दबे पैर | Kavita dabe pair
दबे पैर
( Dabe pair )
वो दबे पैर अंदर आयी
जैसे बंद कमरों में ठंड की एक लहर चुपके से आ जाया करती है
और बदल गयी सारे रंग मेरे जीवन के,
जैसे पहली बारिश धरा को बदल ज़ाया करती है
अंकुर फूटे भावनाओं के
और मदिरा सी मस्ती छा गयी
कुछ ना देख सका उसके बाद
जब वो दबे पैर अंदर आ गयी ।
लेखक : समीर डोंगरे
रायपुर (छत्तीसगढ़)