मेरी मुहब्बत किसी और से मुहब्बत करती है

मेरी मुहब्बत किसी और से मुहब्बत करती है

मेरी मुहब्बत किसी और से मुहब्बत करती है

 

 

मेरी मुहब्बत किसी और से मुहब्बत करती है
यह बात ज़रा सा दर्द तो सीने में जगाती है

 

हजार लहो को बुझाकर रोशन हुआ में
अब तो हर चराग मुझे जलाती है

 

वह में नहीं तो क्या हुआ? उसे मुहब्बत तो है
यही देखकर शायद मेरी सांसें चलती है

 

फ़र्क़ बस इतना है तुममें और मुझमें की
उधर धड़कन चलती है इधर मचलती है

 

कभी यही आइनो से मुखातिब में मजा था
आज वही आइना है जो आँखों में चुबती है

 

 

हज़रत-ए-वफ़ा पर थोड़ा लेहाज़ कर ‘अनंत’
इश्क़ में आज उम्मीद-ए-वफ़ा मांगी जाती है

 

 

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लेखक :  स्वामी ध्यान अनंता

( चितवन, नेपाल )

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ओ मेरी प्रियसी

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