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और दिनों से थोड़ा अलग आज कृति काॅलेज से आती हुई थोड़ा ज़्यादा की ख़ुश नज़र आ रही थी । घर आकर उसने अपना बैग रखा ही था कि तभी उसकी माँ अमिता की नज़र उसके मुस्कुराते हुए चेहरे और कलाई पर बंधी घड़ी पर पड़ी । अमिता ने अचानक से उसका हाथ पकड़ लिया और पूछा,”इतनी मँहगी घड़ी किस लड़के ने दी है ?”
अपना हाथ अचानक से इतनी ज़ोर से पकड़े जाने पर कृति सहम गई,”किक्क्सी ने ननई… ? “अपनी बेटी के चेहरे की हवाइयाँ उड़ी देख, अमिता का शक यक़ीन में बदल गया और उसने तपाक से कृति के मुँह पर एक थप्पड़ रसीद कर दिया ।”
तभी दूसरी ओर से कृति के पिता मदन दौड़े-दौड़े उनके पास आए,”अरे, पागल हो गई हो गया !…अभी बेटी कालेज से आई है और तुमने…”
कृति रोती-रोती अपने पिता मदन के गले लग गई ।
“तुमने मेरी बेटी को क्यों मारा ?” मदन ने अपनी पत्नी से सवाल किया ।
“तुमने देखा नहीं-इसके हाथ में कितनी मंहगी घड़ी है ! ज़रुर किसी लड़के ने दी होगी ।…कुछ महीने पहले चौधरी साहब की लड़की भी ऐसे ही कॉलेज से महंगे-महंगे गिफ़्ट लेकर आती थी…और पिछले महीने ही पूरे खानदान की नाक कटाकर किसी लड़के के साथ भाग गई ।” अमिता ने अपनी सफ़ाई पेश करते हुए कहा ।
“अरे, तुम तो खामखाँ शक कर रही हो, एक बार इससे ही पूछ लिया होता- हमारी बेटी ऐसी नहीं है!” मदन ने अपनी बेटी का बचाव करते हुए कहा ।
तभी कृति ने रोते हुए कहा,”पापा आज ना मैंने पोयट्री कम्पटीशन में ‘माँ’ विषय पर एक बहुत अच्छी कविता सुनाई थी जिससे ख़ुश होकर हमारी चीफ़ गेस्ट मैडम ने मुझे अपनी नई घड़ी ऊतार कर दे दी ।”
उसकी माँ अमिता की आँखों में आसूँ आ गएँ और उसने अपनी बेटी कृति को अपनी बाँहों में भर लिया ।
संदीप कटारिया ‘ दीप ‘
(करनाल ,हरियाणा)