Sneh ki Dor
Sneh ki Dor

स्नेह की डोर

( Sneh ki Dor ) 

 

मूहूर्तवाद के चक्कर में
होते त्योहार फीके फीके,

डर से बहना ने नहीं बांधा
भाईयो के कलाई में राखी,

डर का साम्राज्य खड़ा कर
समाज को भयभीत करते हैं

धर्म एक धंधा है,
जिसमें पढ़ा लिखा भी अंधा है

जनता समझने लगीं हैं
मूहूर्तवाद के कारोबार को।

परमात्मा का बनाया हुआ,
हर क्षण होता है शुभ।

फिर मूहूर्तवाद के चक्कर में
मत फंसो हे प्यारी बहना।

बहन भाई के प्यार से ज्यादा,
क्या और शुभ कार्य हो सकता हैं।

डर भय के सहारे ही खड़ा है
दुनिया में धर्म का साम्राज्य।

दुनिया को भयभीत करकें
चलाते हैं वे अपनी दुकाने।

प्रेम, अपनत्व, करूणा की जगह,
फैल रहा है घृणा,द्वेष,नफरत।

सभी धर्मों की बुनियाद,
भय डर पर टिकी हुई है।

आओ बहनों स्नेह की डोर से,
भाई की कलाई राखी से सजाएं।

 

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

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