इस मातृभूमि में एक ऐसा भी दिव्य और अलौकिक संत पैदा हुआ जिसने अपने त्याग तपोमय जीवन से इतनी ऊर्जा पैदा किया कि अंग्रेजों को इस देश से छोड़कर जाना पड़ा। भारत भूमि संतों की भूमि कहलाती है। या ऐसे ऐसे संत पैदा हुए जिनकी यशोगाथाएं युगों युगों तक याद की जाती रहेंगी।

15 अगस्त स्वाधीन भारत का जन्म दिवस है। इस महान देश के नर नारी जिनके प्रताप का सूर्य एक दिन पृथ्वी के कोने कोने में तपता था अपने अंदर वर्धमान होते हुए उल्लास को अपने-अपने ढंग से प्रकट कर रहे हैं। इसका श्रेय जाता है सुदूर आंचल में पांडिचेरी में तपो साधना में लीन श्री अरविंद को।

आज हम स्वतंत्रता दिवस की 77 वां वर्षगांठ मना रहे हैं। ऐसे में हम बहुत से स्वातंत्रता संग्राम सेनानियों का नाम तो जानते हैं लेकिन एक ऐसे स्वातंत्रता संग्राम सेनानी, तपस्वी , ऋषि , महर्षि विद्वान को भुला बैठे हैं जिसकी तपोमय ऊर्जा से यह देश स्वाधीन हुआ।

15 अगस्त श्री अरविंद का भी जन्म दिवस है। भारत की स्वतंत्रता में उनका योगदान बहुत ही उच्च कोटि का है। स्वाधीनता यज्ञ में उनकी आहुति उनका बलिदान अपने आप में अपूर्व है। उनकी देशभक्ति अद्भुत थी आध्यात्मिक थी।

इस महान नेता के कार्य करने का ढंग कुछ निराला ही था वह अपने समय में सब कुछ करता हुआ भी सदा पर्दे के पीछे ही रहा ठीक जैसे विश्वकर्म कि प्रत्येक क्रिया को संयोजित करने वाला, उन्हें आगे बढ़ाने वाला, भागवत संकल्प वस्तुओं के पीछे विद्यमान रहता है।

यही कारण है कि वह जनता की दृष्टि से ओझल रहा और इतिहास के अथवा समाचार पत्रों के पृष्ठों का विषय ना बन पाया । उन पर अंकित होने का सौभाग्य जितना उसे प्राप्त होना चाहिए था उतना ना हो सका।

ऐसे महान संत का जन्म 15 अगस्त 1861 ईसवी में कोलकाता में हुआ था ।उनके पिता डॉक्टर कृष्णधन घोष एवं श्रीमती स्वर्णलता देवी अपने माता-पिता के तृतीय संतान थे। बचपन से ही इनके माता-पिता ने भारतीय रहन-सहन एवं संस्कारों से दूर रखना चाहते थे ।

जिसके कारण उन्होंने अपने तीनों बच्चों को दार्जिलिंग के लोरेटो कन्वेंट स्कूल में प्रवेश करा दिया था । उस समय श्री अरविंद की अवस्था 5 वर्ष थी । जब श्री अरविंद मात्र 7 वर्ष के थे तभी डॉक्टर कृष्णधन घोष को अपनी पत्नी स्वर्णलता एवं चार बच्चों के साथ इंग्लैंड चले गए।

उनके अन्य भाई विनय भूषण, मनमोहन एवं बहन सरोजिनी थी। श्री अरविंद इंग्लैंड में अरविंदा एक्रायड घोष के नाम से जाने जाते थे । यहां भी उनके पिता ने हिदायत दे रखी थी कि बच्चे किसी भारतीय से कोई परिचय प्राप्त ना कर सके।

और उन पर किसी प्रकार का कोई भारतीय प्रभाव न पड़ने पाए । इन आदेशों का अक्षरशः पालन हुआ और अरविंद भारत उनके निवासियों उनके धर्म और उनकी संस्कृत से सर्वथा अनभिज्ञ रहे । लेकिन होनी को कौन टाल सकता है ।

श्री अरविंद फरवरी १८९३ में भारत की धरती पर पांव रखते ही उन्होंने एक गंभीर शांति का अनुभव होता है और वह शांति उन्हें चारों ओर से लपेटे रहती थी।

श्री अरविंद ने ‘आर्य ‘मासिक पत्रिका का प्रकाशन किया था । इनके द्वारा रचित ‘सावित्री’ ‘वेद रहस्य’ आदि प्रमुख ग्रंथ हैं।उनकी पत्नी का नाम मृणालिनी एवं प्रमुख शिष्या एवं सहयोगी ‘मीरा रिचार्ड’ जो कि बाद में श्री मां के नाम से संबोधित की जाती रही।

वास्तव में देखा जाए तो स्वातंत्रता संग्राम में जिनकी प्रमुख भूमिका थी वह हासिये में धकेल दिए गए और दो-चार चापलूस टाइप के नेता सर्वे सर्वा बन बैठे। जिसका ही दुष्परिणाम देश को आज भी भोगना पड़ रहा है।

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

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