मेहनत के बावजूद | Laghu Katha Mehnat ke Bawajood
जीवन जन्म से ही एक पांव से कुछ दबता है और उसे गरीबी भी विरासत में मिली हुई है। लेकिन उसका घर अपना शहर में है। उसकी शादी हुई तो उसकी पत्नी छः माह बाद अपने घर के ही बगल में गोपाल बाबू के यहांँ वर्तन- वासन करने लगी। पेट की रोटी में कुछ राहत मिली।
जीवन भाड़े पर लेकर रिक्शा चलाने लगा है। उससे भी उसकी आमदनी कुछ बढ़ गई है। लेकिन हाँ मेहनत करता है न, दिन भर, इसलिए अपनी थकान दूर करने के लिए वह शाम को थोड़ी-सी शराब पी लेता है। उसकी पत्नी कहती है -” शराब मत पीओ। घर बर्बाद हो जाता है।” तो वह उसे समझाते हुए कहता है।
“तुम नहीं जानती, पीने से थकान तो दूर होती ही है मेरी, और,,,, और रिक्शा कलेजा से बल लगाकर जो खिंचता हूँ इसके बावजूद भी कितने लोग वाजिब पैसे नहीं देते, उसे पी कर भूल जाते हैं, हम। पीने के पीछे यही लाचारी है हमारी।
विद्या शंकर विद्यार्थी
रामगढ़, झारखण्ड