Kavita Ye Sare Satrangi Rang
Kavita Ye Sare Satrangi Rang

ये सारे सतरंगी रंग

( Ye Sare Satrangi Rang )

 

खुशी में डूबे रंग खिलखिला रहे हैं,
इतने सारे सतरंगी रंग,
कि पुष्प भी चुरा रहे है रंग,
आज तितलियों के लिये।
जब कोई मिलता है अपना,
एक रंग, दूसरे रंग से,
तब परिवर्तित हो जाता है,
उसका रंग पहले से।
कितने सारे रंग है जीवन मे,
तब तुम क्या फर्क कर सकते हो,
गुलाल में, रक्त की लालिमा में,
निकल आये है लोग घरों से बाहर,
आसमान भी होता जा रहा है लाल।
फेंकता है कोई गुब्बारा,
भीग जाता है इंसान उस रंग से,
देखो—रंगों की बारिश हो रही है,
जो रंग रहा है रंग,
मेरी आत्मा को अंदर से।
हवा में गूंज रहा है,
सिर्फ एक शब्द बार-बार,
प्रेम ही है वो रंग,
जो छिपा रहा है रंगे हुये मन को।।

डॉ. पल्लवी सिंह ‘अनुमेहा’
लेखिका एवं कवयित्री
बैतूल, मप्र

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