“बुद्ध मानव की सर्वोत्कृष्ट विशुद्ध अवस्था का सुंदर चित्रण “… डॉ. कौशल किशोर “काव्य से बुद्ध की ओर” पहुंचा समाज का प्रबुद्धपाठमंच का साहित्यिक आयोजन

छिंदवाड़ा :- साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद, संस्कृति विभाग, मध्यप्रदेश शासन, की इकाई पाठक मंच (बुक क्लब) छिंदवाड़ा के साहित्यिक आयोजन में बुद्ध पूर्णिमा के पूर्वावसर पर “काव्य से बुद्धत्व की ओर” कार्यक्रम कवि रत्नाकर रतन की अध्यक्षता तथा वरिष्ठ साहित्यकार डॉ कौशल किशोर श्रीवास्तव के मुख्य आतिथ्य में भारत माता दिव्यांग छात्रावास नई आबादी छिंदवाड़ा में संपन्न हुआ !

कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती के पूजन से हुआ! कार्यक्रम में उपस्थित प्रबुद्ध वर्ग द्वारा बुद्ध की प्रासंगिकता, प्रेरणा और उनके जीवन लक्ष्य पर प्रकाश डाला गया!

इस अवसर पर मुख्य वक्ता विद्वान साहित्यकार डॉ. कौशल किशोर श्रीवास्तव ने कहा “बुद्ध मानव की सर्वोत्कृष्ट विशुद्ध अवस्था का सुंदर चित्रण है वास्तव में बुद्धत्व की प्राप्ति के लिए हमें उनके जीवन पर प्रकाश डालना होगा कि वे कैसे ?

उस अवस्था को प्राप्त करने में सफल हुए और यही ज्ञान प्राप्त करने की सफलता, हमें बुद्धत्व की ओर ले जाएगी!” कार्यक्रम के अध्यक्ष कवि रत्नाकर रतन ने बुद्ध के सिद्धांतों को अंगीकृत करने के लिए प्रेरित किया !

नाट्य जगत से जुड़े कवि और रंगमंच के कलाकार ऋषभ स्थापक ने बुद्ध की प्रेरणादाई कथाओं और शिक्षाओं को प्रस्तुत किया !

कार्यक्रम के प्रथम चरण का संचालन समर्थ दृष्टिबाधित मित्र मंडल छिंदवाड़ा के अध्यक्ष/सचिव कमलेश साहू (दृष्टिबाधित) शिक्षक ने किया जबकि कार्यक्रम के द्वितीय चरण में आयोजित रचनापाठ कार्यक्रम का संचालन शायरा अंजुमन आरजू ने किया !

जिसमे आमंत्रित रचनाकारों में अनुराधा तिवारी ने बुद्ध के त्याग समर्पण को रचना में पिरोकर प्रस्तुत किया…
“राज महल की सुख सुविधाएं
पल भर में सब ठुकरा जाना।
इतना भी तो सरल नहीं था
राजकुंवर का बुद्ध हो जाना।”

बिछुआ से पधारे अंशुल शर्मा ने पढ़ा…

“बहती लहरों में भी जो किनारा कर दे
विपत्ति मे भी जो सहारा कर दे
वो एक पिता ही होता है साहब
जो खुद जुगनू बनकर बेटे को सितारा कर दे”

हरिओम माहोरे ने पढ़ा…

“आँखों के उस नीर ने सबका रास्ता बना दिया,
उल्फ़त के फ़कीर ने सबका रास्ता बना दिया।
था मार्ग बहुत कठिन प्रेम और शांति का पर,
आज बुध्द महावीर ने सबका रास्ता बना दिया”

शशांक पारसे ने पढ़ा…

“बुद्ध होना इतना भी आसान नहीं,
सोच लिया चलो बुद्ध हो जाये।
बुद्ध होने के लिये प्रबुद्ध होना जरूरी नहीं,
बुद्ध होने के लिये शुद्ध होना जरुरी है।
बुद्ध होने से आशय प्राप्त कर लिया जाये नहीं।
बुद्ध होने के लिये सर्वस्व त्याग जरूरी है।”


चौरई से पधारे रहेश वर्मा ने बयां किया…

“बाप की मुस्कुराती, बस्तियां जल गई
लह लहाती हुई, खेतिया जल गई
बेटी बाप को फिर कुछ ना दे पाएगा”
भरे सावन में ही बेटियां जल गई,

ओज के युवा कवि शशांक दुबे ने पढ़ा…

“खीज जो उठने लगे
क्रुद्ध होना चाहिए
भावनाएं ना कहीं
अवरुद्ध होना चाहिए
अनकही बातें कहीं
जम ना जाए पर्त सी
बुद्ध होने के लिए मन
शुद्ध होना चाहिए”

विशाल शुक्ल ने बुद्ध को विचारों से जोड़ते हुए रचना पढ़ी…

“विचारों को शब्द सरिता में बहने दो
अविरल अविचल धारा में इन्हे खोने दो”

देर शाम तक चले कार्यक्रम में मुकेश गुप्ता सहित अनेक सुधिश्रोता उपस्थित रहे , कार्यक्रम के अंत में कार्यक्रम की सफलता पर पाठक मंच के संयोजक विशाल शुक्ल ने आभार व्यक्त किया गया।

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