क्या हम आजाद हैं | Kya Hum Azad Hain
क्या हम आजाद हैं
कहने को आज़ाद तो कहलाते हैं, पर आज़ाद रह नहीं पाते हैं।
कोई गुलाम जातिवाद का, कोई राजनीति के गुलाम बन जाते हैं।
साम्प्रदायिकता और दलों के फेर में, बंधकर हम रह जाते हैं।
अन्याय और अत्याचार सह सहकर, यूं ही घुटकर रह जाते हैं।
आज भी देश में दहेज प्रथा, और लिंग भेद का चलन है।
जन्म से मरण तक कन्याओं का, जहां असुरक्षित तन मन है।
छल कपट भ्रष्टाचार से सनी हुई,आज भी राजनीति व लोकतंत्र है।
पूंजीपतियों की चलती मनमानी जहां, कैसे कहें कि हम स्वतंत्र है।
जब तक देश में ये कुरीतियां है, तब तक कैसे कहें आज़ादी है।
देश की राजनीति में जब तक, ऐसा होगा बर्बादी ही बर्बादी है।
आज़ाद कहलाना काफ़ी नहीं, हमें मानसिकता को बदलना होगा।
निज स्वार्थ द्वेष भाव से परे उठ, राष्ट्र हित में आगे चलना होगा।।
आओ सब मिलकर प्रयास करें, देश के परिदृश्य से इन कुरीतियों को हटाएं।
आज़ाद देश तो बन गया है, मिल जुलकर इसे विकसित भारत बनाएं।।
रचनाकार –मुकेश कुमार सोनकर “सोनकर जी”
रायपुर, ( छत्तीसगढ़ )