नजर फेर कर चले कहां | Nazar pher kar chale kahan
नजर फेर कर चले कहां
( Nazar pher kar chale kahan )
महक रही मस्त हवाये चमन खिले हम मिले जहां
ओ मनमौजी छोड़ हमें नजर फेरकर चले कहां
याद करो पल सुहाने मनमीत मिले तो चैन मिले
इक दूजे के नयन दमकते नैन मिले तो रैन खिले
दिल की हसरतें ख्वाब सुनहरे देखे नैनों में यहां
बेरुखी जताकर हमको नजर फेरकर चले कहां
दिल से दिल के तार जुड़े मन से मन की बातें होती
कभी मिलन को आए कभी हसीं मुलाकाते होती
तुमको देख हम हंस देते चेहरे दोनों के खिले जहां
दिल में बसने वाले बोलो नजर फेरकर चले कहां
कहां गया विश्वास सलोना होठों की वो मधुर बातें
दिनभर दिन की बैचेनिया मधुर मिलन की वो रातें
थकी थकी सी इन आंखों में राहत भी मिले कहां
दिलवालों का दिल तोड़ नजर फेरकर चले कहां
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )