
आज मै प्रस्तुत हूँ अपने एक शानदार दोस्त के साथ जिसके साथ मेरा संम्बंध लगभग उन्नीस साल पुराना है। जिसके साथ हँसी मजाक मे ही इतने वर्ष कैसे बीत गए मुझे पता ही नही चला। जो परेशानियों मे मेरे साथ मजबूती से खडा रहा और आज भी बिना मेरे पैरो को दबाए बिना सिर की चंम्पी किए बिना नही सोता। जिसने मुझसे वादा किया है कि एक बार बैकाक चलेगे पापा..।
तो मित्रों प्रस्तुत हूं अपने एक रचना गंध की शैली में….शीर्षक है मेरा सबसे अच्छा मित्र!!
ये विचार संस्मरण के केन्द्र बिन्दू या नायक है ….यशवंत सिंह सर्राफ
ये तराशना होता है जब आप अपने पाल्यों को शानदार सुख सुविधाओं से अलग जीवन के अन्तर्द्वदों और आनदेखे पहलूओ से अवगत कराते हो…
अब वो बीस साल का होने को है जैसे सब माता पिता होते है मैं भी उसी तरह का एक भारतीय पिता हूँ जिसे अपनी संतानों के भविष्य की चिंता है।
पर मैने उससे भी कुछ अलग करने का प्रयास किया, जिससे मेरी संतान आन्तरिक और मानसिक रुप से और भी सुदृण और मजबूत हो जाए….
शारिरिक मजबूती के लिए जहाँ मैने एक पहलवान के जैसे ट्रीट किया जिससे आज वो एक मजबूत आदमी के रूप में नजर आता है जिसकी हथेलियों की पकड़ अच्छे अच्छो का पसीना निकाल दे। और इसकी आजमायीस भी देख ली जब शहर के एक गुण्डे को उसने दो मिनट मे ही जमीन पर लिटा दिया।
यद्धपि मै ये जानता हूँ हो कि पढाई में वो कुछ कमजोर ही रहा पर कभी भी फेल नही हुआ अंक पत्र पर नंम्बर तो लगभग सामान्य ही रहा पर व्यवहारिकता में उसे कोई भी पछाड नही सकता किससे कब कहाँ और कैसे बात करनी चाहिए, किसके आगे कितना झुकना चाहिए इसकी एक शानदार परख है उसे… आभावों मे नही पाला तो फिजूल खर्ची को भी जीवन में नही आने दिया…
कुछ लोग कहते है कि लम्बाई थोडी छोटी है तो कुछ ये भी कहते है कि थोडा मोटा होता जा रहा है पर मैं जानता हूँ के ये उसकी चर्बी नही वरन ये एक आनुवंशिक लक्षण है जिसे फिलहाल मै तो नही खत्म कर सकता हूँ।
कुछ गुण है तो कुछ अवगुण भी हो सकते है जो शायद मैं भी नही जानता हूँ पर मैने कोशिश की कि उस जिम्मेदारी के साथ पूर्णतः न्याय कर पाऊं जिसे अकेले पूरा करना मुश्किल था।
अपने विचार जरूर दिजिएगा चाहे आलोचना हो या समालोचना मुझे सहर्ष स्वीकार है और ये ही मेरे लेखनी को तराशने का कार्य भी करेगा।
शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )