ज़िंदगी भर ज़िंदगी की जुस्तजू की
ज़िंदगी भर ज़िंदगी की जुस्तजू की
प्यास से गुज़रे मगर फिर आरज़ू की
मुफ़लिसी में दर बदर फिरते रहे पर
आबरू लेकिन नहीं बेआबरू की
मुग्ध हो चेहरा उठा तस्वीर से तब
इक मुसव्विर ने जो कॉपी हूबहू की
दोस्तों की चाह में सब बावले हैं
और उसको चाह है बस इक अदू की
इसलिए क्या आप हैं हमसे खफ़ा अब
आपकी निंदा हमेशा रूबरू की
❣️
लेखक:- बलजीत सिंह बेनाम
103/19 पुरानी कचहरी कॉलोनी, हाँसी 125033
ज़िला हिसार (हरियाणा)