Kahani Kab Ayegi Mai
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दिव्यांश अभी 2 वर्ष का भी नहीं हुआ था कि उसकी दादी नहीं रही। वह दादी को माई ही कहकर बुलाया करता था। दादी को न देखकर पूछता कि पापा दादी कब आएंगी।

उस अबोध बालक को उसके पिता कैसे समझाते कि उसकी दादी अब इस दुनिया में नहीं रही।
अक्सर वह झूठ बोल दिया करते थे कि -” मामा के यहां गई हैं बेटा आ जाएंगी।”

फिर दिव्यांश मन मसोस कर रह जाता था। धीरे-धीरे महीना-दो महीना बीत गए दादी को नहीं आना था नहीं आई। उसकी भी आंखें दादी का रास्ता देखते-देखते पथरा गई थी।

एक दिन उसने अपनी मां से हठ पकड़ लिया कि बताओ ना मां दादी कहां गई! क्यों नहीं आती हैं कब आएंगी ? पापा तो कब से कह रहे हैं कि दादी आएगी दादी आएगी।
क्या अब दादी नहीं आएंगी पापा झूठ बोलते हैं क्या मां?

जो समस्या उसके पापा के साथ थी। वही समस्या मां के साथ भी है। आखिर वह अबोध बालक को कैसे समझाएं कि दादी अब इस दुनिया में नहीं है अब वह लौटकर नहीं आएंगी।

उसकी मां को लगा बाबू को किसी प्रकार समझाना पड़ेगा। नहीं तो यह दादी की याद में सूख कर कांटा हो जाएगा।
फिर उसकी मां ने कहा – ” पापा झूठ नहीं बोलते बेटा! सच यह है कि तुम्हारी दादी अब इस दुनिया में नहीं रही। अब वह लौटकर नहीं आयेगी ‌।”

दिव्यांश चकित होकर पूछने लगा -” क्यों मां! दादी क्यों नहीं लौटकर आयेंगी। दादी कहां गई है। जो लौटकर नहीं आएंगी।”

उसकी मां ने कहा -” बेटा दादी भगवान जी के के यहां चली गई। अब वह लौट के नहीं आएंगी।”
“अच्छा मां कोई भगवान जी के यहां जाने के बाद लौट कर क्यों नहीं आता है? क्या भगवान जी का घर इतनी दूर है कि वहां से कोई लौटकर नहीं आता है!” दिव्यांश चकित हो कर पूछा।

तब तक उसके पिता भी आ गए। पिताजी को देखकर दिव्यांश कुछ नहीं बोला। वह गुस्से में बिस्तर पर जाकर लेट गया। उसके पिता उसके पास जाकर बडे़ प्रेम से बोले-” क्या बात है बेटू ! आज तुम बहुत गुमसुम से लग रहे हो!”
दिव्यांश गुस्से में बोला -” आप झूठ बोलते हों कि दादी आयेंगी! दादी आएगी ! मम्मी ने कहा कि दादी अब कभी नहीं आएगी। वह भगवान जी के यहां गई है। मम्मी कह रहीं थीं कि जो भगवान जी के यहां जाता है वह कभी लौटकर नहीं आता हैं।”

उसके पिता उसे अपलक निहारे जा रहे थे। वे क्या बोले उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था। फिर उन्होंने कहा -” हां बाबू! तुम्हारी मम्मी ठीक कह रही थी कि अब दादी लौटकर नहीं आएंगी। हम तुमसे झूठ बोल रहे थे कि दादी आएगी। मुझे माफ़ कर दो बेटू!”

उसके पापा फिर रोने लगे। पिता को रोते हुए देख उसकी मां भी आ गई। उसकी मां ने संयम बरतते हुए कहा -” जब आप ही रोने लगेंगे तो बच्चे पर क्या बीतेगी।”

दिव्यांश के पिता ने कहा – “कुछ नहीं नेहा! अम्मा की याद आने लगी थी। जब तक अम्मा थी हरदम डांटती रहतीं थीं। देखो ना अम्मा की आवाज सुनने के लिए ये कान तरस गए हैं।”

पति को रोते हुए देख नेहा भी भावुक हो गईं। किसी के मुख से आवाज नहीं निकल रही थी। सब शांत बैठे थे।

दिव्यांश को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है। आखिर पिताजी क्यों रोने लगे?
उसने पिताजी से कहा -” अब हम दादी के बारे में नहीं पूछेंगे। अब न रोओ पापा।”

उसके पिता जी ने कहा -” कोई बात नहीं बेटा! तुम नहीं समझोगे। जब बड़े हो जाओगे तो समझोगे कि आदमी भगवान जी के पास जाने पर क्यों फिर नहीं लौटता है!”दिव्यांश आज भी अपनी दादी का रास्ता देख रहा है कि आखिर दादी कब आएंगी।

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

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