निवातिया की शायरी | Nivatiya ki Shayari
तुम क्या जानो किस दौर से गुज़र रहा हूँ तुम क्या जानो किस दौर से गुज़र रहा हूँ,डाली से टूटे फूल की तरह बिखर रहा हूँ ! ख़ाक से उठकर निखरने की कोशिश में,जर्रा-जर्रा जोड़कर फिर से संवर रहा हूँ ! दर्द-ओ-ग़म के ज्वार भाटे डूबा कई दफा,वक़्त की लहरों संग धीरे धीरे उबर रहा…