Kahani Bhooton ka Agent

रात्रि का लगभग 9:00 बज रहा होगा। प्रयागराज की एक मजार पर बहुत सी स्त्रियां अभुआ सुसुआ आ रही थी। एक कह रही थी कि -“मैं इसके शरीर को नहीं छोडूंगी। मैं उसकी जान लेकर के रहूंगी। ”
खुले बाल कमर को चारों तरफ से नचाती हुई वह सवाल जवाब किए जा रहे थी।

वहां पर एक बूढ़ी मां जो की लगता है उसकी दादी रही होगी वह कह रही थी -“छोड़ दो मालिक, छोड़ दो, जान लेकर क्या करोगे?”
जो स्त्री भूत की नौटंकी कर रही थीं उसने कहा -” चुप कर बुढ़िया। ज्यादा चपर चपर मत कर। मैं इसको नहीं छोडूंगी तो नहीं छोडूंगी।”

इस प्रकार से वहां बहुत सी स्त्रियां झूम नाच खेल रही थीं। वहां पर उपस्थित बहुत से भूतों के एजेंट मुल्ले मौलवी वहां पर उपस्थित स्त्रियों के साथ सवाल जवाब कर रहे थे और वह भी अंट-संट जवाब दे रही थी।

इस प्रकार के बहुत से भूतों के एजेंट गांव-गांव में मिल जाते हैं। जो की अधिकांशत मजारों दरगाहों एवं रोड़ों पर स्थित पहलवान आदि के देवस्थानों में पाए जाते हैं। इसके अलावा गांव में भी ओझा , सोखा सियाने आदि लोग भी भूतों के एजेंट का काम किया करते हैं। यह भूतों के एजेंट भूतों का अस्तित्व सिद्ध करने, उन्हें बुलाने, भागने तथा उनके द्वारा कई प्रकार के काम करने के करिश्मा दिखाते हैं।

गांव में आज भी अक्सर छोटे बच्चों के दस्त, बुखार , अधिक रोना , हाथ पांव मरोड़ना ,आंखें ना खोलना , उल्टी आदि रोग भूत चुड़ैल के आक्रमण समझा जाता है। अशिक्षित तथा अंधविश्वासी लोगों में ओझाओं द्वारा झाड़ फूंक करना ही इसका उपाय समझा जाता है।

गांव में देखा गया है कि स्त्रियां अक्सर ज्यादा अंधविश्वासी हुआ करती हैं। जिसके कारण उनके बच्चे भी अंधविश्वासी बन जाते हैं। स्त्रियों का विशेष रूप से भूतों पर विश्वास होता है । उनके बहुत से रोग भूत बांधा माना जाता है।

पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य अपनी पुस्तक ‘योग के नाम पर मायाचार’ में कहते हैं –” मिर्गी, बंध्यापन, गर्भपात, बच्चों का मर जाना, दूध न उतरना, दुस्वप्न ,मूर्छा आदि रोगों को भूत चुड़ैल का कारण समझा जाता है।

इसके अलावा उन्माद , आवेश भयातुरता, तीव्र ज्वर, प्रलाप आदि रोग चाहे वह पुरुष को हो या स्त्री को , भूतों के उपद्रव समझा जाता हैं । कंठ माला , विषबेल सरीखे फोड़े, सर्प काटना यह भी प्रेत आत्माओं से संबंधित समझा जाता है। सूने घर में चूहे द्वारा मचाए गई खडबड, बिल्ली, बंदर आदि का कूदना भी कभी-कभी भूत समझा जाता है।”

इस प्रकार के वहम जब किसी मनुष्य के मन में बैठ जाता है तो वह मरते दम तक नहीं निकलता है। उपरोक्त किसी कारण के उपस्थित होने पर यह भूतों के एजेंट बने हुए लोग अपनी महानता को सिद्ध करने के लिए नींबू को चाकू से काटकर रस की जगह खून निकालना , लोटे में चावल भरना और उसे भरे हुए लोट को चाकू की नोक से चिपक कर आधार उठा लेना, कच्चे सूत के धागे पर तेल का भरा हुआ जलता दीपक रखना ऊपर से उल्टे मुंह की मटकी रख देना और फिर थाली का पानी खींचकर चढ़ जाना , लोटे में पानी भरकर एक कपड़े से मुंह बंद कर लोट को उल्टा लटका देना । आदि अनेकों प्रकार के चमत्कार दिखाकर जनता को उल्लू बनाकर अपना स्वार्थ सिद्ध किया करते हैं।

परंतु एक बार मन में बैठा लीजिए कि उनमें किसी प्रकार का कोई चमत्कार नहीं होता है। स्त्रियों में आने वाले भूतों का मूल कारण मनोवैज्ञानिक है। स्त्रियों को पूर्व काल में परतंत्र रहना पड़ता था, घर के छोटे पिंजरे में कठिन बंधनों में जकड़ी हुई रहती थी।

मुद्दतों एक स्थान पर रहते रहते हैं उनका मन ऊब जाता था।‌ पिता के घर की याद सताती थी । मायके जाने की जो भटकन है परन्तु उसकी अपनी इच्छा का कोई मूल्य नहीं होता था।

ससुराल का और उसके वातावरण तथा वहां वालों का दुर्व्यवहार आदि अनेकों कारणो से स्त्रियों को छोभ उत्पन्न होता है और वे भीतर ही भीतर कुड़ती रहती हैं । कभी-कभी इस प्रकार की दबी अतिरिक्त इच्छाएं किसी भी सपोर्ट के लिए अवसर खोजती हैं और ज्यादा दबाव बढ़ने पर वे कभी-कभी मूर्छित हो जाती हैं तो जिन घरों में इस प्रकार के भूत आदि के परंपराएं चला करती हैं । वहां भूत का प्रकोप मानकर ऐसी स्त्रियों को ओझा सोखा आदि के पास या मजारों पर ले जाया जाता है।

कई बार देखा गया है की ऐसी स्त्रियां अपने घर परिवार का प्रेम पाने के लिए ऐसी नौटंकी किया करती हैं। नव व्याहता स्त्रियां जब तक माता नहीं बनती तब तक उनपर भूत प्रेत का आवेश अधिक रहता है।‌ जब उनके बालक पैदा हो जाते हैं तो मस्तिष्क की दिशा दूसरी ओर मुड़ जाती है। ऐसी दशा में भूत प्रेत का भय खत्म हो जाता है । इस प्रकार से हम देखते हैं कि किसी भी स्त्री को कोई भी भूत प्रेत नहीं पकड़ता है। मात्रा में नौटंकी बाज़ी किया करतीं हैं।

आचार्य श्री कहते हैं इस प्रकार के रोग धीरे-धीरे समय पाकर अपने आप अच्छे होने लगते हैं। स्त्रियां सहानुभूति पाने के लिए अपनी ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करती हैं। आवेश उन्माद आदि भी समय पाकर ठीक हो जाते हैं । इसका श्रेय भूतों के एजेंटों को मिलता है जिसके कारण उनकी रोजी रोटी चलती रहती है।”

आता समाज के प्रबुद्ध वर्ग को चाहिए कि ऐसे भूतों के एजेंट से स्वयं बचे एवं अपने घर परिवार तथा समाज को बचाएं।

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

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