दादा जी
( Dada JI )
यहां तो दादा जी रकीब है
नहीं कोई अपना हबीब है
रवानी ख़ुशी की कैसे हो फ़िर
ख़ुशी जिंदगी से सलीब है
घरों में हुये लोग कैद सब
चला कैसा मौसम अजीब है
कैसे लें आटा दाल यूं महंगा
दादा जी बड़े हम ग़रीब है
किसे हाल दिल का सुनाऊं मैं
नहीं कोई दिल के क़रीब है
करे प्यार कोई हंसी आज़म
नहीं इतना अच्छा नसीब है