उजाले की ओर | Ujale ki Aur
मनीष और उसकी बहन साक्षी दोनों ही शिक्षक हैं। उनमें समाज में व्याप्त मूढताओं पर अक्सर बहस किया करते थे। उन्हें लगता था कि बच्चों को स्कूल में यदि हम रोजाना कुछ न कुछ अंधविश्वास के बारे में जानकारी देते हैं तो वे धीरे-धीरे उनमें असर होने लगेगा।
अगले दिन जब मनीष विद्यालय गया तो क्लास में गुमसुम से बैठे थे। उसने बच्चों से कहा क्या बात है बच्चों ,-” तुम लोग आज बहुत शांति से बैठे हो! कोई बात है क्या?”
उनमें से सरेश ने कहा कि,-” यह भद्रा काल क्या होता है। देखो ना इस रक्षाबंधन पर भद्रा काल के भाई बहनों के त्योहार में खलल पड़ गया है।”
मनीष सर भी सोच में पड़ गए कि बच्चों को कैसे समझाए। फिर उन्होंने कहा,-” परमात्मा का बनाया हुआ हर दिन शुभ होता है। यह भद्रा काल वगैरह ज्योतिष का एक वहम है।
हमारे मन में एक बार जब किसी भी प्रकार का वहम बैठ जाता है तो उसे आजन्म निकलना बड़ा कठिन होता है। यही कारण है कि अंधविश्वास की जड़ मनुष्य के मन में जब एक बार बैठ जाती है तो पीढ़ी दर पीढ़ी वह उसे परेशान करती रहती हैं।”
तब सभी बच्चों ने चहकते हुए कहा कि,-” क्या हम सब भाई बहन दिन भर राखी का त्योहार मना सकते हैं?।”
मनीष सर ने कहा,-” देखो यदि आप लोगो को आजीवन अंधविश्वास से मुक्ति पाना चाहते हैं तो दिनभर रक्षाबंधन पर्व मनाकर देख लो। तुम्हें पता चल जाएगा कि इसमें कितनी सच्चाई है।
अगले दिन सभी बच्चों ने दिनभर बहनों ने अपने भाई के हाथों में कलाई में राखी बांधी और उनके सुखमय जीवन की कल्पना की। क्योंकि उनके मन से भद्रा काल का डर निकल चुका था।
साक्षी ने भी अपने विद्यालय में बच्चों के मन में बैठे हुए अंधविश्वास को निकालने का प्रयास किया। उसने सभी बच्चों को बताया कि,-” हमारे मनो मस्तिष्क में जो एक बार बचपन में धारणाएं बन जाते हैं उसका प्रभाव आजीवन पड़ता है।
जिनके माता-पिता हमारे बीमार होने पर नून फुकाते हैं ,झाड़ फूंक कराते हैं ,उसका प्रभाव हमारे जीवन पर आजीवन पड़ता है। बचपन से ही यदि आप लोग इन सब से बच जाए तो इस सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव आप अपनी आने वाली पीढ़ी को दे सकते हो।”
साक्षी भी अपने विद्यालय में बच्चों को भद्रा काल वगैरह जैसे अंधविश्वास जैसी मान्यताओं से बचपन में ही बच्चों के मन से उसे निकालने हेतु विद्यालय में बच्चों को बताया करतीं है।
भाई बहन के संयुक्त प्रयास से बच्चों के अंदर एक प्रकार से नई जन जागृति पैदा हो रही थी । अब बच्चे समाज में व्याप्त रूढ़ियों और अंधविश्वास से मुक्ति हेतु अपने माता-पिता को छोड़ने हेतु स्वयं कहने लगे थे।
इस प्रकार के समाज में परिवर्तन होते हुए देखकर मनीष और उसकी बहन साक्षी दोनों बहुत खुश हुए। आखिर खुश क्यों न होंगे उनकी मेहनत जो रंग ला रही थी।
इस प्रकार से यदि विद्यालय के अध्यापक चाहें तो वह धीरे-धीरे समाज में व्याप्त रूढ़ियों को खत्म कर सकते हैं। आवश्यकता है कि वह ईमानदारी के साथ बच्चों में प्रतिदिन जनजागृति करें। बच्चों को अंधविश्वास से होने वाली हानियों को बतायें।
योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )