परिया बाबा | Kahani Pariya Baba

चीनू, मीनू , रामू, दिनेश , भोलू और टीनू पांच से दस वर्ष के बच्चे हाथों में गेंद उठाये शोर मचाते हुए घरों से निकले और खुले मैदान में आ कर गेंद को पैरों से लुढ़का लुढ़का खेलने लगे । दूर से आती बाँसुरी की धुन ने बच्चों का ध्यान आकर्षित किया और दिनेश ने हाथों में गेंद उठा कर –

” ए मीनू ! तू ये धुन सुन रही है न?”- ध्यानपूर्वक सुनते हुए बोला ।

” हाँ ” – मीनू ने कहा और सिर हिला दिया ।

” अबे , फेक न जल्दी से ” -भोलू ने हाथ से इशारा करते हुए कहा ।

” शी ….”चीनू ने मस्ती से सुनने की मुद्रा में कहा ” सुन न, सब सुनो कितनी अच्छी बाँसुरी बज रही है ” ।

सभी बच्चे ध्यान पूर्वक सुनने लगे और धुन की आती हुई दिशा में बरबस बढ़ते चले गए । मैदान से काफी दूर निकलने पर एक झरने के किनारे हरियाली में आँख बंद किये हुए एक पेड़ के तने से सट कर बैठे एक विचित्र आदमी को देखा ।

उसके पैर तो पेड़ के तनों के समान थे जिन पर फूल पत्तियाँ दिखाई दे रहीं थी और लताएँ लिपटी हुई थी । उसके हाथ दो पेड़ की शाखाओं जैसे थे जिन पर फल लगे हुए थे । उसका धड़ पहाड़ जैसा दिख था । उसका मुँह स्त्री जैसा सुंदर था ।

उसकी आवाज पुरुष जैसी भारी थी । उसके सिर पर सुंदर पत्तियाँ फूट रहीं थी । उसके चारों पर बत्तख , चिड़िया , नेवले , मोर , खरगोश स्वतन्त्रता से घूम रहे थे । पानी मे मछलियां उछल रहीं थीं और सुहानी हवा चल रही थी । बच्चे माहौल देख कर खुश हो गए । टीनू फुदकती हुई उसके पास पहुँची और बोली –

” ऐं ! आप कौन हो ?”

बाँसुरी की होठों से हटाते हुए मनुष्य ने टीनू के कमर में हाथ डाल कर पास खीचते हुए कहा –

” मैं परिया बाबा हूँ” ।

” बाबा ? तुम बूढ़े थोड़े ही हो “-कहते हुए टीनू खिलखिला पड़ी ।

” मेरे बाबा तो बहुत बूढ़े दिखते हैं । इसके तो बाल भी सफेद नही है”-कह कर रामु जोर जोर से हँसने लगा और साथ ही अन्य साथी भी खिलखिला पड़े ।

” तुम्हारे दादा -दादी,नाना-नानी शहर में रहते हैं न । वहाँ गन्दगी बहुत होती है । इसीसे बूढ़े दिखते हैं । मैं तो हजारों सालों से यहीं रह रहा हूँ ,इसलिए बूढ़ा नही होता “-परिया बाबा ने कहा ।

“जंगल मे रहनेवाले बूढ़े नही होते क्या ?”चीनू ने कहा

“नही ,तुम्हे ये पेड़ ,पक्षी ,पशु और मैं बूढ़ा दिखाई देते हैं क्या ? ये ऐसे ही मर जायेंगे ,पर बूढ़े दिखाई नही देगें ।”

धीरे धीरे टीनू उसकी गोद में लेट गयी और परियाबाबा की गर्दन में हाथ डाल कर बोली -” बाबा !आप ऐसे क्यों हो ?हमारे जैसे क्यों नही ?” और साथ ही एक पत्ता सिर के ऊपर से नोच लिया ।

” तुम्हें अच्छा नही लगता ?” -हैरानी से बाबा ने पूछा और साथ ही उसके मुँह से ‘आह’ निकल गयी ।

“क्या हुआ बाबा ?”- टीनू ने पूछा ।

” बहुत दर्द हुआ ।देखो न तुमने मेरे सिर में घाव कर दिया “-कहते हुए बाबा ने अपना सिर नीचे करके दिखायव। सिर के बीचोबीच खून की बूंद स्पष्ट झलक रही थी । बच्चे देख कर सहम गए । टीनू की आँखों से आँसू टपकने लगे ।

” नही , यह बात नही । हम तो यह जानना चाहते थे कि आखिर यह सब है क्या और क्यों है?” ।दिनेश ने उत्सुकता वश पूछा तो सभी बच्चों के मुँह से ” हाँ ” निकल गयी ।

” मैं समझ गया । बताता हूँ “-सिर से घाव को छूते हुए बाबा ने कहा -” बैठो ” ।

सभी बच्चे बाबा के इर्द-गिर्द बैठ कर उत्सुकता से उनकी ओर ताकने लगे । बाबा ने कहा–

” ऐसा मैं तुम्हारे हो लिए हूँ । ये सब तुम्हें लुभाने के लिए ,खाने के लिए ,तुम्हारे सपनो के लिए और तुम्हारे जीवन को बीमारियों से बचाने के लिए है । अगर यह सबकुछ न हो तो जानते हो क्या होगा ? तुम्हारा जीवन खतरे में पड़ने लगेगा ”

और अंतिम वाक्य के साथ बाबा ने दिनेश के गाल को हल्के से थपथपा दिया ।

” आओ चलें ,खेलें ”

कहते हुए उठ खड़े हुए । बच्चे भी उनके साथ उठ खड़े हो गए और बाबा के साथ खेलने लगे । सहसा रुक कर बाबा ने पूछा

‘” तुम कुछ खाओगे ?”

बच्चों ने ‘ हाँ ‘ में सिर हिला दिया तो हाथों की डालियों से सन्तरे , सेब व अनार तोड़ कर देने लगे । बच्चे खुश थे ।

इस तरह बच्चे रोज आते और बाबा के साथ खुले मैदान में कभी केंद से तो कभी कभी गुल्ली डंडे से खेलते । एक दिन बच्चे मैदान में खेलने आये तो मैदान की उखड़ा उखड़ा पाया ।

वहाँ पर चारों ओर ईंटे , रोड़ी व उखड़ी हुई मिट्टी फैली पड़ी थी । बच्चे मासूमी से मुँह लटकाकर एक ओर खड़े हो गए । बाबा आये और मैदान की देख कर अतीत में खो गए ।

” तो तुम शुरू हो गए “-बाबा धीरे धीरे बड़बड़ाने लगे । फिर जोर से मैदान की ओर घूमते हुए -” आओ कहीं और चलें ” कहते हुए पलट पड़े । बच्चे भी पीछे पीछे हो लिए । बाबा उन्हें उसी स्थान पर ले गए , जहाँ वे बाँसुरी बजा रहे थे । अपने चारों ओर बच्चो को बैठा कर बाते करने लगे ।
× × × × × × × ×
अगले दिन बच्चों का पूरा झुंड खेलने के लिए निकला , तो रामू बे भोलू को बाबा को बुलाने के उद्देश्य से कहा -“जा तू बाबा को बुला ला “- तो भोलू बाबा की ओर लौट पड़ा । बाबा के स्थान पर पहुँच कर देखा तो बाबा की हालत देख कर वह डर गया और पलट कर भाग खड़ा हुआ ।

हाँफते हुए -“वो ..वो ..”जोर से चिल्लाते हुए दिनेश से टकरा गया ।
” क्या वो..वो..लगा रखी है? ठीक से क्यो नही कहता ” मोना ने कंधे को पकड़ कर भोलू को झिड़कते हुए कहा ।
” बाबा को न जाने क्या हो गया है “-भोलू के कहते ही सारे बच्चे बाबा की तरफ भाग खड़े हुए । बाबा के पास पहुँच कर सब बच्चे स्तब्ध खड़े रह गए । उनका पूरा शरीर टूट -फूट चुका था।

वह जोर जोर से साँस ले रहे थे। साँस की कठिनाई और बेचैनी से उनके कदम लड़खड़ा रहे थे वह कभी एक पेड़ से टकराते तो कभी दूसरे पेड़ से। बच्चों की आँखों से आँसू बह रहे थे । मोना और चीनू ने उन्हें लपक कर सहारा दिया और घास के मैदान में लेटा दिया ।

राजू भाग भाग कर अपनी अंजुरी में पानी भर कर लाता और कभी बाबा के मुँह में डालता तो कभी मुँह पर छिड़कता । थोड़ी देर में बाबा ने आँखे खोल दी तो मोना ने पूछा –
” बाबा ! आपको क्या हो गया था ?”

चीनू भी स्वयं को विक्षत सी महसूस कर रही थी । वह सहसा गला सहलाने लगी ।
” किसी ने पहाड़ को तोड़ डाला अपने स्वार्थ के लिए । वह धुँआ देख रहे हो न , उसी से मुझे साँस लेने में कठिनाई हो रही है । देखो न मेरा शरीर कैसे टूट-फूट गया है ” कहते हुए बाबा ने अपना पहाड़ वाला हिस्सा दिखलाया ।

” तुम्हारे पापा ,अंकल न जाने कौन कौन आते हैं और अपने को विकासशील जताने के लिए भगवान की दी गयी चीज़ो को अपने अनुसार तोड़ते – फोड़ते रहतें हैं । उसी की गंदगी से मुझे पीड़ा पहुँचाते रहते हैं और तुम्हारे लिए रोज एक नई बीमारी छोड़ जाते हैं । देखो चीनू भी गला मल रही है । ”

चीनू की तरफ झपटते हुए बाबा उठ बैठे और उसे अपनी गोद मे लेटा लिया ।
” चलो यहाँ से आओ ” कहते हुए बाबा उठे और लड़खड़ाते हुए चलने लगे और एक हरियाली व फूलों से भरी जगह में ला कर लेटा दिया ।

कुछ देर सुस्ता कर बाबा वन के अंदर घुस गए । बच्चे चीनू को घेरे बैठे थे । थोड़ी ही देर में हाथो में जड़ी बूटी ले कर आये और हाथ से मसल कर उनका रस निकाल निकाल पिलाने लगे और स्वयं उन्हें चबा चबा कर खाने लगे । कुछ ही देर में दोनों स्वस्थ महसूस कर रहे थे । बाबा और चीनू धीरे धीरे उठे और इधर -उधर टहलने लगे । फिर एक ओर बाबा को घेर कर बैठ गए ।
” तुम जानना चाहते थे कि मेरा शरीर ऐसा क्यों है ?”-बाबा ने कहा ।
” हाँ “- एक बच्चे ने कहा ।
“तो , सुनो । अगर मेरे शरीर पर यह कुछ न होता तो अब तक उस धुँए के धमाके से तुम सब मर गए होते । चारो ओर धरती फट गई होती । इन्हें हटा कर दिखाऊँ ,देखोगे ?  पर यहाँ नही ।

उसके लिए हमें उस कारखाने के पास जाना पड़ेगा जहाँ से वह धुँआ निकल रहा है । पर एक बात ध्यान से सुनो । जब मैं मरने लगूँ और मेरा असर तुम पर पड़ने लगे तो तुम मुझे यहीं ले आना और उस नदी का पानी बार बार पिलाना । बोलो कर सकोगे इतना ?”
” हाँ ,कर सकेंगे ” -सबने एक साथ कहा ।
” तो आओ “-कहकर बाबा बच्चों को ले कर चल दिये और कारखाने के पास बाबा और बच्चे खेलने लगे ।
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आज बाबा को आये दस दिन हो गए । वहाँ न कहीं खेल का मैदान था और न सैर सपाटे की जगह । बाबा बच्चों के साथ घरों की छतों पर चक्कर लगाते तो कभी कारखाने के लॉन में घूमते । बाबा का वजन लगातार घट रहा था ।

बच्चे सुस्त होते जा रहे थे कि सहसा रामू ने महसूस किया कि बाबा के हाथ पैरों से लिपटी लताओं के फूल गायब थे ।
“बाबा आपकी लताओं के फूल कहाँ गये ? ” रामू ने पूछा तो सभी बच्चे खड़े हो कर देखने लगे ।
” वे तो झड़ गए । वही नही और भी । देखो मेरे पैर “-कह के बाबा ने पैर दिखाने लगे ।

उनके पैरों के तनों की छाल सूख कर फट गई थी । हाथों की शाखाओं की पत्तियाँ मुरझा गई थीं । उनका चेहरा सूख गया था । बाबा का पहाड़ वाला हिस्सा धड़ उखड़ा व उजाड़ नजर आ रहा था । बच्चे डर कर सहम गए ।

उनकी आँखों मे भय समाया था । सहसा बाबा गिर पड़े । और बच्चे गर्मी से अपने अपने कपड़े उतार उतार कर फेकने लगे । सहसा दिनेश को कुछ याद आया ।

“रामू ! भोलू ! बाबा को उठाओ और चलो यहाँ से उसी जगह जहाँ बाबा ने कहा था । वरना हम सब मर जायेंगे ‘चीखते हुए से बाबा को लगभग घसीटता से उठा कर भागने लगा । रास्ते मे सभी बच्चों ने सहारा दिया और बाबा के बताए स्थान पर ले आये ।

ला कर नदी के किनारे लेटा दिया और सभी बच्चे बाबा के इर्द-गिर्द बैठ कर हाँफने लगे । दिनेश भाग भाग कर अंजलि में पानी लाता और कभी मुँह पर छिड़कता तो कभी मुँह में डालता । बहुत देर बाद बाबा ने आँखे खोल दी । बाबा का शरीर अब भी भद्दा , उजाड़ , सूखा व भयावना दिख रहा था । धीरे धीरे बाबा उठे और चुपचाप जंगल की ओर चल दिये । मुड़ कर –
” अब तुम जाओ और जब तक मेरी बाँसुरी की धुन न सुन लो , मत लौटना । जाओ ….जाओ” कहा और जंगल मे खो गए ।

Sushila Joshi

सुशीला जोशी

विद्योत्तमा, मुजफ्फरनगर उप्र

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