दादा जी | Dada ji par Shayari
दादा जी ( Dada JI ) यहां तो दादा जी रकीब है नहीं कोई अपना हबीब है रवानी ख़ुशी की कैसे हो फ़िर ख़ुशी जिंदगी से सलीब है घरों में हुये लोग कैद सब चला कैसा मौसम अजीब है कैसे लें आटा दाल यूं महंगा दादा जी बड़े हम ग़रीब है…
दादा जी ( Dada JI ) यहां तो दादा जी रकीब है नहीं कोई अपना हबीब है रवानी ख़ुशी की कैसे हो फ़िर ख़ुशी जिंदगी से सलीब है घरों में हुये लोग कैद सब चला कैसा मौसम अजीब है कैसे लें आटा दाल यूं महंगा दादा जी बड़े हम ग़रीब है…