निवातिया की शायरी | Nivatiya ki Shayari
मुहब्बत में होते ठिकाने बहुत है
ख़ुदा की रज़ा के बहाने बहुत है,
लुटाने को उसके ख़जाने बहुत है ! १ !
न जाने वो कब क्या दिखा दे नज़ारे,
हयात-ऐ-म’ईशत फ़साने बहुत है ! 2 !
कहें शान में क्या तुझे अब हसीना,
तेरी इस हया के दिवाने बहुत है ! ३ !
ऐ आँखे ज़रा सा ठहरकर बरसना,
हमें खत पुराने जलाने बहुत है ! ४ !
अदायें दिखाने में माहिर बड़े है,
लबों पर सनम के तराने बहुत है ! ५ !
चलो तुम बचाकर के दामन यहां पर,
निगाहें है क़ातिल निशाने बहुत है ! ६ !
डगर में है मिलते कई मोड़ अकसर
मुहब्बत में होते ठिकाने बहुत है ! ७ !
‘धरम’ हम ने देखी ज़माने की आदत,
यहाँ लोग करते बहाने बहुत है ! ८ !
शब्दार्थ:
हयात – जिंदगी, जीवन।
म’ईशत = जीविका, रोज़गार, नौकरी
वफ़ा का सिला
वफ़ा का सिला तुम सवालों में रखना,
मेरा नाम शामिल जवाबों में रखना !
मेरे इन ख़तों को समझ कर के उलफ़त
मेरी यह निशानी क़िताबों में रखना !
हरे घाव काफी मुहब्बत के होंगे,
छुपा कर उन्हें तब हिजाबों में रखना !
मिटाना न दिल से, पुरानी जो यादें
सजा कर उन्हें तुम ख़यालों में रखना !!
लिखे है फ़साने जो दिल के सफ़े पर,
छुपा कर उन्हे तुम लिबासो में रखना !!
डी के निवातिया
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