साहित्य और समाज
साहित्य को समाज का दर्पण माना गया है। साहित्य के माध्यम से ही हम समाज के स्तर का आकलन कर सकते हैं। एक साहित्यकार अपने आस-पास के परिवेश में जो कुछ भी देखता या महसूस करता है, वह अपनी लेखनी के माध्यम से अपने मन के भाव अभिव्यक्त करता है।
चिरकाल से लेकर आज तक साहित्य ने मानव जीवन को सदैव प्रभावित किया है। चूंकि मनुष्य समाज का ही अभिन्न अंग है, इसलिए अच्छा साहित्य समाज के उत्थान व चारित्रिक विकास में हमेशा से सहायक रहा है।
यही वजह है कि आम जनमानस में साहित्य की महती भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है। साहित्य के माध्यम से मानव की विचारधारा को बदला जा सकता है। जनमानस में जोश भरने के लिए साहित्य का सहारा लिया जाता रहा है।
साहित्य के जरिए समाज में आमूलचूल परिवर्तन लाया जा सकता है। इसीलिए कलम की ताकत को तलवार की ताकत से भी ज्यादा ताकतवर माना गया है। देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्ति दिलाने में उस समय के साहित्य की बहुत बड़ी भूमिका रही है।
आज से हजारों वर्ष पहले राजा- महाराजाओं के काल में साहित्यकारों को बड़े सम्मान के साथ राज-दरबार में विशेष दर्जा दिया जाता था, ताकि वे जरूरत पड़ने पर अनुकूल साहित्य की रचना करके आमजन में परिवर्तन ला सकें।
वर्तमान में सामाजिक स्तर पर मानवीय मूल्यों का बड़ी तेजी से पतन हो रहा है, लोग संस्कारविहीन होते जा रहे हैं, ऐसे में साहित्यकारों की जिम्मेवारी और भी बढ़ जाती है।
आज के युग में जहां हर घर में टीवी व हर हाथ में मोबाइल आ गया है, अब इस भाग-दौड़ की जिन्दगी में साहित्यिक कृतियों को कौन पढें ,,,?साहित्य के प्रति इस उदासीनता के कारण ही आज बड़े-बड़े प्रकाशन संस्थान बन्द होने की कगार पर हैं।
यह हमारे लिए ही नहीं बल्कि किसी भी राष्ट्र के लिए बड़े दुर्भाग्य की बात है। कभी हमारा देश विश्वगुरु हुआ करता था, ज्ञान-विज्ञान में हमारा कोई मुकाबला नहीं था।
लेकिन जैसे-जैसे हम अपनी संस्कृति से दूर होते गए, वैसे-वैसे ही हमें इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा है। वर्तमान के सामाजिक हालातों को देखते हुए आज भी उत्कृष्ट साहित्य की उतनी ही आवश्यकता है, जितनी कभी पहले हुआ करती थी।
इसलिए आओ,,, हम सब मिलकर फिरसे एक ऐसी साहित्यिक-जोत जलाएं, जिससे ये संसार जगमग हो सके और समाज के प्रत्येक वर्ग में एक नई रोशनी फैल सकें।

बीएल भूरा भाबरा
जिला अलीराजपुर मध्यप्रदेश
यह भी पढ़ें :-