दिल अपना ग़रीब है
दिल अपना ग़रीब है ख़ुशी से दिल अपना ग़रीब है कब दिल अपना खुशनसीब है गिला क्या करुं ग़ैर से भला यहां तो अपना ही रकीब है किसे मैं हाले दिल सुनाऊँ अब नहीं कोई भी अपना हबीब है तन्हा हूँ नगर में बहुत यहां नहीं कोई मेरे करीब है…
दिल अपना ग़रीब है ख़ुशी से दिल अपना ग़रीब है कब दिल अपना खुशनसीब है गिला क्या करुं ग़ैर से भला यहां तो अपना ही रकीब है किसे मैं हाले दिल सुनाऊँ अब नहीं कोई भी अपना हबीब है तन्हा हूँ नगर में बहुत यहां नहीं कोई मेरे करीब है…