ऊर्जा को नष्ट करने की मूर्खता का ही दुष्परिणाम है कि यह दुनिया रहने लायक भी नहीं रही ।यदि प्रेमी प्रेमिकाओं को मिलने दिया जाता तो क्यों वह छुप-छुप कर मिलते ।

पुरुष की अपेक्षा स्त्री का शरीर जल्दी विकसित होता है। हाई स्कूल की कक्षा में पहुंचते हुए लड़कियां युवा हो जाती हैं लेकिन लड़के इतनी परिपक्व नहीं हो पाते। पहले के जमाने में तो इतना टीवी, मोबाइल, इंटरनेट आदि का प्रचलन गांव में नहीं था जिससे वह कुछ ना कुछ ऐसे दुष्प्रभाव से बचे रहते थे ।

मेरे बाबूगंज में आज भी टॉकीज नहीं बना है। आज कल बच्चों में बढ़ती दुष्ट प्रवृत्तियों के कारण को देखा जाए तो वह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया प्रमुख दोषी है। दिन रात टीवी के सामने बैठकर आपका बच्चा लूट, हत्या, बलात्कार ,झूठ, फरेबी, मारधाड़ देख रहा है तो हम कैसे कल्पना कर ले कि हमारा बच्चा सच चरित्र बन जाएगा।

अब पुनः चलते हैं विद्यालय की ओर। विज्ञान में भौतिक विज्ञान संतोष कुमार जायसवाल सर पढ़ाते थे। जो कि बाद में प्राथमिक विद्यालय में सरकारी अध्यापक हुए। रसायन विज्ञान श्री कृष्णा राम मौर्य सर पढ़ाते थे। जो कि इफको में साथ ही ट्यूशन भी पढ़ाते रहे । आज उन्होंने अपना स्वयं का डिग्री कॉलेज, इंटर कॉलेज, पॉलिटेक्निक कॉलेज आदि खोल लिया है।

वे इस बात के उदाहरण है कि व्यक्ति के पास लगन और कुछ करने की चाहत हो तो एक न एक दिन वह मंजिल पाकर ही रहता है। पुरुषार्थ करना हमारा कर्तव्य है जिसे हमें हर संभव तरीके से करने का प्रयास करना चाहिए। उनके विद्यालयों में आज 10000 की संख्या में बच्चे अध्ययन करते हैं ।

उनके सफल होने में एक बड़ा कारण यह भी रहा है उनके स्वयं की बहुत सी जमीन थी। राजनीतिक रूप से भी उनकी अच्छी पकड़ थी । भाग्य भी अनुकूल चल रहा था जिसके कारण वह सफल इंसान बन सके।

जीव विज्ञान उमाशंकर मौर्य सर पढ़ाते थे । बचपन में एक दो बार मैंने मेंढक का चीर फाड़ भी किया परंतु बाद में बंद कर दिया । इंटर में मैथ लेने के कारण सब छूट गया। वह बहुत अच्छा पढ़ाते रहे स्कूल छोड़ने के पश्चात वे राजनीति में आ गए । वह अपने गांव चिलौडा के प्रधान भी रहे।

सामाजिक विज्ञान शारदा प्रसाद शुक्ला जी सर पढ़ाते थे। वे दुबले पतले थे। वे बच्चों को कान बहुत उमेठते थे। एक बार पढ़ाते हुए उन्होंने बताया कि एक बार क्या होता है कि एक बच्चे को चिट्ठी पढ़ने को दी ।चिट्ठी में लिखा था कि पिताजी अजमेर गए और उसने पढ़ा कि पिताजी आज मर गए । अब क्या होता है सारे घर में रोना पीटना मच जाता है। आज के बच्चों का यही हाल है।

इंग्लिश राम प्रताप पटेल सर पढ़ाते थे। वह इंग्लिश बहुत अच्छी प्रकार से पढ़ाते थे। पढ़ाते पढ़ाते अक्सर वह कुछ कहानियां भी बताने लगते थे जिससे कि बच्चे ऊबे ना।

हिंदी मुन्नी लाल यादव सर पढ़ाते थे। जिनका बेटा अजय भी हमारे ही क्लास में पढ़ता था। वह हिंदी को बहुत समझा करके पढ़ाया करते थे।

गणित को रामराज पांडे सर पढ़ाते थे। उन्हें गणित में महारत हासिल थी। सैकड़ो निरमेय प्रमेय उन्हें जबानी याद थे। रिटायर्ड होने के पश्चात उन्होंने योग साधना का मार्ग अपनाया और आज भी पूर्ण रूप से स्वस्थ हैं।

उसे समय भले हम बहुत डरते रहे हो परंतु अब जब भी विद्यालय जाता हूं या जब भी अपने गुरुजनों से मुलाकात होती है तो बहुत सम्मान पूर्वक बात करते हैं।

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

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