Kahani Ek Hansti Hui Ladki
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लोग उसे बातूनी कहते हैं। कभी-कभी तो उसकी सहेलियां उसे निरी पागल तक कह कर चिढ़ाती हैं। ऐसा कहने पर भी चिढ़ने की जगह वह ठठा मार कर हंसती रहती हैं। खुश वह इतनी रहती की पूरी क्लास में उसके हंसी ठहाके गूंजता।

वह क्लास में हो और ठहाके ना हो ऐसा कभी हुआ नहीं । गंभीर किस्म के टीचरों को भी वह ऐसे छकाती की मुस्कुराए बिना नहीं रह पाए।

आज जब मैं क्लास में गया तो वह गुमसुम सी बैठी थी। फिर मुस्कुराने लगी । मैंने सभी बच्चों को यात्रा वर्णन लिखने को कहा तो और बच्चे लिखने लगे परंतु वह मुस्कुराती रही। उसे थोड़ा जब घूर कर देखा तो वह भी शांत होकर लिखने लगी । सब बच्चे जब लिखने लगे तो मैं क्लास से बाहर चला आया।

कुछ देर बाद जब गया तो कुछ बच्चों ने लिख लिया था । मैंने जांच कर उनकी कमियों को बताया । एक दूसरी लड़की जो उसी के समान लिखी हुई थी।

मैंने उससे कहा कि आपने बहुत अच्छा लिखा परंतु उसमें एक कमी बता दीं । इतना सुनते ही वह भड़क गई । मेरी जगह यदि कोई बच्चा होता तो वह दो चार थप्पड़ जड़ें बिना ना रहती।

मैंने उसे समझाने का प्रयास किया कि -” देखो बेटा ! आज मैं आपकी कमी बता रहा हूं तो आपको खुश होना चाहिए । हमारी आपसे कोई दुश्मनी तो है नहीं कि आपकी गलती बताऊं। ”
क्षण भर में उसका गुस्सा ऐसा रफू चक्कर हो गया पता ही नहीं चला। वह फिर ही ही करके मुस्कुराने लगी और अपने हाथों की उंगलियों के नाखून को चबाने लगी । फिर जाकर अपनी सीट पर बैठ गई।

अब तक सभी छात्राओं ने लिख लिया था। मैं भी सभी के लिखे को जांचने में व्यस्त हो गया। उसे तब तक कहीं से खबर मिल गई कि कल गुरु जी का जन्मदिन था । अब फिर क्या था वह कहने लगी -“नहीं गुरु जी ट्रॉफी खिलाने से काम नहीं चलेगा अब तो पार्टी होनी चाहिए । ”

मैंने कहा -” बताओगी की कैसी पार्टी होनी चाहिए उसके स्वर में स्वर मिलाते हुए एक दूसरी छात्रा ने भी कहा -“आर्केस्ट्रा मंगाना चाहिए। जिसमें खूब नाचेंगे गाएंगे झूमेंगे”। फिर वह ठठा मारकर हंसने लगी।

सामने की सीट पर बैठे पिंकी ने कहा-” सर वो ऐसे ही हंसती रहती है। उसकी बात का बुरा मत मानना। वह तो पागल है। समझती नहीं कब क्या कहना चाहिए क्या नहीं!”मैंने कहा-” ऐसा नहीं कहते! दुनिया में पागलों ने हीं महान से महान कार्य किया है । ऐसे लोग ही जिंदगी में कुछ करते हैं । ”
इतना सुनते हो ऐसे ठठा मार कर हंसी की जैसे दुनिया भर की खुशी उसे मिल गई हो। उसकी हंसी रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। पता नहीं क्यों उसकी हंसी देखकर मुझे भी हंसी आ गई।

तब तक घंटी बोली और सभी बच्चे क्लास से निकलने लगे। जाते-जाते भी तिरछी नजरों से वह मुस्कुराए जा रही थी ।

मुझे पता नहीं ऐसा क्यों लग रहा था कि उसकी हंसी के बीच कोई गहरा घाव भरा हुआ है । जिसे छुपाने के लिए वह हंसे जा रहे थी। परंतु दर्द था कि छुपाई ना छुप रहा था। बिना छुपाए चुप ना सकेगा असली नकली चेहरा।

हजारों गम भी मेरी फितरत को बदल नहीं सकते मैं क्या करूं मेरी आदत है मुस्कुराने की।

मनुष्य जीवन में बहुत से ऐसे व्यक्ति होते हैं जो अपने दुखों को छुपा कर दुनिया में खुशी फैलाने का प्रयास करते हैं। अक्सर हम उनके खुशी के बीच छुपा हुआ कष्ट कठिनाइयां देख नहीं पाते हैं।

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

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