रोशनी | Kahani Roshni
मनुष्य को गरीबी क्या ना कराएं । रोशनी के पिता इतने गरीब थे कि दो वक्त की रोटी का जुगाड़ हो सके इसलिए उसे एवं उसकी बहन को अनाथालय छोड़ दिया। इसी बीच उसकी छोटी बहन इतनी बीमार हुई कि उसके पिता छोटी बहन को उठा ले गए लेकिन वह वहीं रह गई।
एक-एक दिन बीतते हुए कब वह यौवन की दहलीज पर पहुंच गई पता ही नहीं चला। अभी वह 16 वर्ष की ही थी कि उसकी एक 26 वर्षी किसान युवा से शादी हो गई । शादी के 2 वर्ष बाद जुड़वा बेटियों ने जन्म दिया उसने ।
ससुराल में भी गरीबी उसका पीछा नहीं छोड़ रही थी। बड़ी मशक्कत के बाद किसी तरह से दो वक्त की रोटी का जुगाड़ हो पाता था। रोशनी स्वयं मजदूरी करने लगी । उसे मात्र दिन भर के ₹50 मिला करते थे जिसके द्वारा किसी प्रकार से पति एवं बच्चों के रोटी पानी का जुगाड़ हो जाता था।
रोशनी भले ही गरीबी में पली बड़ी हो लेकिन उसने गरीबी भुखमरी को कभी बाधा के रूप में नहीं देखा। कहां जाता है अगर ठान लिया जाए तो असंभव को संभव बनाया जा सकता है। मुश्किलें तो हर किसी के जिंदगी में आती है लेकिन बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो तमाम दिक्कतों के बाद भी आगे बढ़ते हैं।।
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की हाल नहीं होती। यह बातें रोशनी के संघर्षों को देखकर समझा जा सकता है।
इसी बीच रोशनी ने केंद्र सरकार की एक योजना से जुड़कर बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। परंतु यहां से भी उसे इतने पैसे नहीं मिल पा रहे थे कि जिससे परिवार का भरण पोषण किया जा सके। लेकिन उसके सामने गरीबी भुखमरी का पहाड़ टूटने का नाम नहीं ले रहा था।
जिसके कारण रात्रि में वह आस पड़ोस की महिलाओं के कपड़े भी सीने लगीं। रोशनी की बहुत इच्छा थी कि वह पढ़ाई करें । इसलिए कुछ पैसे बचा कर उसने ओपन यूनिवर्सिटी से बीए करने लगी। इसी बीच उसे एक विद्यालय में शिक्षक की भर्ती का आवेदन मिला।
वह इस मौके को चूकना नहीं चाहती थी। उसने फिर शिक्षक का कार्य शुरू कर दिया लेकिन उसका घर इतना दूर था कि 2 घंटे जाने और 2 घंटे आने में कुल 4 घंटे खर्च हो जाते थे। इस समय का उपयोग अतिरिक्त अध्ययन में लगाया। बच्चों को ऐसा पढ़ाती थी कि जैसे अपने ही बच्चे हो।
कहते हैं कि किया गया संघर्ष कभी भी खराब नहीं जाता। उसकी तो विद्यालय में पांव जम गए। उसके सपने तो आसमान को चूमने की थी। वह इस नौकरी में उलझ कर नहीं रह जाना चाहती थे।
इसी बीच उसका एक चचेरा भाई जो कि अमेरिका में रहता था वह आया हुआ था। उसने जब अपने बारे में अमेरिका में कार्य करने के बारे में चर्चा किया तो उसने वहां काम दिलाने का वादा किया।
अब तो जैसे उसके पर लग गए हो। उसने अमेरिका जाने का निर्णय कर लिया। पैसे तो थे नहीं फिर उसने किसी से उधार एवं बचत के पैसों से अमेरिका चली गई। वहां भी उसकी मेहनत रंग लाई।
सच है कोई व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों को यदि चुनौती की तरह ले तो वह एक न एक दिन सफल होकर रहता है।
आज यह वही रोशनी थी जो कभी भरपेट भोजन न मिलने की वजह से अनाथालय में रहीं।
दैनिक मजदूरी किया। रात्रि में लोगों के कपड़े सिला। घरों में छोटे-मोटे काम किया। वही अपने संकल्प की बदौलत अमेरिका जैसे देश में अपना बिजनेस खड़ा कर लिया।
नोट – यह कहानी सत्य घटना पर आधारित है । पात्रों के नाम आदि बदले गए हैं। बात यह है कि मैं पुराना न्यूज पेपर पढ़ रहा था कि उसमें एक महिला की संघर्ष गाथा दीं थीं। वह मुझे इतनी अच्छी लगी कि आज की कहानी की पात्र उसे ही बना दिया।
योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )