Kalam Tumhe
Kalam Tumhe

कलम तुम्हें मरने ना देंगे

( Kalam tumhe marne na denge )

 

जब तलक जिंदा है हम, कलम तुम्हें मरने ना देंगे।
उजियारे से अंधकार में, कदम तुम्हें धरने ना देंगे।

उठो लेखनी सच की राहें, सत्य का दर्पण दिखाओ।
कलमकार वाणी साधक, सृजन का दीप जलाओ।

चंद चांदी के सिक्कों में, हम धर्म ईमान डिगने न देंगे।
झूठी वाह वाही शान में, कलम तुम्हें बिकने ना देंगे।
कलम तुम्हें मरने न देंगे

ओज की हुंकार भरो तुम, वीरों का गुणगान करो।
छल छद्म अत्याचारों का, नित लेखनी संधान करो।

सिंहासन की कठपुतली, इशारों पर चलने ना देंगे।
भ्रष्टाचार काली करतूतें, काले नाग पलने ना देंगे।
कलम तुम्हें मरने ना देंगे

देशभक्ति दिल में जगाती, भटके को तू राह दिखाती।
बेबस लाचारों की हिम्मत, अन्याय से जा टकराती।

आंधियों तूफानों में, हरगिज कभी रूकने न देंगे।
शीश कट जाए भले ही, लेखनी को झुकने न देंगे।
कलम तुम्हें मरने ना देंगे

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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