झूठ बोल कर मैने कैमरा खरीदा

अकोला में सिटी कोतवाली के पास गांधी रोड पर अभी जो खंडेलवाल ज्वेलर्स है न वहां या शायद उस के आसपास कैमरे की एक दुकान थी.. जब भी वहां से गुजरता तो बड़ी ही हसरत से उस दुकान को देखता ओर बाहर से ही उस मे रखे कैमरे को निहारता.. भीतर जाने की हिम्मत नही होती थी.. मन मे भय था कि कोई डांट कर भगा न दे।

तब मेरी उम्र कोई बारह तेरह की बरस रही होंगी.. फिर भी एक दिन हिम्मत कर दुकान में प्रवेश कर मैने दुकानदार से क्लिक थ्री की कीमत पूछी.. मुझे कैमरों के बारे में कोई जानकारी नही थी मगर उन दिनों हॉट शॉट ओर क्लिक थ्री के विज्ञापन अखबारों में आते थे सो मुझे उन के नाम पता थे।

छोटे से बच्चे को क्लिक थ्री के बारे बोलता देख दुकान मालिक चोंका.. मुझे गौर से देखते हुए उन्होंने क्लिक थ्री की कीमत सत्तर रुपये बताई.. फिर दुकान मालिक ने मेरी छोटी उम्र को देखते हुए हास्य किया पैसे है..? मैने जेब मे रखे पचास पैसे बताये तो वह हँसते हुए बोले उधर जा कोतवाली चौक पर.. शर्बत वहां मिलता है यहां नही.. मैं बोला बच्चा देख कर मजाक उड़ा रहे हो मेरी तो वे हड़बड़ा कर बोले नही नही बेटा.. तुजे कैमरा होना न..! तू पैसे ले कर आ ओर साथ मे किसी बड़े व्यक्ति को भी ले कर भी आना.

सत्तर रुपये मेरे पास थे नही.. माँ ने देने नही थे.. बाबुजी जरूर पिघल जाते मगर माँ उन्हें भी नही देने देती यह तय था.. मैंने मांगे भी पैसे तो डांट पड़ी चुपचाप पढ़ाई कर.. बड़ा आया फोटो खींचने वाला.. अपना काम है क्या ये फोटो वोटो खींचना..! मैं ईधर उधर मेहमानों से, परिचितों से ले कर पैसे जमा भी कर लेता तो माँ वह पैसे भी मुझ से ले लेती ओर कभी कैमरा नही खरीदने देती.. मैंने बहुत दिमाग खपाया तब मेरे जेहन में एक बढ़िया आइडिया आया.. मैंने तय कर लिया कि मुझे इसी आइडिया से कैमरा खरीदना है.

ओर फिर मैंने पैसे जमा करने शुरू किए.. उस मे से मैं एक पैसा भी खर्च नही करता था.. कभी कोई मेहमान तो कभी बाबूजी तो कभी माँ पैसे देती थी.. पैसे भी इस तरह छुपा कर रखता की माँ की नजर न पड़े.. अपने आइडिया पर काम करने के लिए मुझे करीब पंचावने रूपयों की जरूरत थी और मेरे पास जमा हो गए थे एक सो दस रुपये.. अब मेरी योजना को कार्यवंतित करने का समय आ गया था.. ओर फिर एक दिन दोपहर में जब माँ सो रही थी तो मैं बिना बताए बझार की ओर चल पड़ा।

पहले एक छोटा बैग खरीदा.. फिर एक छोटा सा ताला ओर फिर उसी दुकान पर जा धमका.. मुझे देख दुकान मालिक चहक उठे.. लगता है आज पैसे ले कर आया है तू.. मैने स्वीकृति में सर हिलाया.. मैने महसूस किया कि दुकानदार की नजर में मेरा कद कुछ ऊंचा हो गया है.. मुझे लेना तो क्लिक थ्री ही था मगर जरा रौब से बोला मुझे हॉट शॉट कैमरा बताओ.. हॉट शॉट का नाम सुन कर दुकानदार बोले वह तो बहुत महंगा है।

मैने कहा बताओ तो सही.. हॉट शॉट कैमरा देखते ही मन मे एक हुक सी उठी की काश मेरे पास अधिक पैसे होते तो मैं यही लेता क्योकि वह रंगीन फोटो खींचता था.. कैमरा देखने के बाद मैंने क्लिक थ्री को हाथ मे लिया तो मेरा दिल धड़क सा उठा.. मेरी इच्छा पूरी होने वाली थी.. अब यह कैमरा हमेशा मेरे पास रहने वाला था.. बिल बनाते हुए दुकानदार ने मेरा नाम पूछा तो मैं चौक गया ।

जासूसी उपन्यास बहुत पढ़ता था न तो तुरंत दिमाग मे आया कि यह बिल तो मेरी बदमाशी का सबूत बन सकता है कि मैंने तो कैमरा खरीदा है जब कि मेरी योजना में यह नही था.. मैंने कहा बिल की जरूरत नही मुझे तो दुकानदार बोले बिल हम देते ही है तुम नाम बताओ.. मुझे कुछ सुझा नही तो मैने यू ही बोल दिया कमलेश जोशी.. उन्होंने बिल मुझे दिया और बोले छह महीने की गेंरन्टी है.. कुछ हुआ तो बिल साथ में लेकर आना.. मैंने कैमरा बैग में रखा और बाहर आ गया.. बाहर आ कर बचे हुए पैसे भी बैग में रख दिये और बैग पर ताला जड़ दिया.. फिर बिल फाड़ उसे हवा में उछाल कर चाबी भी फेंक दी।

घर मे घुसते हुए मैं बड़े उत्साह से माँ से बोला माँ देख.. मुझे यह बैग सड़क पर पड़ा मिला.. माँ बैग हाथ मे लेकर बोली यह तो नया दिख रहा है और इस के अंदर क्या है.. मैं ने माँ के हाथ से बैग झपटते हुए कहा ला माँ अभी ताला तोड़कर देखता हूं कि इस मे क्या है..? माँ ने मना किया.. बोली कि जहा मिला वही रख आ वापस मैने साफ मना कर दिया कि अब यह बैग कही नही जायेगा.. अपने पास ही रहेंगा.. मिली हुई कोई चीज भला वापस कोई करता क्या..?

माँ भुनभुनाने लगी और मैं ताला तोड़ने में लग गया.. ताला था तो छोटा मगर बड़ा मजबूत.. कमबख्त बड़ी मुश्किल से टूटा.. डर भी था कि ज्यादा उठापटक की तो अंदर रखे कैमरे को कुछ न हो जाये.. बड़ी ही सावधानी से ताला तोड़कर कैमरा बाहर निकाला.. माँ बोली यह क्या है..?

मैने कहा कैमरा.. अंदर पैसे भी थे ही.. माँ ने इस शर्त पर कैमरा मुझे लेने दिया कि जिसका बैग गिर गया है वह वापस आया तो उसे यह सब लौटाना होंगा.. मैने सहमति दी.. मुझे सहमति देने में कोई हर्ज नही थी.. किसी का बैग तो घुमा है ही नही सो कोई क्यो आयेंगा..? वह तो मेरी योजना थी.. काम कर गयी.. कैमरा तस्वीरे क्लिक करने के लिए रोल की भी जरूरत थी और माँ से वह पैसे मैने ले लिए जो कि बैग में मैने रखे.. फिर एक रोल ले आया.. क्लिक थ्री के रोल में मात्र बारह फोटो ही आते थे.. मैने कुछ फोटो खींचे.. कुछ बचाये.. फिर रोल खत्म हुआ.. रोल डेवलप कर के उसकी फोटो सब को बताने लगा.. सब को ताज्जुब हो रहा था कि इतना छोटा लड़का फोटोग्राफर बन गया है ।

तस्वीरे उतारने में मुझे बड़ा ही आनंद मिलता था.. खसकर बड़े उम्र के लोग जब मेरे इशारे पर खड़े हो जाते.. तस्वीरों के लिए मुद्राये देते तब तो यू लगता कि मुझ से बड़ा कोई है ही नही.. यह जुनून बढ़ता गया.. मानकर फोटो स्टूडियो ( चित्रा सिनेमा ) पर मैं अक्सर जाता था.. मानकर आंटी बहुत अच्छी फोटोग्राफर थी और उन्होंने मेरी रुचि देखते हुए मुझे प्रेरित किया कि मैं लगातार उनके स्टूडियो में आता रहू ताकि फोटोग्राफी की बारीकियों को मैं अच्छी तरह समझ सकु.. उनके डार्क रूम में मैं अपनी फिल्में ओर साथ मे कभी कभार उनकी भी फिल्मो के रोल डेवलप करता था.. घने अंधेरे कमरे में रोल को कैमरे से बाहर निकालना.. उसे रसायन में डुबोना.. उस रील को सुखाना.. बड़ा ही अनोखा आनंद मुझे मिलता था.. मैं काफी दिन उन से बहुत कुछ सीखा।

दादी दादाजी के पास पढ़ने नागपुर गया तो वहां भी मेरे कैमरे की प्रति लगाव कम नही हुआ.. उन से कुछ पैसे ले कर ओर कुछ जमा कर हॉट शॉट ओर कोडक यह दो कैमरे नागपुर के मूनलाइट स्टूडियो से भी मैने खरीद लिए इस आशा में की मैं यह किराये से चलाऊंगा ओर पैसे कमाऊंगा.. मगर यह नही हुआ.. इक्का दुक्का लोग किराये से कैमरा लेने आये भी मगर दादा जी की पारखी निगाहों ने भांप लिया कि जो लोग आए हैं वे कैमरा वापस नही करेंगे सो यह व्यापार चल न सका मगर मेरी आरजू पूरी हुई इसकी बात की मुझे बहुत खुशी थी ।

अकोला में एक बड़े व्यक्ति की मौत के बाद उस के कार्यक्रम के लिए मुझे बुलाया गया मगर कम्बख्तों ने मुझ से तस्वीरे तो उतार ली मगर पैसे नही दिए.. मैं बहुत छोटा था.. कुछ न कर सका.. माँ ने डांट पिलाई की नुकसान कर आया ।

मुझे आज भी तस्वीरे खींचना बहुत भाता है.. मोबाईल ने यह बहुत आसान कर दिया है.. फिल्मे भी बनती है और मोबाईल इस कदर उन्नत हो गए हैं कि काला सांवला मनुष्य भी गोरा चिट्ठा बन तस्वीरों में दिखता हु.. स्वयं के सांवला होने का अब मुझे कोई रंज नही.. मोबाईल से मैं जो हु नही वह बन जाता हूं.. व्हाट्सएप्प ओर फेसबुक पर जो मेरी तस्वीरे आप देखते होंगे वे झूठ का पुलंदा है.. इतना आकर्षक और तीखे नैन नक्श कभी मेरे रहे ही नही जो अब तस्वीरों में नजर आते हैं।

खैर विषय तो झूठ की आड़ को ले कर कैमरा खरीदना था वह पूरा हुआ.. कई साल तक यह राज राज ही रहा.. बरसो बाद माँ और बाबूजी को यह बातें बताई मगर उन्होंने सुना अनसुना कर दिया.. मेरा क्लिक थ्री कैमरा अब पता नही कहा घूम हो गया है.. फिर भी एक अंदाजा है वह मेरे ननिहाल में कई किसी कोने में किसी डिब्बे में शायद बंद हो.. हॉट शॉट तो खराब हो गया था और वह भी अब लापता हैं और कोडक कैमरा भी सालो पहले कोई परिचित ले गया था मगर उसकी वापसी अभी तक हुई नही है ।

मुझे तो यह भी याद नही की कोंन था वो जो शादी के लिए ले कर गया था.. अब तो इतने बरस हो गए हैं और शायद उस के अपने बच्चों की शादी भी हो गयी होंगी.. अब तो दिल मे बस एक ही अरमान है एक बार फिर कैमरा खरीदूँ.. वह कैमरा जो कि सिनेमा बनाता है.. वह कैमरा जो कि फिल्मो की सुनहरी दुनिया के प्राण है.. पता नही यह सब कब होंगा.. मगर होंगा तो यकी जानिए मैं एक सिनेमा भी रचूंगा ।

वही सिनेमा जो कि आप अपने माता पिता परिवार के साथ कभी किसी दौर में देखते थे.. मैं भी वैसा ही सिनेमा बनाना चाहूंगा.. वही परिवार का प्रेम.. वही गीत जो वादियो में पचासों बरस बाद भी अम्रत बरसाए.. वही संगीत की सुने तो आँखे मूंद जाए ।

वही फ़िल्म जो कि माँ की उंगली थामे मैने कभी देखी थी आप भी देखे.. माँ के साथ.. परिवार के साथ.. बेटे के साथ.. बेटी और बहू के साथ.. सपने मेरे अनंत हैं.. आरजू मेरी अपार है.. मगर जिंदगी बहती जा रही है.. बहुत तेजी से ।

इतनी तेजी से की जिन्हें मैं कुछ कर दिखाना चाहता था वे सब इस मे बह गए.. दादाजी, दादी जी, माँ, बाबूजी, ससुर जी, नाना जी, मामा जी.. सब इस प्रवाह के साथ चले गए.. दूर.. बहुत दूर.. इतनी दूर की अब कोई कैमरा इनकी तस्वीर कभी क्लिक नही कर पाएगा.. अनेक अनेक धन्यवाद.

रमेश तोरावत जैन
अकोला
मोब 9028371436

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