नैना | कुण्डलिया छंद
नैना
( कुण्डलिया छंद )
नैना नैना से लडे,
नैन हुए लाचार।
मन चंचल हो मचल रहा,
अब क्या करे हुंकार॥
अब क्या करे हुंकार,
शेर मन नाही लागे।
तडप रहा हर रात,
कहत न पर वो जागे।
क्या तोहे भी प्रीत,
जगाए सारी रैना।
सावन बनकर मेघ,
बरसते रहते नैना
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )