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समझौता

( Samjhauta )

“मुझे माफ़ कर दो राज।”
“मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई।”
“अलगाव के इन तीन सालों ने मुझे बहुत सारें सबक़ सिखाये है और अब मुझे मेरी ग़लतियाँ समझ में आ चुकी है।”
फोन पर कल्पना एक ही साँस में कहती चली गई।

“बस कल्पना बस।”
“अब मैं समझौते की दुनिया से बहुत दूर निकल चुका हूँ। तुम्हारे शहर व तुम्हारी दुनिया से लगभग पंद्रह सौ किलोमीटर दूर अब मेरी दुनिया बस मेरा पाँच वर्षीय बेटा ही है।”
“मैं अपने बेटे लव के साथ बहुत खुश हूँ, मैं उसका मम्मी व पापा बनकर उसकी परवरिश कर रहा हूँ।”
राज किचन में पराँठे सेकते हुए बोला

“प्लीज़ राज मुझे एक मौका दे दो।”
“मैं तुम्हारे साथ हर समझौता करने को तैयार हूँ।”
“अब हमारे घर में मेरे पीहर वालों का हद से ज़्यादा आना जाना, उनका कई कई दिनों तक हमारे घर में जमें रहना व हमारे आपसी मामलों में हस्तक्षेप करना अब मैं बंद कर दूँगी।” रूँधें गले से कल्पना ने कहा।

“नहीं कल्पना नहीं।”
“अब कोई भी समझौता नहीं हो सकता क्योंकि समझौते के दो पलड़ों में बराबर वजन रखने से ही दांपत्य जीवन में ख़ुशियाँ व संतुलन बना रह सकता है।”
“मैंने तुमसे प्रेम विवाह किया तुम्हारे पहलें बच्चे को भी अपनाया जो कि तुमने मुझसे छिपा कर रखा था।”
“तुम्हारी व तुम्हारे परिवार वालों की हर सही गलत माँगों को मानकर मैं समझौते के एक पलड़े को हमेशा भारी करता रहा जो इतना ज़्यादा झुक चुका है कि अब तुम्हारे किसी भी समझौते के भार से वह हिल नहीं सकता।”
“मैं अपनी इस दुनिया में बेहद खुश हूँ कृपया आगे से कभी भी मुझे फोन मत करना।”
राज ने लव का टिफ़िन पैक करते हुए फोन काटते हुए कहा।

 

रचनाकार : शांतिलाल सोनी
ग्राम कोटड़ी सिमारला
तहसील श्रीमाधोपुर
जिला सीकर ( राजस्थान )

 

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