Mausam -E -Gul

मौसम -ए -गुल | Mausam -E -Gul

मौसम -ए -गुल!

( Mausam -e -gul )

 

बारिश का मौसम बनने लगा है,
कुदरत के हाथों सजने लगा है।
मिलने चला है वो बादल समंदर,
हवाओं के पर से उड़ने लगा है।

होगी जब बारिश तपिस भी घटेगी,
किसानों का चेहरा खिलने लगा है।
बोलेंगे दादुर, बोलेंगे झींगुर,
अगड़ाई मौसम लेने लगा है।

टूटेंगी घटाएँ, उमड़ेंगी नदियाँ,
बदन पे वो पानी चढ़ने लगा है।
कच्ची उमर है, पहली है बारिश,
दीवानों का दिल भी मचलने लगा है।

बढ़ेगी तलब तब जलेगा बदन वो,
तूफ़ान अभी से ही उठने लगा है।
करेंगे नादानी किसको पता है,
आँखों से जाम छलकने लगा है।

बारिश की बाँह में दुनिया है खोती,
भरा जख्म फिर से उभरने लगा है।
मौसम-ए-गुल की हकीकत को देखो,
फ़िज़ाओं का आंगन गमकने लगा है।

 

रामकेश एम.यादव (रायल्टी प्राप्त कवि व लेखक),

मुंबई

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