Muhabbat ki Poetry

मुहब्बत का गुल | Muhabbat ki Poetry

मुहब्बत का गुल ( Muhabbat ka gul )    करे तेरा रोज़ ही इंतिज़ार है गीता हुआ दिल तो खूब ही बेक़रार है गीता ख़फ़ा होना छोड़ दे तू मगर ज़रा दिलबर मुहब्बत की ही कर देगी बहार है गीता बना ले तू उम्रभर के लिये अपना मुझको मुहब्बत में तेरी डूबी बेशुमार है गीता…