रिश्ते- कुछ अनजान , कुछ अजनबी
रिश्ते- कुछ अनजान , कुछ अजनबी

  रिश्ते- कुछ अनजान , कुछ अजनबी 

 

” आज काफी दिनों बाद उसने फोन किया…

अरे! विदेशों में क्रिस्मस की तैयारी बहुत पहले से होने लगती है ना इसलिए…. टाइम ही नहीं रहा बेचारे को”

70 साल की अकेली रहने वाली दादी जो कि बहुत खुश थी उनके बेटे की फोन आने पर….

यूं ही मुलाकात हो जाती है पार्क में उनसे… पति का साथ 10 साल पहले ही छूट गया था..

बेटा- बहू विदेश में

मैं हमेशा उनसे कहती

दादी आप अकेले इतने बड़े घर में कैसे रह लेती हो ?

इतनी उम्र में इतना सारा काम हम तो कुछ करें बिना ही थक जाते हैं ?

आपको अपने बेटे की याद नहीं आती क्या?

ना जाने कैसे- कैसे सवाल उनसे पूछती मैं और उनके हर जवाब मैं बड़ी उत्सुकता से सुनती थी.. और उनके जवाब देने का लहजा भी बड़ा प्यारा था

” हां कभी-कभी उनकी आंखों में आंसू देखे हैं मैंने “अक्सर उनके बेटे के बारे में पूछती तो

अरे .. लो आपके लिए आपकाे पसंद है ना रतन की जलेबियां… क्या हुआ दादी गुस्सा क्यों हो ..बोलो ना …

तू एक घंटा देर है और मुझे पता है तू जलेबियां मुझे मनाने के लिए लाई है

आपको तो सब कुछ पता है मेरी संगत में रहकर कितनी समझदार हो गई हो तुम दादी (हंसते हुए)

अच्छा लो खाओ अब .. नरम है नहीं तो बाद में बोलोगी कि तुझसे बात करते-करते ठंडी हो गई… अच्छा बहुत बोलती है तू …ले तू भी खा

जब  भी जलेबी खाती हूं तो दीपक की याद आ जाती है उसे भी बहुत पसंद है  अब पता नहीं उसे विदेश में ये सब मिलता होगा या नहीं और उनकी आंखें भर आई …

” ये मां और उनकी ममता तो सिर्फ मां ही जाने”

आप कब तक ऐसे अकेले रहोगी ,वाे नहीं आ रहे तो आप ही चली जाओ उनके पास ?

माहौल को संभालते हुए मैंने मजाकिया अंदाज में बोला “मुझे तो नहीं लगता आपको अपने बेटे की याद आती होगी आराम से मजे कर रही हो दादी अकेले और मुझे तो प्राइवेसी ही नहीं मिलती”

दादी.. क्या हुआ (शायद ज्यादा बोल दिया मैंने उन्हें मेरी बात का बुरा लग गया क्या …मैं मन में यह सब सोच ही रही थी कि)

लंबी सांस भरते हुए सिर्फ उन्होंने इतना बोला …

“मैं अकेले कहा इस घर के हर कोने में मेरी खुशियां और गम है, मेरे बच्चे का बचपन है और बहुत सारी यादें हैं.. जिनके सहारे ही तो लोग जीते हैं और मैंने तो आधे से ज्यादा जीवन बिता दिया इन्हीं यादों के साथ” (मुस्कुराते हुए)

पता नहीं क्यों पर आज घर आने के बाद मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे कुछ तकलीफ है उनकाे….

पता नहीं क्यों पर मैं अंदर से अच्छा महसूस नहीं कर रही थी

कल शाम को पार्क में ताे मिलना है यही सोच कि मैं सो गई…

अगले दिन

शाम 5:00 बजे…

अगले दिन

शाम 4:00 बजे…

2 दिन हो गए हमेशा ताे आती है पार्क में

क्या पता तबीयत खराब हो ?

क्या पता उनका बेटा विदेश से आ गया हो?

तीसरा दिन

शाम 5:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक…

मैं अकेले उसी बेंच पर बैठकर अपनी अपना ध्यान कहीं और लगाने की कोशिश कर रही थी पर मन में यही सोच रही थी कि अब जब भी आएंगी तो उनसे 2 दिन बात नहीं करूंगी मेरे 1 घंटे ना आने पर नाराज होती थी और मैं खुद 3 दिन से इंतजार कर रही हूं

खूबसूरत सी शाम और 6:00 बज चुके थे

पार्क में लोग आ रहे थे ,जा रहे थे, बच्चे हंस रहे थे और कहीं दूर कुछ लड़ भी रहे थे

मैं भी घर चलने के लिए उठी ही थी जैसे कोई पीछे से बुला रहा था मुड़कर देखा तो

नहीं… दादी नहीं थी

आप कौन…. शिवम!

मैं दादी के पड़ोस में रहता हूं रोज शाम को जोगिंग करता हूं आपको डेली देखता था मैं उनके साथ

वाे तो अपने बेटे के साथ विदेश चली गई होंगी, तो क्या मैं अब पार्क आना बंद कर दूं

अरे गुस्सा क्यों… मेरा मतलब वाे नहीं था

लेकिन  विदेश कौन गया

दादी और कौन

क्या …मतलब तुम्हें कुछ नहीं पता

मैं समझी नहीं

दादी का देहांत हुए 3 दिन हो गए और 2 दिन बाद उनकी लाश बाथरूम में मिली

क्या… लेकिन

2 दिन तक किसी को खबर ही नहीं था (उनके फोन ना उठाने पर उनके बेटे ने पड़ोसी को पता करनेकाे कहा)

मै खामोश थी

आंखों में आंसू बह रहे थे

क्या रिश्ता था मेरा उनके साथ

तो आंसू क्यों

पर आदत सी हो गई थी उनसे बात करने की

लोग बहुत मिलते हैं …कुछ न कुछ सिखा देते हैं

जिंदगी सिर्फ और सिर्फ दूसरों के लिए हम जीते हैं

और जब अपने लिए जीने की बारी आती है तो बहुत देर हो जाती है …दादी भी वैसी थी

कभी आपने बात किया है अपने नानी, नाना ,दादी ,दादा या किसी भी बुजुर्गों से …इस भाग दौड़ भरी जिंदगी से अगर कुछ पल भी मिले तो बैठ जाना उनके साथ तुम्हारी सारी नई दौर कि नई परेशानियों का सारा हल होता है उनके पास ।

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लेखिका : स्वाति यादव
( उत्तराखंड ) 

Instagram.com/Swatiyadav12312

 

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17 COMMENTS

  1. स्वाति बहुत ही खूबसूरत कहानी लिखी है आशा करता हूं इसी प्रकार कहानी लेखन करती रहोगी और अपनी कहानियां हमें भी पोस्ट किया करोगी नव लेखिका को बहुत सारी शुभकामनाएं आपका लेखन उत्कृष्ट कोटि का है सारगर्भित है वर्तमान परिस्थितियों को आत्मसात करने वाली कहानी ने हमें भी झकझोर कर दिया है हम अपने अतीत में अवश्य जाएं और बुड्ढे बुजुर्गों के पास अवश्य ही बैठे यह परिणाम मुझे इस कहानी से मिली उन्हें बहुत शुभकामनाएं

  2. heart touching…aansu aa gye ankho mein…bahut hi khoobsurti k sath pesh kia swati aapne…zindagi ki bhagdaud me hm apne mata pita ya kisi bhi priyajana ko utna samay nhi de paate hain aur kbhi kbhi bura bhala bhi bol dete hain..baad me bura jrur lgta h pr sorry nhi bolte hain…isse seekhne ki milta h ki sorry bol dene se aur unko samay dene se shayaf unhe lge ki hm parwah krte hain..keep writing and sharing such beautiful content with us.. ??

  3. अति सुंदर रचना विचारों की प्रवाह मय प्रस्तुति।
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