Muhabbat ki Poetry

मुहब्बत का गुल

( Muhabbat ka gul ) 

 

करे तेरा रोज़ ही इंतिज़ार है गीता
हुआ दिल तो खूब ही बेक़रार है गीता

ख़फ़ा होना छोड़ दे तू मगर ज़रा दिलबर
मुहब्बत की ही कर देगी बहार है गीता

बना ले तू उम्रभर के लिये अपना मुझको
मुहब्बत में तेरी डूबी बेशुमार है गीता

न दिल लगे है तेरे बिन यहाँ मेरा अब तो
मुहब्बत का ही चढ़ा तेरी ख़ुमार है गीता

ज़बान से कुछ उसे तो कहाँ नहीं मैंने
करे आंखों से मुहब्बत का ही वार है गीता

जहान चाहें जो बोले मुझे आकर बातें
करे वफ़ा पर तेरी ऐतबार है गीता

कभी नहीं प्यार में तू दग़ा करना मुझसे
बहुत दिल से यार मेरे निगार है गीता

मुहब्बत का गुल अगर जो क़बूल तू कर ले
मुहब्बत तुझपर करेगी निसार है गीता

 

गीता शर्मा 

( हिमाचल प्रदेश )

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