हिंदी फिल्मी गीत और जीवटता

हिंदी फिल्मी गीत और जीवटता

“सूरज देख रुक गया है

तेरे आगे झुक गया है ।”

प्रचंड हौसलों की बयानी करता हुआ यह गीत जता देता है कि जिंदगी के हर इम्तिहान में तपना है और निखर कर जीत पर, अपना नाम दर्ज करना है , क्योंकि जिंदगी फूलों की सेज नहीं होती –

  ” कांँटों पे चल के मिलेंगे, साये बाहर के,

    रुक जाना नहीं, तू कहीं हार के” 

( मजरुह सुल्तानपुरी )

 

सृष्टि का कण-कण, अपनी गति से हर क्षण संचालित है। चरैवेति -चरैवेति के सिद्धांँत का पालन करता है।

 

 ” नदिया चले, चले रे धारा ,

    चंदा चले ,चले रे तारा ।

    तुझको चलना होगा”

  ( इंदीवर )

 

सारे जड़ – चेतन को ऊर्जसित और गतिमान करना सृष्टिकर्ता की रीति है। इसी रीति से ही सबको प्रीत है। जो जड़ है, गतिहीन है ,वो श्री विहीन है। ग्रह ,नक्षत्र ,तारामंडल समस्त ब्रह्मांड के अवयव चलायमान है । कर्म योग में रत हैं तो-

 

” ओ माझी चल, 

तू चले तो छम- छम बाजे ,

मौजों की पायल ।

आशाओं से नाता जोड़ ले ,

 ये निराशा के बंधन तोड़ दे , 

आज तो पीछे रह गया है

 सामने है कल “

( आनंद बख़्शी )

 

तो यूँ ही-

 

“जीवन चलने का नाम

चलते रहो सुबह ओ शाम

के रास्ता कट जाएगा मित्रा

के बादल छंट जाएगा मित्रा

कि दुःख से झुकना न मित्रा”

(इंद्रजीत सिंह तुलसी)

 

जिंदगी के सफर में बहुत सारे उतार-चढ़ाव/ पड़ाव आते हैं ,जहां मन कभी मुरझा जाता है । अवसाद के घेरे उसे घेर लेते हैं। निराशा के बादल छा जाते हैं, फिर कोई गीत उसके कानों में गूंँजता है कि –

“चल मुसाफ़िर तेरी मंज़िल दूर है तो क्या हुआ ”

(अंजान)

 

उसके कदम प्रयासों की ओर बढ़ते हैं । मंजिलों की तलाश में निकल पड़ते हैं –

” मुसाफ़िर हूंँ यारो ,न घर है न ठिकाना। 

  मुझे चलते जाना है, बस चलते जाना”

( गुलज़ार)

 

यकीनन हर मोड़ पर कुछ विघ्न /बाधाएंँ कुछ चुनौतियांँ/ उलझनें खड़ी होती हैं, पर उन्हीं से टकराकर निकलना ही जिंदगी है, जिंदादिली है।

” हौसला न छोड़, कर सामना जहान का

 वो बदल रहा है देख ,रंग आसमान का

ये शिकस्त का नहीं ,ये फ़तह का रंग है 

 ज़िंदगी हर क़दम, एक नई जंग है “

(आनंद बख़्शी)

 

तो

” जगा ले जज़्बा ”

( अमिताभ भट्टाचार्य)

 

निराशा के काले बादलों को हटाकर ,

आशाओं की ज्योत जगा कि जिंदगी कहती है –

” आशाएंँ -आशाएंँ..  

ले कर सूरज से आग- आग

गाये जा अपना राग -राग

कुछ ऐसा करके दिखा

 ख़ुद ख़ुश हो जाए ख़ुदा 

आशाएँ खिले दिल की

उम्मीदें हँसे दिल की

तूफ़ानों को मोड़ दें 

अब मुश्किल नहीं कुछ भी “

(इरफ़ान सिद्दीकी)

 

धूप को गले लगा, चांँदनी से प्यार कर। ज़िंदगी हसीन है ज़िंदगी से प्यार कर।

आशाओं – उमंगों से भरा हुआ हर कदम ,जब चल पड़ता है तो मन गुनगुनाने लगता है –

” मैं चली तो, झूम उठी ज़िंदगी , 

मैं चली तो, जाग उठी रोशनी “

(जावेद अख़्तर)

और पर लगा के .…

 ” उड़ने लगा मन बावरा रे, 

 आया कहांँ से ये हौसला रे “

( जयदीप साहनी)

 

जुनूं और हौसले की डोर थामे हुए आवाज आती है प्रतिकूलता पर वार करती हुई कि….

 ” ये हौसला कैसे रूके 

मुश्किल मंज़िल तो क्या

 तन्हा ये दिल तो क्या! 

 रुत ये टल जाएगी

हिम्मत रंग लाएगी

 सुबह फिर आएगी “

(मीर अली हुसैन)

 

शक्ति स्वरूपा है तू सृष्टिकर्ता भी …

 ” कोमल है कमज़ोर नहीं तू।

   शक्ति का नाम ही नारी है। 

   सबको जीवन देने वाली

  मौत भी तुझसे हारी है “

 ( इंदीवर)

फिर

 ” काहे को रोये, सफल होगी तेरी आराधना “

(आनंद बख़्शी)

 

इधर- उधर, इस दर – उस दर को मत देख । थाम ले खुद का आंँचल

  ” कहता है यह पल , ख़ुद से आगे निकल । 

 जीते हैं चल, जीते हैं चल”

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत “

( प्रसून जोशी)

 

खुद को आवाज दो । कभी अपना साथ लो कि –

” मुश्किल में है कौन किसी का , 

  समझो इस राज़ को, 

 लेकर अपना नाम कभी तुम , 

 ख़ुद को आवाज़ दो”

( आनंद बख़्शी)

 

शब्दों की अपार ऊर्जा है। शब्द ब्रह्म है। इन सीधे- सरल शब्दों को जब भावनाओं के द्वारा शक्ति मिलती है, तो उनका एक अलग ही रंग उपस्थित हो जाता है, जो आंदोलित / उर्जसित करता है । मन से निराशा के कुहासे को हटा कर फिर से उत्साह/ सकारात्मकता की ओर ले जाता है –

 

” कुछ पाकर खोना है

कुछ खोकर पाना है

जीवन का मतलब तो

आना और जाना है

दो पल के जीवन से

इक उम्र चुरानी है “

(संतोष आनंद)

 

जिंदगी के अनेक पहलुओं को फिल्मों में चित्रित किया जाता है ।पटकथाओं के अनुसार बुना जाता है । गीतों में ढाला जाता है।

यूंँ तो ये फिल्मी गीत पटकथा के हिसाब से लिखे जाते हैं लेकिन ये कब हमारी जिंदगी की पटकथा के हिस्से बन जाते हैं ,यह सचमुच में कमाल की बात है।

कौन है, जिस ने विभिन्न श्रव्य / दृश्य माध्यमों से इन गीतों को न सुना हो या इस तरह के गीतों से जीवन में कभी न कभी प्रेरणा न पाई हो। नई दृष्टि से सृष्टि को न देखा हो। यूँ भी भारत की जीवन शैली और संस्कृति में गीत रचे बसे हैं।

किसी के कथन/ पंक्तियांँ, कहे जाने के तमाम ढंग/ जतन हमारे ऊपर असर करें या न करें, ये साज- संगीत और गीत हमें अवश्य चैतन्य करतें है। प्रेरणा देते हैं सही दिशा की ओर निरंतर चलने की ,जीवन को और अधिक सूक्ष्मता और गहराई से समझ पाने की । अपने अस्तित्व को ढूंँढने की, अपनी खूबियों को परखने और खुद को, अपने हौसलों को आजमाने की। कि –

 

” अभी- अभी हुआ यक़ीं

कि आग है मुझमें कहीं

हुई सुबह मैं जल गया

सूरज को मैं निगल गया

रूबरू रौशनी”

( प्रशून जोशी)

 

हमेशा से ही कमजोर असहाय , निर्बल पर अत्याचार होता आया लेकिन हौसलों की जीत हुई, न्याय की जीत हुई, जीवटता की जीत हुई –

 “निर्बल से लड़ाई बलवान की,  

ये कहानी है दीये की और तूफ़ान की”

( भरत व्यास)

 

“जो इंसान जितना ही पसीना बहाए

वो उतना सोना उगाए

ये सोना हरा- हरा होगा

बड़ा ही खरा -खरा होगा”

( राजेन्द्र कृष्ण)

 

शुरुआत कभी भी कर सकते हैं कि “आरंभ है प्रचंड , कृष्ण की पुकार है, यह भागवत का सार है” ( पीयूष मिश्रा)”

आरंभ शुभ है ,तो अंत भी होगा मंगलकारी कि –

 

” सर झुकाने से कुछ नहीं होता, 

सर उठाओ तो कोई बात बने। 

 ज़िंदगी भीख में नहीं मिलती,

 जिंदगी बढ़ के छीनी जाती है । 

इस हक़ीक़त को तुम भी मेरी तरह,

 मान जाओ ,तो कोई बात बने “

( साहिर)

 

जब बंधन बेड़ियांँ बन जाए, नीतियांँ/रीतियाँ- कुरीतियांँ और अन्याय सिरमौर हो जाए , अपराध / अत्याचारों की कोई सीमा न हो, छल -बल ,शोषण से जब सामना हो, तब अंतर्मन की ज्वाला से , ऐसे ही बुलंद /प्रचंड हौसलों से ही, एक नई क्रांति की इबारत लिखी जाती है और जोश का जामा पहन कर रण जीता जाता है।

संघर्षों/ चुनौतियों की आंँच में तप कर ही व्यक्तित्व की सुगंध फैलती है और नई ऊंँचाइयाँ मिलती हैं।

शब्दों की ऊर्जा अपरिमित है , कभी अगन तो, कभी शीतल पवन की तरह, कभी तलवार जैसे घाव करे दे और कभी रुई के नाजुक फाहों जैसे जख्मी दिल पर मरहम कि –

 ” धरती की तरह हर दुख सह ले, 

 सूरज की तरह तू जलती जा । 

अपने युग की हर सीता को

शोलों पे बिठाया जाता है

दामन कितना ही पावन हो

पर दोष लगाया जाता है।”

( इंदीवर)

 

” टूट गई जो उंँगली उठी।

 पांँच उंँगली जो बन गई मुट्ठी।

 एका बढ़ता ही जावे चले चलो।”

(जावेद अख़्तर)

 

खुद पहल करो , आगे बढ़ो।

मैं अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल मगर । लोग मिलते गए और कारवांँ बनता गया-

“ज़िंदगी की यही रीत है।

 हार के बाद ही जीत है”

( जावेद अख़्तर)

 

यही सच है कि

” हर कोई चाहता है एक मुट्ठी आसमान। जो सीने से लगा ले, हो ऐसा एक जहां”

(इंदीवर)

 

कि ज़िंदगी बड़ी क़ीमती है

” आगे भी जाने न तू,  

  पीछे भी जाने न तू।  

 जो भी है, बस यही एक पल है “

(साहिर लुधियानवी )

 

हर पल को सार्थक, सुंदर और समाजोपयोगी बनाते हुए अगर चलते हैं तो जीवन का महत्व है । उलझन को सुलझाना, समस्याओं का समाधान ढूंँढना, हार होने के बाद फिर बार जीत का सेहरा बांँधना ,यह सब धैर्य, अटूट विश्वास और इच्छाशक्ति का ही परिणाम है।

ये गीत जीवन की उमंग जगाते हैं ।हमें अच्छे विचारों /कर्मों की और प्रेरित करते हैं,

जो जनसाधारण दर्शकों/ श्रोताओं को इंगित करके लिखे गए हैं । भारी- भरकम शब्दों और गूढ़ अर्थों से परे उन तक पहुंँच पाते हैं ,क्योंकि इन गीतों को सिर्फ “क्लास के लिए नहीं, मास के लिए ” लिखा गया है। यानी सभी वर्ग /वय के लिए समान रूप से प्रभावी । सहज -सरल शब्दों में भावों की प्रखरता और संप्रेषणीयता, सार्थकता और ओज का सुंदर सम्मिश्रण।

जीवन में वक्त- वक्त पर बदलती परिस्थितियांँ/ नई चुनौतियांँ /अनजाने रास्ते कभी हमें एक विराम / ठहराव देते हैं । तब आत्मचिंतन/ आत्ममंथन की आवश्यकता होती है । जब ऐसे सुंदर विचार , गीतों में पिरो दिए जाते हैं जो हमारे मन- मस्तिष्क को एक नई ऊर्जा से आप्लावित करते हैं। इनमें छुपा हुआ जीवन दर्शन, जीवन जीने की कला ,संघर्षों से लड़ने का जज्बा क्योंकि सभी को चाहिए –

 

“थोड़ी सी ज़मीं ,थोड़ा आसमां, 

तिनकों का बस, इक आशियाँ “

(गुलजार)

 

सच तो है –

” कुछ पाकर खोना है ,कुछ खोकर पाना है। 

जीवन का मतलब तो ,आना और जाना है ।” 

(संतोष आनंद)

 

 ” संसार है एक नदिया। सुख – दुख दो किनारे हैं।

  क्या जाने कहांँ जाएँ, हम बहते धारे हैं”

( अभिलाष)

 

अपनों का साथ मिले, तो एक नई शक्ति मिलती है । जो खुशी देने में है वह लेने में नहीं। कभी-कभी हमारे हाथ देने की तरफ बढ़ते रहने चाहिए, सार्थकता इसी में है, सीख /संदेश, भी प्रेरणा भी कि-

 ” मधुबन खुशबू देता है, 

सागर सावन देता है। 

जीना उसका जीना है, 

जो औरों को जीवन देता है”

( अमित खन्ना)

 

यही होना चाहिए। कवि ने कहा है और सही कहा है-

” न मिट्टी न गारा ,न सोना सजाना,

जहांँ प्यार देखो ,वही घर बनाना। 

ये दिल की इमारत बनती है दिल से,

दिलासों  को छूकर, उम्मीदों से मिलकर “

(गुलज़ार)

सभी के साथ मिलकर जीना, सुख- दुख में भागीदार होना यह भी बहुत बड़ी बात है। वसुधैव कुटुंबकम सिर्फ नारा नहीं होना चाहिए, ये जीवन जीने की एक सुंदर कला है। क्योंकि –

” किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार।  

किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार । 

जीना इसी का नाम है । “

(शैलेंद्र)

 

फूलों की सीख है ये-

 ” इक दिन बहार ने ,फूलों से ये कहा।

काँटों की नोक पर, खिलते हो तुम मगर।

हँसते हो झूम कर, ज़ख़्मों को चूम कर।

इनसानों के लिए, दीवानों के लिए

मुश्क़िल ये काम है।

तुमको सलाम है। “

( आनंद बख़्शी)

 

एकांत और शांत मन दोनों बहुत महत्वपूर्ण है। एकांत सृजन का शीर्ष है। परिस्थिति वश, स्वनिर्मित, स्वप्रेरित एकांत ने श्रेष्ठ सृजन किया है। बहुत से महानायकों का श्रेष्ठ उदाहरण है जब उन्होंने प्रतिकूल/अनुकूल परिस्थितियों में एकांत पाया तो , अद्भुत रचा ।

मानवता के हित में ,उद्देश्य परक। शांत मन ही सही, सुंदर निर्णय कर सकता है ।

जब कभी अधीरता ,आवेश , क्रोध में होते हैं , कोई भी गलत निर्णय लेते हैं। बुद्धि- विवेक लुप्त हो जाता हैं। उस समय 10 तक गिनती गिनने या एक गिलास ठंडा पानी पीने से, धैर्य का दामन थामने से, कुछ देर में पुनः नए विचारों का जन्म होगा और सही निर्णय लेने की क्षमता का भी।

” तेरा कोई साथ न दे तो 

तू ख़ुद से प्रीत जोड़ ले।

 बिछौना धरती को कर ले,

अरे! आकाश ओढ़ ले।

है कौन सा वो इंसान , 

यहांँ पर जिसने दुख न झेला। 

 चल अकेला”

(कवि प्रदीप)

 

उद्देश्यपूर्ण व परहित में जीवन का उपयोग सबसे सही उपयोग होता है । क्योंकि –

” तुम बेसहारा हो तो 

किसी का सहारा बनो 

तुम को अपने आप ही

 सहारा मिल जाएगा

 कश्ती कोई डूबती 

पहुंँचा दो किनारे पर तुमको

 अपने आप ही किनारा मिल जाएगा”

(आनंद बख़्शी)

 

तुम अकेले , बेसहारा नहीं क्योंकि –

” हर तरफ़ , हर जगह,

 हर कहीं पर है,हांँ उसी का नूर ।

रोशनी का कोई दरिया तो है

 कहीं न कहीं पे ज़रूर।

इंसान जब कोई, है राह से भटका

इसने दिखा दिया, उसको सही रास्ता

कोई तो है जो करता है ,

मुश्किल हमारी दूर”

( सईद क़ादरी )

 

“ज़िंदगी को सवाँरना होगा। दिल में सूरज उतारना होगा”

(राही मासूम रज़ा)

 

” ज़िंदगी कैसी है पहेली हाय”

( योगेश)

 

 ” इस खेल में कोई पास है, कोई फेल। 

अनाड़ी है कोई, खिलाड़ी है कोई”

(आनंद बख़्शी)

 

” थामा है रोका इसको किसने , यह तो है बहता पानी। कैसी पहेली ज़िदगानी”

(स्वानंद किरकिरे)

 

पहेलियांँ हैं, तो उनका जवाब जरूर मिलेगा। थोड़ी सी कोशिश करने से, एक सकारात्मक सोच और सकारात्मक वार्तालाप स्थापित करने से। अपनों के साथ कुछ संवाद/ मेल मुलाकात से।

वक्त की धारों पर सभी बह रहे हैं कि-

 

 ” पल दो पल का साथ हमारा । 

   पल दो पल के याराने हैं “

( साहिर लुधियानवी)

 

” आज का यह दिन, कल बन जाएगा कल।

 पीछे मुड़ के न देख ,प्यारे आगे चल “

( आनंद बख़्शी)

 

“एक अंधेरा लाख सितारे 

सबसे बड़ी सौगात है जीवन ,

नांदां हैं जो जीवन से हारे “

( इंदीवर)

 

सच्चाई यही है कि हम मोह के बंधनों में पड़कर, बचकाने तथाकथित प्रेम में ,फेसबुकिया फेक आकर्षण में, गैर जरूरी छोटी-छोटी बातों में उलझकर, अचानक से इतने कमजोर, हताश हो जाते हैं कि स्वार्थ के वशीभूत होकर, प्रभु के दिए हुए खूबसूरत जीवन से छुटकारा पाने की सोचने लगते हैं जबकि सच तो यह है कि इमोशनल / संवेदनशील होना अच्छी बात है ,लेकिन “अति सर्वत्र वर्जयेत” यानी “इमोशनल फूल” बनने की जरूरत नहीं कि-

 

“सारे जहांँ की अमानत है ये , 

ये जीवन तुम्हारा- तुम्हारा नहीं।

जीवन मिटाना है दीवानापन

कोई प्यार, जीवन से प्यारा नहीं

प्यारा नहीं”

( इंदीवर )

 

ऐसे प्रेरणादायी , जीवटता से भरे पूरे गीत ,जब भी हमारे श्रवण पटल से टकराते हैं ,तो हमारी नस-नस में एक मधुर झंकार होती है । नवाचार हो जाता है हमारे भीतर । नई ऊर्जा, नई सोच , नई गति का संचार हो जाता है। मन डरता नहीं है तब और कह उठता है-

 

 “हंँस तू हरदम, खु़शियांँ या ग़म। 

 किसी से डरना नहीं, डर- डर के जीना नहीं”

(अमित खन्ना)

 

बिल्कुल सही कहा है कि –

” तुम जो हंँसोगे तो हंँस देगी दुनिया । 

रोओगे तुम तो ,न रोएगी दुनिया।”

(वर्मा मलिक)

 

यही होना चाहिए कि-

” जी भर के जी ले पल 

 जो ख़ुद पर हो यक़ीन ,तो ज़िंदगी हसीं।

तुझे कल बुलाएगा ।

 अपने हिसाब से दिल की किताब पे।

 कुछ तो नया लिखो।

 है जुनूं सा सीने में”

(संदीप श्रीवास्तव)

 

खून में उबाल ,वह जोश ओ जुनून, वह जज्बा, तैयारी जो तस्वीर का रुख बदल दे। युवाओं में तो यह मौज और अधिक होती है । तूफानों से टकराकर साहिलों पर सुरक्षित लौटने की तदबीर …,.

कहा भी गया है -Franklin D. Roosevelt – “a smooth sea never made a skilled sailor,”

“दुष्यंत कुमार” ने इसीलिए कहा है –

कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता । एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो।

राख नहीं ,आग होना चाहिए । परेशानियांँ / मुश्किलों से जीत की सुनहरी ज्योति झिलमिलाए और सफलताओं का परचम लहराए कि –

” दिखला दे ज़िंदा है तू,

बाक़ी है तुझमें हौसला।

तेरे जूनून के आगे,

अम्बर पनाहे मांँगे।

कर डाले तू जो फैसला।

रूठी तक़दीरें तो क्या, टूटी शमशीरें तो क्या

कर हर मैदान फ़तह “

( शेखर अस्तित्व)

 

हांँ, याद आ रहा है कि – ख़ुद ही को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले , ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे ,बता तेरी रज़ा क्या है।

ऐसे तमाम हीरे हैं जिनकी विद्वता, प्रतिभा की जगमगाहट है। जिनकी रचनात्मकता से रोशन है हमारा भी जहान । इन सभी गीतकारों की कलम धन्य है। कलम को नमन है। जिन्होंने पता नहीं कितने लाचार, असहाय ,निराश , बिखरे ,टूटे, बोझिल दिलों को जीवन जीने का फलसफा सिखाया।  फिर से आत्मविश्वास से सींचा और जीने की राह दिखाई।

नयी रोशनी जगाई । नया आकाश दिखाया। अच्छे विचार, अच्छी पुस्तकें, अच्छे गीतों के हम साथी बनें । इन्हें जीवन में अपनाएंँ, कर्मों में उतारे ।स्वयं को बल मिलेगा और हम से जुड़ी जिंदगियों को भी । सिर्फ अपने लिए नहीं ,अपनों के लिए ,समाज के लिए, देश के लिए हम उत्कृष्ट विचार रखते हुए उत्कृष्ट कार्य करें ,तभी जीवन की , जीवन के हर पल की सार्थकता है। सबसे बड़ी बात तो मानवता है-

 

” नस – नस मेरी खौले, कुछ करिए

कुछ करिए , बस- बस बड़ा बोले, 

हुंकारा आज भर ले। 

अब कुछ करिए”

(जयदीप साहनी)

 

तो फिर ऊँची परवाज लो। हवाओं का रुख अपनी ओर मोड़ दो। बाधाओं का बाँध तोड़ दो।

 

” खोलो – खोलो दरवाज़े, परदे करो किनारे

खूँटे से बंँधी है हवा, 

मिल के छुडाओ सारे ।

तू धूप हैं, झम से बिखर, 

तू है नदी ,ओ बेख़बर 

बह चल कहीं, उड़ चल कहीं

दिल ख़ुश जहाँ

तेरी तो मंज़िल है वहीँ “

( प्रसून जोशी)

 

“आजा आजा जींद शामियाने के तले।

आजा ज़री वाले नीले आसमान के तले । जय हो। “

(गुलज़ार)

@अनुपमा अनुश्री

( साहित्यकार, कवयित्री, रेडियो-टीवी एंकर, समाजसेवी )

भोपाल, मध्य प्रदेश

aarambhanushree576@gmail.com

 

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