मिच्छामी दुक्कडम | Natika Micchami Dukkadam
पात्र परिचय :
1 – नव्या एक स्कूल गर्ल। उम्र 17 वर्ष
2 – नीलू कॉलेज गर्ल उम्र 18 वर्ष
3 – झलक कॉलेज बॉय उम्र 20 वर्ष
4 – मां उम्र 50 वर्ष
5 – पिता उम्र 54 वर्ष
6 – नाना जी (बूढ़े आदमी साधु यानी भिक्षु वेश में) उम्र 75 वर्ष
7 – नानी जी (बूढ़ी महिला साध्वी वेश में श्वेतांबरी सफेद साड़ी पहने हुए, मुंह पर सफेद मास्क लगाए हुए) उम्र 70 वर्ष
मंच व्यवस्था – मध्यम वर्गीय घर। घर में एक बड़ा सा हॉल और हॉल में बड़ा सा एल ई डी टी. वी लगा हुआ है। बड़े बड़े दो सोफे पड़े हैं । एक सोफे पर नव्या(ब्लैक स्कर्ट और पिंक टी शर्ट पहने) बैठी है । रिमोट लेकर एक सीरियल देख रही है। दूसरे सोफे पर झलक आकर बैठ जाता है।
झलक -” (क्रिकेट का बेट कोने में रखता हुआ) नव्या मुझे मैच देखना है ।”
नव्या – “नहीं। मैं अभी अपना सीरियल देख रही हूं ।”
झलक – ” सीरियल बाद में देख लेना। मुझे टाइम नहीं मिलता मेरा आज मैच है मैं आज मैच देखूंगा ।”
नव्या-” नहीं ।मुझे भी सुबह स्कूल जाना है। समय नहीं मिलता टी वी देखने का ।”
झलक-” मुझे भी समय नहीं मिलता ।मुझे अभी देखना है ।(रिमोट उसके हाथ से पकड़ कर छीन लेता है )और मैच देखने लगा। ”
नव्या-(गुस्से में बोलती है)”पागल ,साला, कुत्ता अपनी चलाता है । ”
झलक-” चुप।गालियां मत दे।”
नव्या – “( सुनती नहीं) गालियां बड़ी बड़ी गालियां देती रही।”
झलक -“चुप रह मुझे मैच देखने दे।”(अपना मैच देखने में बिजी होने का भरपूर प्रयास करता है।)
नव्या – मैं तो दूंगी गालियां” ( जारी रखती है गालियों की बौछार।
झलक “(गुस्से में उसे एक चांटा मार देता है) चटाक( थप्पड़ की आवाज) ”
मां – (बेलन पकड़े हुए किचन से बाहर आकर अत्यधिक गुस्से में दोनों को देखती हुई ) झलक चांटा क्यों मारा ? क्यों लड़ रहे हो दोनो इतने बड़े होकर भी?”
झलक- “मम्मी मुझे यह मैच नहीं देखने दे रही। ये अपना सीरियल कल भी देख सकती है। मेरा आज मैच है तो मुझे आज ही देखना पड़ेगा।और ये मुझे गालियां दे रही है।”
मां – “क्यों गालियां दे रही है भाई को ?”
नव्या – ” आप उसका ही फेवर लिया करो। उसने मुझे मेरा सीरियल नहीं देखने दिया”
मां – ” तो ऐसी गालियां देते हैं क्या?”
नव्या -” गुस्सा होकर इसने मुझे मारा इसे क्यों नही कुछ कहती?” दूसरे रूम में चली जाती है और दरवाजा जोर से बंद करती है। (ठाक की आवाज)
मां किचन में वापस जाती है और गुस्से में जोर से चकले पर रखी आटे की लोई पर जोर से बेलन चलाती है । रोटी फट जाती है।
लाइट ऑफ
पर्दा गिरा
पर्दा उठा
नव्या -” मैं भी तेरे साथ चलूंगी फिल्म देखने के लिए ”
नीलू -“नहीं। मैं अपने दोस्तों के साथ जा रही हूं।”
नव्या – “तो क्या हुआ? मैं भी साथ चलूंगी।”
नीलू – “नहीं मैं तुझे बिल्कुल नहीं लेकर जाऊंगी।”
मां – ( बेलन लेकर किचन से बाहर आते हुए और दोनों को गुस्से से देखते हुए”)क्या हुआ दोनों क्यों लड़ रही हो?”
नव्या-” मम्मी दी मुझे फिल्म दिखाने नहीं ले जा रही। मुझे भी जाना है।”
मां – नव्या तेरे एग्जाम्स आने वाले है तू पढ़ाई कर।फिल्म देखने दोनो बाद में जाना।”
नीलू – ” मम्मी आज मेरी छुट्टी है। सैटरडे है। इसलिए मैं अपने फ्रेंड्स के साथ फिल्म देखने जा रही हूं ।”
मम्मी – “तेरी तो तबीयत खराब थी ना । तू आराम कर आज।”
नीलू -“नहीं ।अब मेरी तबीयत ठीक है ।मैं आज जाऊंगी ।”
मम्मी -“नहीं। तुझे अभी आराम की जरूरत है। आराम कर नहीं कहा ना।”
नीलू-” मैं ठीक हूं मुझे जाना है । तो जाना है।” (चली गई दरवाजा खटाक से बंद करके)
मां – (गुस्से में उसे देखती रही ) ” (किचन में वापस गई चकले पर रखी आटे की लोई पर गुस्से में जोर से बेलन मारा। रोटी फट जाती है।)
कितनी बदतमीज हो गई है। सुनती ही नहीं है। घर में काम करने को कहेंगे तो तबीयत खराब है लेकिन घूमने के लिए उछली जा रही है।”
नव्या_ ( गुस्से में )” मेरी तो कोई बात मानता ही नहीं है। पागल , चू… लोग”
मां -“तूने फिर गाली दी। कितने बार बोला है गालियां मत दिया कर।”
नव्या- रूम मे जाकर जोर से दरवाजा बंद कर देती है खटाक।( दरवाजा बंद होने की आवाज)
पर्दा गिरा।
पर्दा उठा।
पिता- (हॉल में प्रवेश करके सोफे पर बैठते हुए और झलक को टीवी में मैच को ध्यान से देखते हुए )_”झलक क्रिकेट मैच मत देखो।पढ़ाई करो। पढ़ाई । इस गेम में कैरियर नहीं है।”
झलक-” (चिढ़ते हुए) मुझे मैच देखने दिया करो। रोज-रोज मत बोला करो..( अपने मैच में और फिर वीडियो गेम में लग गया) इसमें कैरियर है। आप मुझे कोचिंग नहीं दिलवा रहे।”
पिता – “इससे तो बात करना ही बेकार है।..
इसकी मां ने सबको बिगाड़ रखा है कोई किसी की बात नहीं सुनता।”
(बाथरूम में जाते हुए अंदर से जोर से दरवाजा बंद किया खटाक।)
मां -“( बेलन लेकर किचन से बाहर आते हुए गुस्से में दोनों को देखते हुए फिर अंदर जाकर जोर से बेलन से रोटी पर चलाती है । रोटी फट जाती है)”
पर्दा गिरा।
पर्दा उठा।
वही हाल ।बड़ा सा टीवी चल रहा है। नव्या अपने रूम में है ।झलक टीवी देख रहा है।
मां किचन में है।
पिता दूसरे रूम में।
कोई किसी से बात नही कर रहे। सब एक – दूसरे से नाराज हैं।
तभी डोर बेल बजी ।नाना और नानी का सरप्राइज प्रवेश ।
(नाना भिक्षु की ड्रेस में। नानी श्वेतांबरी संप्रदाय की सफेद साड़ी पहने सफेद मास्क पहने हुए हैं।)
झलक -“अरे नाना जी और नानी जी आप इस ड्रेस में ”
नानाजी-” हां झलक । हमारे देश में अनेक पर्व मनाए जाते हैं। जिनमे एक पर्व है
“मिच्छामी दुक्कडम” जो आज है।”
झलक_”क्या?(हैरान होते हुए)
(कमरे का दरवाजा खुलने की आवाज)
नव्या – नाना नानी की आवाज सुनी तो वह रूम खोलकर बाहर आ गई ।
और (नाना नानी को आश्चर्य से देखते हुए) “अरे नाना जी और नानी जी आप इस ड्रेस में ”
नानी जी -” हां लली। आज हम साध्वी बने हैं। क्योंकि आज हम त्यौहार मना रहे हैं ।”
तभी डोर बेल बजी और नीलू का घर में प्रवेश।
नीलू – (नाना नानी को देखते ही हैरानी से )”अरे! नाना नानी आप अभी। वह भी इस ड्रेस में”
झलक – “आज नाना नानी एक फेस्टिवल सेलिब्रेट कर रहे हैं” ।
पिता -(दूसरे कमरे का दरवाजा खुलने की आवाज।कमरे से बाहर आते हुए)” नमस्ते पिताजी नमस्ते मम्मी (पैर छूते हुए)”
मां – “खुश होते हुए अरे मम्मी आप अभी कैसे वह भी इतनी सुंदर ड्रेस में।”
नानी-“हां बेटा हमने सोचा आज यह त्यौहार हम आप सब बच्चों के साथ मनाएंगे।”
सब एक साथ -( कौतुहल से देखते हुए) फेस्टिवल का नाम क्या है?”
नानी-” मिच्छामी दुक्कडम ”
नीलू-“वह क्या होता है?” नानी -“यह त्यौहार क्षमा वाणी है । आपस में सौहार्द ,सौजन्यता और सद्भावना के लिए मनाया जाता है। हमने भी यह त्यौहार पिछले साल ही देखा था और हमें अच्छा लगा इसलिए हम हर साल इसे अब मनाया करेंगे।”
नानाजी-“मोबाइल में इसकी प्रार्थना की वीडियो चला देते हैं। जिसके बोल हैं-” मैं रूठा।
तुम भी रूठ गए।
फिर मनाएगा कौन?
मैं भी चुप।
तुम भी चुप ।
फिर बोलेगा कौन?
दुखी मैं भी।
दुखी तुम भी।
फिर सुखी हम होंगे कैसे?
नानी -” सब बच्चे मेरी बात ध्यान से सुनो । अबैर से ही बैर कटता है। इसलिए मैं आप सबको अपनी तरफ से बोलती हूं “मिच्छामी दुक्कडम”
“नाना जी-” यानी “क्षमा दिवस”
नानी जी -“आज दिल रिक्त और दिमाग ठसाठस भरे हैं। संवेदनाएं कहीं मर गई हैं। ईगो में हम कठोर बन गए हैं।रोज देह की सफाई करते हैं ।आज मन की शुद्धि करेंगे “मन शुद्धि दिवस “की अनंत शुभकामनाएं आप सभी को मेरी तरफ से।”( हाथ जोड़ती है सभी के सामने)
नानाजी – ( हाथ जोड़ते हुए)”गत वर्ष में हुए ज्ञात, अज्ञात, अविनय ,राग, द्वेष, मलो मालिन्य के लिए मिच्छामी दुक्कडम”
मां- “( हाथ जोड़ते हुए सभी को) जीवन यात्रा में चलते-चलते स्वार्थ ,मोह, अज्ञान वश हुई भूलों के लिए स्वच्छ हृदय से क्षमा याचना करते हुए हम आपके स्नेह ,मैत्री -भाव की कामना करते हैं “मिच्छामी दुक्कडम” मुझे सभी बड़े छोटे माफ करें।”
पिता – “जान अनजाने में कई बार मुझसे हुई होगी गलती ।कई बार मैंने दुखाया होगा आपका दिल। पूरे वर्ष में मेरे द्वारा बोलचाल में जानबूझकर या मजाक में किसी का भी मन दुखा हो ।
मेरे कारण किसी को बुरा लगा हो।
तो मन वचन काया से आप सभी को हाथ जोड़कर – “मिच्छामी दुक्कड़म”
मतलब मुझे क्षमा दान करें।”
झलक- ( मोबाइल पर स्क्रोल करते हुए इस फेस्टिवल के बारे में सर्च कर चुका)”यह पर्व आदिकाल से चला आ रहा है और यह प्राकृत भाषा का वाक्य है “मिछामी दुक्कनम” जिसे संस्कृत में
“मिथ्या मम दुष्क्रतम” कहा गया। मतलब जो गलती मुझसे हो गई है। वह मिथ्या हो जाए और साथ ही क्षमा करना भी इसके अर्थ में ही निहित है। मतलब क्षमा मांगना भी और क्षमा करना भी इस सेलिब्रेशन का परपज है।
तो मैं भीआज आप सभी को हाथ जोड़कर बोलता हूं – “मिच्छामी दुक्कनम”
मतलब मैं आपसे माफी भी मांगता हूं और आप सबको माफ भी करता हूं। ”
नाना जी और नानी जी, मां और पिता चारों ने उसके सर पर हाथ रखकर खुश होते हुए उसे आशीर्वाद दिया।
झलक – ” सभी के पैर छू रहा है”।
नीलू – ” आई लाइक इट वैरी मच I मुझे भी यह फेस्टिवल अच्छा लगा।
पूरे साल में मेरे द्वारा कहे वचन से।
मेरे द्वारा किए कर्म से।
आप सभी को हुई वेदना के लिए ।
मेरी तरफ से भी आप सभी को इस क्षमा दिवस पर “मिच्छामी दुक्कनम ”
(सभी ने उसे भी आशीर्वाद दिया और उसके सर पर हाथ फेरा)
नव्या – (उसे माफ करके । )उसके गले लग गई।
नव्या – “भैया, मम्मी ,पिताजी ,नाना, नानी, नीलू दीदी सबको मेरी तरफ से
“मिच्छामी दुक्कनम” कृपया मुझे मेरी गलतियों के लिए माफ करें और मैं भी आप सभी को आप सभी की गलतियों के लिए माफ करती हूं। मुझे सच्चा प्यार और क्षमा दें”
सभी ने उसे उसके सर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया। झलक ने भी उसे माफ करते हुए उसके सर पर हाथ रख दिया और बोला-” ओम नमः गुस्सा जाए भाड़ में ।
अहिंसा परमो धर्म।
मिथ्या मम दुष्कृतम।”
सब हंसने लगे।
नव्या भाई झलक के गले लग गई।
दोनों बहने गले में बाहें डाले किचन में गई – ” चलो हम सबके लिए खाना लगाते हैं.”
झलक- “मैं सिटिंग अरेंजमेंट करता हूं।मैच बंद कर देता है।”
पिता – “मैं कुछ स्वीट डिश आइसक्रीम वगैरह लेकर आता हूं।”
मां – ” मम्मी पिताजी आप बैठो मैं किचन से बच्चों के साथ खाना लाती हूं।”
नाना नानी एक दूसरे को देखते हैं और मन ही मन खुश होते हैं।
सभी लोग एक साथ खाना खा रहे हैं। आइसक्रीम खा रहे हैं गप्पे चल रही हैं। मजाक हो रहा है। म्यूजिक चल रहा है ।सबके दिल निर्मल हो चुके हैं। गिले शिकवे खत्म हो चुके हैं । रिश्तों की नई शुरुआत हो चुकी है ।
पर्दा गिरा।
बैकग्राउंड में गाना चल रहा है
“साहब घायल तो यहां हर एक परिंदा है।
साहब घायल तो यहां हर एक परिंदा है।
मगर जो फिर उड़ सका।
वही जिंदा है ।
वही जिंदा है।”
लाइट ऑफ
पर्दा गिरा।
समाप्त
डॉक्टर सुमन धर्मवीर
विशाखापत्तनम
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