हम जिस्म-ओ-जान से दिल के तलबगार है

हम जिस्म-ओ-जान से दिल के तलबगार है | Ghazal dil ke talabgar

हम जिस्म-ओ-जान से दिल के तलबगार है ( Hum jism -o -jaan se dil ke talabgar )   खुसबू से पीछा छुड़ाने को बागों में टहलते है पस-ए-पर्दा आँखों का हम भी समझते है   ज़िन्दगी फ़क़त कुछ दिनों के यूँ ही गुजर जाएगा चलो बैठ कर कहीं इसको गुज़रते देखते है   हम जिस्म-ओ-जान…