काव्यात्मा | क्षणिकाएं
1) दृश्य बाहर देख
मैं देखता अपने
अंदर मौजूद
काव्यात्मा
2)
मैंने लिखी ये कविताएं
कि सुन सकूं स्वयं को
भारी शोर के बीच
3)
जब चिल्लाते हो तुम
कविता होती है निर्भय
4)
इस बार किसी की
ले ली होगी जान
मेरे शब्द वाण
5)
होती है
अदावत शुरु
होठों से
6)
मैं लिखने ही
वाला था कि
लग गई
पन्ने में आग
7)
इश्क
दो दिलों की
बुलबुलाहट है
8)
सावन में
उम्र सोलह की
अंगराई का
कोई मोल नहीं
9)
हुस्न जब बेनकाब होता है
सादा पानी शराब हो जाता है
10)
इश्क को दरिया नहीं
समन्दर चाहिए
एक नीलिमा-सी
आकाश चाहिए
शेखर कुमार श्रीवास्तव
दरभंगा( बिहार)