Kavita Hain Bahot Kuch

है बहुत कुछ | Kavita Hain Bahot Kuch

है बहुत कुछ

( Hain Bahot Kuch )

 

है बहुत कुछ मन में कहने को
लेकिन मन में संभाल कर रखा हूं
तेरे पास अपना दिल गिरवी
मैने देख भाल कर रखा हूं

तुम्हें क्या लगती है
अंजान में तुम्हें चुना हूं
नहीं नहीं मैंने बहुत कुछ देखा
फिर तेरे लिए ख्वाब बुना हूं

अंजाने में कुछ नहीं
हर कुछ जान बुझ कर किया हूं
जानती हो जान
तुम्हें अपना मान लिया हूं

मजबूरी अजबुरी कुछ नहीं
तेरी फैसला ऐ इंतजार को चुना हूं
इसीलिए तेरे पास से गुजरा
फिरभी तुम्हें कुछ नहीं कहा हूं

तेरी मौन धरा वह सादगी से
मैं कायल हो चला हूं
तेरी रंग रूप दीवानगी में
मैं पागल हो रहा हूं

बेइंतहा प्यार कर तुम्हें
तिल तिल जल रहा हूं
तुम्हें फर्क नहीं लेकिन
तेरे लिए अमर हो रहा हूं

तुम कड़क हो
इसलिए पांव पत्थर सा घिस रहा हूं
धू धू जल कर भी
नहीं तुम्हें कुछ कह रहा हूं

राख होने से पहले
तेरी दिल में प्यार जगाने का तमन्ना किया हूं
तेरी दिल में उतर के अब मैं
चैन का नींद सोना का इच्छा रब से किया हूं

Sandeep Kumar

संदीप कुमार

अररिया बिहार

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