रहते हैं ज़मीरों को

रहते हैं ज़मीरों को | Ghazal Rahte Hain

रहते हैं ज़मीरों को ( Rahte Hain Zameeron ko )  रहते हैं ज़मीरों को यहाँ बेचने वाले दुश्मन ने यही सोच के कुछ जाल हैं डाले बेटे ही जहाँ माँ का गला नोच रहे हों उस घर की मुसीबत को तो भगवान ही टाले दुश्मन है इसी बात पे हैरान अभी तक हम से कभी…