मैं ढूंढ़ता उसका ही रहा घर
मैं ढूंढ़ता उसका ही रहा घर मैं ढूंढ़ता उसका ही रहा घर उसका नहीं मुझको है मिला घर वो छोड़ के ही जब से गया है सूना बहुत मेरा ये हुआ घर उल्फ़त यहां दिल से मिट गयी है की नफरतों में ही ये जला घर देखो ग़म के साये…
मैं ढूंढ़ता उसका ही रहा घर मैं ढूंढ़ता उसका ही रहा घर उसका नहीं मुझको है मिला घर वो छोड़ के ही जब से गया है सूना बहुत मेरा ये हुआ घर उल्फ़त यहां दिल से मिट गयी है की नफरतों में ही ये जला घर देखो ग़म के साये…