मैं अधूरा जैन.. पूरा बुध्द.. पूरा हिन्दू
शीर्षक हैरान कर देने वाला है न..! मगर यह सच है.. जो आप पढ़ रहे हो वही हु मैं.. लेशमात्र भी झूठ नही.. जैन हु मगर पूरा नही.. अधूरा.. बुध्द नही हु मगर बुद्ध हु.. पूरा.. कही कोई कमी नही.. हिन्दू नही हु मगर हिन्दू हु.. पूरा हिन्दू।
लोगबाग यही समझते हैं कि जिस कुल धर्म मे हम जन्मे हम वही होते हैं.. नाम के लिए ठीक है मगर नैतिकता से यह जरा भी ठीक नही.. कहा से भला मैं पूरा जैन हु.. जैन दर्शन की शिक्षाओं का कहा पूरा पालन करता हु मैं.. नही करता हु न.. तो क्या हक बनता है मुझे पूरा जैन कहलवाने का..?
जैन होना इतना आसान नही.. कम से कम इस उलझन भरे भौतिक जीवन मे तो यह बहुत ही मुश्किल है.. रात को नही खाना.. अनछना पानी नही पीना.. आलू प्याज लसण से दूरी बनाना.. यह सब मामूली सी बातें हैं.. बहुत कठिन कठिन आदेश तो अभी बहुत दूर है.. वहां तक सोचना भी असंभव सा लगता है।
मगर ये जो मामूली सी बातें हैं उनका भी पालन हो जाये तो एक बड़ी सी विजय का आभास होता है.. सूर्यास्त से पैतालिस अड़तालीस मिनिट पहले भोजन हो जाना चाहिए.. उस के बाद कुछ नही.. पानी भी नही.. नही चल सकता मैं इन आदेशो पर.. बड़ी मुश्किलें है.. जैन होने की शुरुआती शर्तो पर ही मैं परास्त हु।
नही मैं पूरा जैन नही हु.. जैन है तो हर अड़तालीस मिनिट में पानी छानना होंगा.. मैं तो महीनों बंद बोतलों का पानी पी जाता हूं.. तो कैसे कहूं कि मैं पूरा जैन हु.. नामधारी जैन भले ही हु मगर जैनदर्शन की देशनाओं का पालन करने वाला सच्चा जैन नही।
यू नही है कि मैं भगवान महावीर की शिक्षाओं के खिलाफत में हु.. जरा भी नही.. उनकी बहुत ही सारगर्भित टिप्पणी को मैने आत्मसात किया है.. जब महावीर कहते हैं कि जियो ओर जीने दो तो मेरे दिल को बड़ा सकू मिलता है.. मैं उन की वाणी को बारम्बार नमस्कार करता हु।
बड़ी ही गजब की बात है यह महावीर स्वामी की.. जियो ओर जीने दो.. धरती के सभी जीवों के प्रति सौम्य ओर करुणा के भाव भरे हैं इस मे.. ओर यही बात भगवान श्री रामचन्द्र जी.. गौतम बुद्ध भी कह कर गए हैं.. सभी के जीने के अधिकारों की पैरवी भगवान रामचंद्र जी, भगवान गौतम बुद्ध जी और भगवान महावीर स्वामी जी तीनो ने की है।
आप इन्ही सन्दर्भो में मुझे हिन्दू ओर बुध्द का तमगा भी दे सकते हो.. मैं हिन्दू हु क्योकि इस धरती को अपनी मातृभूमि, पितृ भूमि मानता हूं.. मैं बुध्द हु क्योकि बुद्ध के पंचशील को आत्मसात करता हु.. भगवान बुध्द के पंचशील को धारण करने में कोई दिक्कत नही है मुझे.. हिन्दू धर्म की शिक्षाएं ग्रहण करने में मेरी कोई मनाही नही है।
क्योंकि ये दोनों धर्म जैन धर्म के बनिस्पत कुछ सरल है.. यहां ऐसे कोई सिद्धांत मुझे परेशान नही करते जिनका की मैं पालन न कर सकूं.. मगर जैन दर्शन सरलमार्गी नही है.. वह तपाता है.. वह कठोर परीक्षा लेता है.. नामधारी जैन होना कोई बड़ी बात नही मगर असल जैन होना बहुत बड़ी बात है।
यह बड़ी पेचीदा स्थितियां मेरे लिए खड़ी करता है.. मैं बहुत चाहता हु की सभी सिद्धांत नियमो को धारण करू मगर इस संसार की रचना इस कदर मेरे लिए है कि वह पड़ाव पार नही हो सकता मुझ से.. मैं अधूरा जैन.. मैं पूरा बुध्द पूरा हिन्दू.. मैं जैनत्व की परीक्षा में अधूरा पास।
अपनी नाकामियों का ठीकरा जैन दर्शन पर फोड़ने वाला मैं अधूरा जैन.. अब इन बातों का कोई यू मतलब न निकाल लेना कि कोई पूरा जैन बुध्द ओर हिन्दू नही हो सकता.. पूरा जैन तो हर हाल में बुध्द ओर हिन्दू है ही क्योकि दोनो धर्मो की शिक्षाएं कही से भी जैन दर्शन से अलग नही है।
शिक्षाओं से मेरा आशय मानव जीवन मे स्नेह प्रेम और मोहब्बत है.. कुछ गूढ़ परमार्थ के सिद्धान्तों पर आपस मे कही कही कुछ भेद हो सकता है मगर मनुष्य जीवन को सुखी करने के मूल सिद्धांत तीनो के ऊपरी तौर पर एक ही है।
तो मेरी कश्मकश सामने है.. अधूरे जैन की पीड़ा दर्द छूपा नही है.. अधूरे जैन के लिए पूरा जैन होने की राह आसान तो है मगर संकल्प का धनी नही होना इसे मंजिल से दूर ले जाता है.. प्रयास मेरे शुरू है कि पूरा जैन हो जाऊं।
कोशिशों में कोई कमी नही मगर चूक जाता हूं.. पहले कदम पर ही लड़खड़ा जाता हूं.. इस अधूरेपन के साथ मैं अकेला नही जी रहा हु.. पचासों अन्य भी होंगे.. कोई मेरे दोष वाला होंगा तो कोई और अन्य गलतियां करने वाला.. कोई वचनों से गया बिता होंगा तो कोई कथनी और करनी में जुदा होंगा।
कोई व्यापार की आड़ ले कर अभक्ष्य बेच रहा होंगा तो कोई जिनेंद्र देव के नाम को बेच रहा होंगा.. मुझे नही पता कि उन्हें पता भी है या नही की वे अधूरे जैन है मगर मुझे पता है कि मैं पूरा जैन नही हु.. अधूरा हु।
अधूरा जैन मगर साथ मे पूरा हिन्दू पूरा बुध्द.. अधूरे जैन के दाह को कोई समझे ऐसे सच्चे जैन को तलाश रहा हु.. सच्चे की तलाश सफल हो जाती है तो मैं भी पूरा जैन बन जाऊंगा.. पूरा जैन.. सच्चा जैन.. ईमानदार जैन.. महावीर का जैन.. अनेक अनेक धन्यवाद.
रमेश तोरावत जैन
अकोला
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