Har khushi se garibe Aazam

हर ख़ुशी से ग़रीब ए आज़म | Gareeb Shayari

हर ख़ुशी से ग़रीब ए आज़म ( Har khushi se Garibe Aazam )     हर ख़ुशी से ग़रीब ए आज़म! बदलेगा कब नसीब ए आज़म   इसलिए शहर छोड़ आया हूँ थे यहां सब  रकीब ए आज़म   हाले दिल किसको सुनाऊं मैं की न कोई क़रीब ए आज़म   कैसे उसके ख़िलाफ़ बोलूं…